सर्वोच्च नेता खामेनेई के आदेश के बगैर ईरान में पत्ता भी नहीं हिलता, जानें उनसे जुड़ी कुछ खास बातें
नई दिल्ली । अमेरिका से जारी तनातनी के बाद जो दो नाम पूरी दुनिया में छाए हुए हैं उनमें पहला नाम अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का है तो दूसरा नाम ईरान के सर्वोच्च नेता सैयद अली हुसैनी खामेनेई का है। यह दोनों ही एक दूसरे के सबसे बड़े दुश्मन हैं। इतना ही नहीं मौजूदा तनाव और कमांडर कासिम सुलेमानी की मौत के बाद खामेनेई ने ही ट्रंप के सिर पर 80 मिलियन डॉलर का ईनाम घोषित किया था। उनके ही आदेश के बाद कासिम की मौत का बदला लेने के लिए ईरान ने बगदाद समेत दूसरे अमेरिकी ठिकानों पर 21 रॉकेट दागे थे।
1989 से हैं सर्वोच्च नेता
सैयद अली हुसैनी खामेनेई ईरान के दूसरे सर्वोच्च नेता है। इसके अलावा वह पूरे मध्य पूर्व में किसी देश पर शासन करने वाले दूसरे नेता भी हैं। 1989 में अयातुल्लाह खामेनेई के निधन के बाद से ही वह इस पद पर काबिज हैं। इससे पहले वह ईरान के राष्ट्रपति भी रह चुके हैं। अयातुल्लाह की ही तरह इस्लामिक क्रांति के दौरान अली खामेनेई को शाह पहलवी ने देश निकाला दिया गया था। इससे पहले उन्हें करीब छह बार गिरफ्तार किया गया। जून 1981 में उन्हें जान से मारने की भी कोशिश की गई थी।
अली खामेनेई ने 1980 में ईरान-इराक युद्ध के दौरान रिवोल्यूशनरी गार्ड के करीब रहकर मजबूत रणनीति बनाई थी। वह ईरान के तीसरे राष्ट्रपति थे जो 1981 से लेकर 1989 तक इस पद पर रहे थे। अली अयातुल्लाह के काफी करीब थे। इसके अलावा वह उनके भरोसेमंद भी थे। यही वजह थी कि अयातुल्लाह ने उन्हें राष्ट्रपति बनाया था। अयातुल्लाह के करीब होने की वजह से ही उन्हें देश के सर्वोच्च पद पर बिठाया गया। हालांकि उनके सर्वोच्च नेता बनने पर कुछ नेताओं को एतराज भी था। इनमें हुसैन अली मुंतजारी, हशेमी रफसनजानी का नाम शामिल है। उनका कहना था कि क्योंकि वो खामेनेई थे, इसी वजह से उन्हें इस पद पर बिठाया गया, जबकि सदन ने दूसरे नेता के चयन के लिए विशेषज्ञों ने विचार विमर्श किया था। उन्हें 4 जून 1989 को 49 वर्ष की आयु में इस पद के लिए चुना गया था।