इतिहास में मौजूद हैं कई गोगोई प्रकरण, भाजपा ने दिखाया कांग्रेस को आईना
नई दिल्ली। यूं को राज्यसभा में अपने मनोनयन को लेकर उठे विवाद के बीच खुद पूर्व मुख्य जस्टिस रंजन गोगोई ने स्पष्ट कर दिया है कि सदस्य के रूप में शपथ लेने के बाद वह पूरी सच्चाई सामने रखेंगे, लेकिन विवाद रुकने का नाम नहीं ले रहा है। कांग्रेस और वामदल से लेकर कई नेताओं की ओर से सीधे तौर पर इसे सरकार और गोगोई के बीच आंतरिक समझौते के रूप में पेश किया जा रहा है। बहरहाल, अगर इतिहास को देखा जाए तो ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं जब सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश पद से हटते ही उक्त व्यक्ति पार्टी के सदस्य बन गए थे।
सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होने के बाद जस्टिस रंगनाथ मिश्र कांग्रेस कोटे से राज्यसभा पहुंचे थे
आपातकाल के दौरान तीन दूसरे वरिष्ठ न्यायाधीशों को नजरअंदाज कर किस तरह जस्टिस ए एन रे को मुख्य न्यायाधीश बनाया गया था यह तो सार्वजनिक है। सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होने के बाद जस्टिस रंगनाथ मिश्र राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और फिर कांग्रेस कोटे से राज्यसभा भी पहुंचे थे। उन्होंने सिख दंगे के मामले में कांग्रेस को राहत दी थी। मोहम्मद हिदायतुल्ला तो मुख्य न्यायाधीश पद के बाद उपराष्ट्रपति भी बने थे। बहरहाल, सबसे रोचक मामला जस्टिस बहरुल इस्लाम का था।
इंदिरा गांधी काल में बहरुल इस्लाम राज्यसभा से इस्तीफा देकर असम हाईकोर्ट के न्यायाधीश बने और मुख्य न्यायाधीश के रूप मे रिटायर हुए। वहां से रिटायरमेंट के बाद चौंकाने वाले फैसले के रूप में उन्हें सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश नियुक्त किया गया जहां उनके एक फैसले से अर्बन कोपरेटिव बैंक घोटाले बिहार की तत्कालीन जगन्नाथ मिश्रा सरकार को राहत मिल गई थी। सुप्रीम कोर्ट से इस्तीफे के बाद वह कांग्रेस सदस्य के रूप में 1984 में राज्यसभा पहुंच गए थे।
ध्यान रहे कि कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने तीखा ट्वीट करते हुए कहा था- ‘सुभाष चंद्र बोस ने कहा था- तुम मुझे खून दो मै तुम्हें आजादी दूंगा, भाजपा का कहना है- तुम मुझे वैचारिक फैसले दो, मैं तुम्हें राज्यसभा दूंगा।’ कांग्रेस, वाम व दूसरे दलों के नेताओं ने सीधा आरोप लगाया कि राम मंदिर और एनआरसी पर फैसले के लिए भाजपा ने उन्हें पुरस्कृत किया है। बहरहाल इतिहास के तथ्य साफ करते हैं कि जब इस पर चर्चा छिड़ेगी तो भाजपा की ओर से कांग्रेस काल की लंबी कड़ी गिनाई जाएगी।