Gunung Padang: कल्पना कीजिए, अगर कोई कहे कि इंसान सभ्यता की शुरुआत हमने जितनी मानी है, वह गलत है. और एक ऐसा पिरामिड मौजूद है, जिसे मिस्र वाले पिरामिडों से भी हजारों साल पहले बनाया गया था. कुछ समय पहले ऐसा ही दावा सामने आया और दुनिया भर में हलचल मच गई. दावा था कि इंडोनेशिया में मौजूद गुनुंग पदांग नाम की जगह पर 25,000 साल पुराना पिरामिड है. हालांकि यह दावा बाद में वापस ले लिया गया, लेकिन इसने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया कि क्या हम मानव सभ्यता के इतिहास को पूरी तरह जानते भी हैं?
गुनुंग पदांग- पहाड़ या पिरामिड?
इंडोनेशिया के वेस्ट जावा में लगभग 3,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है गुनुंग पदांग. स्थानीय भाषा में इसका अर्थ है “ज्ञान का पर्वत”. यहाँ पत्थरों से बने कई टेरेस (सीढ़ीनुमा संरचनाएं) हैं, जिन पर काई जमी रहती है. यह जगह स्थानीय लोगों के लिए हमेशा से धार्मिक और आध्यात्मिक केंद्र रही है. यहां से आसपास का ज्वालामुखीय इलाका दिखाई देता है, जिससे यह और भी रहस्यमय लगता है. लंबे समय तक यह दुनिया की नजरों से दूर था, लेकिन वैज्ञानिकों ने जब इसे पिरामिड की तरह समझना शुरू किया, तभी यह वैश्विक चर्चा में आया.
वैज्ञानिकों का दावा- यह ढांचा 25,000 साल पुराना है
2023 के अंत में, Archaeological Prospection नामक जर्नल में एक शोध छपा. शोध का नेतृत्व इंडोनेशिया की रिसर्च एजेंसी BRIN के जियोलॉजिस्ट डैनी हिलमैन नटाविदजाजा कर रहे थे. उनकी टीम ने ग्राउंड-पेनेट्रेटिंग रडार, सीस्मिक टोमोग्राफी और रेडियोकार्बन डेटिंग का इस्तेमाल किया. शोधकर्ताओं ने बताया कि गुनुंग पदांग सिर्फ पहाड़ नहीं बल्कि परतों में बना एक ढांचा है. सबसे नीचे की परत को Unit 3 कहा गया और इसकी उम्र 25,000 से 14,000 BCE बताई गई. ऊपर वाली परतों की उम्र 6,000 BCE से 2,000 BCE बताई गई. टीम का दावा था कि पत्थरों को व्यवस्थित रूप से रखा गया है, उनके बीच मोर्टार जैसा पदार्थ मिला है और अंदर चैंबर जैसे खाली हिस्से भी दिखे. अगर यह सही साबित होता, तो यह जगह तुर्की के Göbekli Tepe (11,000 साल पुराना) से भी बहुत पुरानी हो जाती.
Gunung Padang: विशेषज्ञों की आपत्ति और सवाल
दावा सामने आते ही कई पुरातत्वविद् और भूवैज्ञानिकों ने इस पर आपत्ति जताई. विशेषज्ञों का कहना था कि यहां कोई औजार, हड्डी या मानव अवशेष नहीं मिले. उनका तर्क था कि रेडियोकार्बन डेटिंग से समुद्र या मिट्टी की उम्र पता चलती है, निर्माण की नहीं. कार्डिफ यूनिवर्सिटी के पुरातत्वविद फ्लिंट डिबल ने चेताया कि यह गलती हो सकती है कि प्राकृतिक ज्वालामुखीय पत्थरों को इंसानी निर्माण समझ लिया जाए. कई विशेषज्ञ मानते हैं कि ज्वालामुखी क्षेत्रों में प्राकृतिक रूप से ऐसी सीढ़ीनुमा संरचनाएँ बन सकती हैं.
अध्ययन वापस लिया गया लेकिन बहस अभी बाकी है
2024 की शुरुआत में जर्नल Archaeological Prospection ने आधिकारिक तौर पर इस अध्ययन को वापस ले लिया. जर्नल ने लिखा कि शोध में दिए गए सबूत निष्कर्षों को समर्थन नहीं देते और वैज्ञानिक मानकों पर खरे नहीं उतरते. इससे दावा तो खत्म हो गया, लेकिन विवाद खत्म नहीं हुआ.
ग्राहम हैनकॉक का कनेक्शन
अध्ययन वापस होने के बाद भी शोधकर्ता डैनी हिलमैन नटाविदजाजा अपने दावे के साथ खड़े रहे. उन्होंने कहा कि यह सेंसरशिप है और वैज्ञानिक समुदाय नई सोच स्वीकार नहीं करता. इसी बीच इस शोध में एक और नाम सामने आया कि ग्राहम हैनकॉक, जो नेटफ्लिक्स की सीरीज एनसिएंट एपोकैलिप्स के निर्माता हैं और इस अध्ययन के प्रूफरीडर भी रहे हैं. हैंकॉक का दावा है कि बर्फ युग में एक उन्नत सभ्यता मौजूद थी, जो किसी वैश्विक विपत्ति में खत्म हो गई. मुख्यधारा के पुरातत्वविद् उनके विचारों को काल्पनिक बताते हैं, लेकिन आम लोगों की दिलचस्पी इस कहानी से और बढ़ गई.
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