यह यूरोपीय देश बना दुनिया का पहला कैशलेस नेशन, होता है 99% से ज्यादा ट्रांजैक्शन बिना नोट और सिक्कों के
World’s First Cashless Country: कैशलेस इकॉनमी का सपना भारत में 2015 में देखा गया था. इसमें एक हद तक सफलता भी मिली है. भारत में यह आंदोलन की तरह बढ़ा है. अक्टूबर में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में खुदरा लेने देन में 99.8 प्रतिशत पेमेंट डिजिटल माध्यम से हो रहा है. हालांकि भारत में पैसे का भुगतान अब भी नोट और सिक्कों में होता है. लेकिन एक ऐसा भी देश है, जहां अब पूरा लेनदेन नकदरहित यानी बिना पेपर करेंसी के हो रहा है. हाल के वर्षों में स्वीडन को दुनिया का पहला ऐसा देश माना जा रहा है जिसने लगभग पूरी तरह कैशलेस अर्थव्यवस्था अपना ली है. यह वही देश है, जिसने यूरोप में सबसे पहले पेपर मुद्रा चलाई और यहीं पर सबसे पहले एटीएम लगी थी.
स्वीडन ने चुपचाप और सफलतापूर्वक दुनिया का पहला कैशलेस देश बनकर दिखाया है. स्वीडन में मुद्रा नोटों और सिक्कों की जगह फोन टैप और कार्ड को अपना लिया है. यह समाजिक व्यवहार में एक बड़ा बदलाव है. इस बदलाव ने नागरिकों के भुगतान करने के तरीके, बैंकों के संचालन और समाज में धन के लेन-देन को पूरी तरह बदल दिया है. अब अधिकांश भुगतान मोबाइल ऐप्स, कार्ड और डिजिटल ट्रांसफर के जरिए होते हैं. स्वीडन का परिवर्तन पारंपरिक नकद से डिजिटल लेन-देन की ओर फाइनेंशियल इनोवेशन का एक रोचक उदाहरण है.
स्वीडन ने कैशलेस ट्रांजैक्शन की दिशा में बहुत पहले से बुनियादी ढांचा तैयार कर लिया था. इस देश ने यूरोप में सबसे पहले बैंक नोट जारी किए. साल था 1661 जब स्वीडन ने बैंकनोट जारी किए थे और 1967 में यूरोप का पहला ऑटोमैटिक टेलर मशीन (एटीएम) लगाया था. यानी यह यूरोप में सबसे पहले बैंकनोट जारी करने वाला देश था और अब विडंबना यह है कि यह उन्हीं नोटों को खत्म करने वाला पहला देश बनने की ओर बढ़ रहा है.

क्यों स्वीडन आगे निकला?
पिछले दशक में 2012 में स्वीडन के केंद्रीय बैंक ने स्विश नामक मोबाइल भुगतान एप पेश किया था. इसे देश में लगभग 80 लाख लोगों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है, जो देश की आबादी का 75% है. स्वीडन ने कैशलेस प्रणाली में कॉन्टैक्टलेस कार्ड भुगतान और बैंकों द्वारा शाखाओं में नकद लेन-देन बंद करने की नीतियों ने इस बदलाव को तेज किया. स्वीडन के केंद्रीय बैंक के अनुसार, 2022 तक नकद लेन-देन खुदरा भुगतानों का केवल 8% था, जबकि 2023 में यह 1 % से भी कम रह गया है.
दैनिक जीवन में बदलाव कैसे दिखता है
स्वीडन के शहरों और कस्बों में अब ऐसे दुकान या कैफे मिलना मुश्किल है जो नकद स्वीकार करते हों. कई बैंक अब काउंटर पर नकद नहीं लेते. पेमेंट मोबाइल ऐप्स, क्यूआर कोड या कॉन्टैक्टलेस कार्ड से किए जाते हैं. डिजिटल भुगतान इतना आम हो चुका है कि स्वीडन आने वाले यात्रियों को सलाह दी जाती है कि वे नकदरहित भुगतान के तरीके अपने पास रखें. खरीददारी, खाने-पीने से लेकर यात्रा और दान देने के लिए स्वीडन के लोग मोबाइल एप, डेबिट कार्ड और कांटैक्टलेस भुगतान कर रहे हैं.
स्विश मोबाइल ऐप भारत में इस्तेमाल होने वाले सभी यूपीआई ऐप की तरह, यूजर्स को रियल-टाइम में पैसा भेजने और पाने की सुविधा देता है. परिवार, दोस्तों, व्यवसायों या कंपनियों के बीच, सिर्फ एक फोन नंबर के जरिए के बीच मनी ट्रांसफर बेहद आसान और फास्ट हो गया है. स्वीडिश लोगों ने इस नई तकनीक को बहुत जल्दी अपना लिया और आज वहां की ज्यादातर दुकानें, कैफे, म्यूजियम और यहां तक कि चर्च भी इसका इस्तेमाल कर रहे हैं.

कैशलेस होने से क्या लाभ हैं?
नकदरहित मॉडल अपनाने से स्वीडन को कई लाभ हुए हैं, बैंकों और व्यापारियों के लिए नकद प्रबंधन की लागत में कमी, तेज भुगतान प्रक्रिया, बैंक डकैती में कमी और लेन-देन की पारदर्शिता में बढ़ोतरी हुई है. अब भुगतान लगभग सभी सेवाओं और क्षेत्रों में सहजता से होता है. स्वीडन के बैंकों की 50 प्रतिशत से ज्यादा शाखाएं, अब नकदी नहीं संभालती. एटीएम गायब हो रहे हैं. स्वीडन में आपको कई जगहों पर बोर्ड दिखाई देंगे जिन पर लिखा होता है नो कैश एक्सेप्टेड. यह व्यवस्था खासतौर पर उन पर्यटकों के लिए सुविधाजनक है जो कार्ड या कॉन्टैक्टलेस पेमेंट पर निर्भर रहते हैं.
कैशलेस ट्रांजैक्शंस में सबसे आगे है स्वीडन
बुजुर्गों को नई तकनीक से तालमेल बिठाने की चिंताओं के बावजूद यह स्वीडन में अच्छी तरह से चल रहा है. 65 वर्ष से ज्यादा आयु के 95 प्रतिशत लोग अपने भुगतानों के लिए डेबिट कार्ड का उपयोग करते हैं. स्वीडन में 85% से अधिक पॉइंट-ऑफ-सेल लेनदेन अब डेबिट और क्रेडिट कार्ड के जरिए किए जाते हैं. अब मोबाइल वॉलेट और कॉन्टैक्टलेस पेमेंट भी तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं. दुनिया भर में नकदरहित अर्थव्यवस्था अपनाने के मामले में स्वीडन सबसे आगे है. उसके बाद नॉर्वे, फिनलैंड और दक्षिण कोरिया जैसे देश हैं, जहां नकद का उपयोग 5% से भी कम रह गया है. इसके मुकाबले, भारत में नकदी पर निर्भरता अभी भी काफी अधिक है. हालांकि यूपीआई, मोबाइल वॉलेट और क्यूआर-आधारित भुगतान जैसी पहलों के जरिए डिजिटल भुगतान क्रांति तेजी से बढ़ रही है.

कैशलेस होने का निर्णय क्यों लिया गया?
स्वीडन के इस कदम के पीछे कई कारण हैं, जैसे स्मार्टफोन और इंटरनेट का व्यापक उपयोग, वित्तीय संस्थानों पर नागरिकों का भरोसा, डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने वाला नियामक वातावरण और नकद लेन-देन की बढ़ती लागत. एक अध्ययन में पाया गया कि जब नकद लेन-देन कुल भुगतानों के लगभग 7% से नीचे आ जाता है, तो दुकानों के लिए नकद स्वीकार करना आर्थिक रूप से घाटे का सौदा हो जाता है.
हालंकि स्वीडन का यह प्रयोग समस्याओं से मुक्त नहीं है. आलोचकों का कहना है कि इससे साइबर हमलों का खतरा बढ़ सकता है, बुजुर्गों या डिजिटल संसाधनों से वंचित लोगों को कठिनाई हो सकती है और देश पूरी तरह डिजिटल अवसंरचना पर निर्भर हो जाता है, जो किसी संकट में विफल भी हो सकती है. इन चिंताओं को देखते हुए स्वीडिश अधिकारियों ने हाल ही में नागरिकों को सलाह दी है कि वे आपात स्थिति के लिए थोड़ी नकदी अपने पास रखें.
आगे की तैयारी- डिजिटल मुद्रा
स्वीडन का केंद्रीय बैंक यह सुनिश्चित कर रहा है कि डिजिटल लेन-देन के इस युग में भी वित्तीय सुरक्षा बनी रहे. इसके साथ ही, सरकार समर्थित डिजिटल मुद्रा e-krona पर भी शोध और परीक्षण चल रहा है. फिलहाल अभी यह पायलट चरण में है.
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