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गाजा ‘शांति मिशन’ के लिए सैनिकों के बदले भीख मांग रहे असीम मुनीर, पाकिस्तानी पत्रकार का खुलासा


Asim Munir Israel Gaza Peace Mission: गाजा युद्ध के बाद जब दुनिया शांति की बातें कर रही थी, तब पाकिस्तान ने दावा किया कि वो “गाजा में शांति सैनिक” भेजेगा. इसे फलस्तीन के साथ एकजुटता की मिसाल बताया गया. लेकिन अब इसी मिशन पर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. मशहूर पाकिस्तानी पत्रकार असमा शिराजी ने दावा किया है कि आर्मी चीफ जनरल असीम मुनीर ने गाजा में पाकिस्तानी सैनिकों को भेजने के बदले इजराइल से प्रति सैनिक 10,000 डॉलर की मांग की थी जबकि इसराइल ने सिर्फ 100 डॉलर प्रति सैनिक देने की बात कही. यहीं से पूरा “पीस मिशन” बिखर गया

Asim Munir Israel Gaza Peace Mission: शांति मिशन या मुनाफे की डील?

असमा शिराजी के मुताबिक, पाकिस्तान का यह मिशन गाजा में “शांति स्थापना” के नाम पर था लेकिन अंदरखाने यह एक पैसों की सौदेबाजी बन गया. खबर है कि इसराइल और पाकिस्तान के बीच पैसे को लेकर इतना झगड़ा हुआ कि यह पूरा मिशन ही रुक गया. यानी बात शांति की थी, लेकिन झगड़ा रकम पर हो गया.

इस खुलासे से कुछ दिन पहले ही रिपोर्ट आई थी कि जनरल आसिम मुनीर ने मिस्र का एक सीक्रट दौरा किया. सीएनएन-न्यूज18 की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने वहां इसराइली खुफिया एजेंसी और CIA अधिकारियों से बंद कमरे में मुलाकात की. मकसद था कि गाजा में युद्ध के बाद पाकिस्तान की भूमिका तय करना. यानी पाकिस्तान चाहता था कि वो गाजा में सैनिक भेजकर “शांति मिशन” का हिस्सा बने.

‘हम फलस्तीन के साथ हैं’ या बस इमेज मेकओवर?

पाकिस्तानी सेना ने इस मिशन को फलस्तीन के साथ एकजुटता बताया था. लेकिन अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह सच में एकजुटता थी या फिर दुनिया के सामने अपनी छवि सुधारने की कोशिश? क्योंकि पिछले कुछ महीनों में पाकिस्तान की सेना पर देश के अंदर राजनीतिक दमन और अस्थिरता के आरोप लगते रहे हैं. ऐसे में यह मिशन शायद अपनी छवि बचाने की कोशिश थी. मगर अब उस पर लालच का दाग लग गया है.

आलोचकों का तर्क- ‘मुनाफे का मिशन’

कई जानकारों का कहना है कि यह विवाद पाकिस्तान की पुरानी सोच को दिखाता है. जहां सेना हर वैश्विक संकट में किसी न किसी तरह का राजनीतिक या आर्थिक फायदा खोज लेती है. आलोचक कह रहे हैं कि पाकिस्तान की सेना मुस्लिम एकता की बातें तो करती है, लेकिन असल में उसका मकसद डॉलर कमाना होता है.

अगर असमा शिराजी के दावे सही हैं तो पाकिस्तान का यह तथाकथित “सॉलिडैरिटी मिशन” अब एक मानवीय अभियान नहीं, बल्कि एक सौदेबाजी की कहानी बन गया है. यह मामला सिर्फ पाकिस्तान और इसराइल के रिश्तों का नहीं है, बल्कि उस सोच का है जिसमें सैनिकों की तैनाती भी पैसों के हिसाब से तय होती है.

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