Indian Origin man of Mauritius ancestor quest: अपने पुश्तैनी जड़ों की तलाश की लालसा किसी को भी बेचैन कर सकती है. मॉरीशस के सिविल सर्वेंट रामरूप जुगुर्णाथ गुरुवार को एक ऐसे मिशन पर ओडिशा पहुंचे जो उनके दिल के बेहद करीब है अपनी पुश्तैनी जड़ों की तलाश. इस खोज ने उन्हें ओडिशा के जाजपुर जिले के एक दूरदराज गांव तक पहुंचा दिया. शुरुआत में, अपनी पहचान की खोज में उन्हें निराशा ही हाथ लगी, लेकिन जाजपुर जिला प्रशासन की मदद और भगवान जगन्नाथ में उनके अटूट विश्वास के बल पर, चौथी कोशिश में आखिरकार रामरूप जगन्नाथ ने जाजपुर जिले में अपना पुश्तैनी गांव खोज ही लिया. भारत और अपनी पारंपरिक सांस्कृतिक जड़ों के प्रति उनका प्रेम उस समय छलक उठा जब उन्होंने वहां की मिट्टी इकट्ठी की और उसे अपने साथ मॉरीशस ले जाने का फैसला किया.
वर्तमान में रामरूप जुगुर्णाथ मॉरीशस पुलिस विभाग में मानव संसाधन प्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं. उन्होंने द टेलीग्राफ से बातचीत में बताया, “अपने परिवार की जड़ों पर किए गए विस्तृत शोध से यह स्पष्ट हुआ है कि हमारा संबंध जाजपुर से है, और हमारा गांव प्रसिद्ध माँ बिरजा मंदिर और बैतरणी नदी के बीच, शहर के बाहरी इलाके में स्थित है.” जुगुर्णाथ शब्द स्वयं जगन्नाथ से निकला है यही उनके इस प्रयास की प्रेरणा है. उन्होंने कहा, “मैं मानव संसाधन विभाग में काम करता हूं. अपनी जड़ों की खोज में मेरी रुचि 1990 के दशक में शुरू हुई. बाद में मुझे पहली बार 2012 में ओडिशा आने का मौका मिला. फिर 2015 और 2019 में आया. यह मेरी चौथी यात्रा है. हर यात्रा के बाद मैं आशा लेकर लौटा कि एक दिन अपने पूर्वजों का पता लगा पाऊंगा. इन वर्षों में कई शुभचिंतकों ने मुझे अपनी वंश परंपरा से जुड़ने में मदद की.”
रामरूप के पूर्वजों की कहानी कैसे शुरू हुई?
अपनी पारिवारिक कहानी साझा करते हुए 64 वर्षीय जुगुर्णाथ ने बताया, “मैं जगन्नाथ दास की पाँचवीं पीढ़ी से हूं वे मेरे ओडिया पूर्वज थे. उनकी यात्रा 23 अक्टूबर 1870 को कलकत्ता बंदरगाह से शुरू हुई थी. उस दिन ‘अलुम घीर’ नामक जहाज (ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार) 154 यात्रियों और 49 चालक दल के सदस्यों के साथ मॉरीशस के लिए रवाना हुआ था. यात्री बंधुआ मज़दूर थे. वह दीपावली से एक दिन पहले का दिन था, यानी 1870 की दीपावली के दिन वे मॉरीशस की ओर नौकायन कर रहे थे. 34 दिनों की यात्रा के बाद जहाज 26 नवंबर को मॉरीशस पहुंचा और यात्री 30 नवंबर 1870 को उतरे.”
उन्होंने आगे बताया कि यात्रियों में ओडिशा, बंगाल और बिहार के लोग शामिल थे. “मॉरीशस में आपको पूरे भारत से लोग मिल जाएंगे. उनके पूर्वज वहीं मजदूर बनकर गए थे,” उन्होंने कहा. जुगुर्णाथ ने बताया, “मेरे पूर्वज जगन्नाथ दास का जन्म 1845 में जाजपुर के आसपास के एक गांव में हुआ था. मॉरीशस में उपलब्ध ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार, वे बंधु के पुत्र थे और उनके रिश्तेदार (संभवतः भाई) का नाम रामू था. 25 वर्ष की आयु में, ब्रिटिशों द्वारा गन्ने के खेतों में काम करने के लिए भर्ती किए जाने के बाद, जगन्नाथ मॉरीशस के लिए रवाना हुए.”
रामरूप ने बताया कि उनके पूर्वज ने एक बंगाली प्रवासी लख्खी से विवाह किया था, जो बंकूराह (अब बंगाल का बांकुरा) से आई थीं. उन्होंने कहा, “मैंने अपनी जड़ों की खोज 1991 में शुरू की, जब मुझे मॉरीशस इंस्टीट्यूट (MGI) से इमिग्रेशन दस्तावेज मिले. जगन्नाथ और सतबाजी दोनों ने कई ऐसे लिखित प्रमाण छोड़े हैं जो उनके ओडिया मूल और धार्मिक स्वभाव की पुष्टि करते हैं. यह खोज धीरे-धीरे आगे बढ़ी. अपनी जड़ों की तलाश करना मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है.”
गिरमिटिया की ब्रिटिश व्यवस्था कैसी थी?
रामरूप जगन्नाथ ने एएनआई से कहा, “आज का दिन मेरे लिए खास है. मैं अपने साथ यहां की मिट्टी ले जा रहा हूं.” रामरूप जगन्नाथ के पूर्वज वर्ष 1870 में मॉरीशस चले गए थे करीब 155 साल पहले या यूं कहें कि ब्रिटिश उन्हें मजदूरी के लिए वहां ले गए थे. रामरूप जगन्नाथ ने अपनी पारिवारिक कहानी बताते हुए कहा, “वे गिरमिटिया बन गए थे, यानी बंधुआ मजदूर.” उन्होंने आगे बताया, “ब्रिटिश उस समय रजिस्ट्रेशन किया करते थे. जैसे जब कोई व्यक्ति किसी देश में जाता है, तो वहां पंजीकरण की प्रक्रिया होती है किसका नाम, किस देश से आया है, पिता-माता का नाम, और किस जहाज से गया. सब कुछ लिखा जाता था. वहां भी लिखा है गांव: जाजपुर, जिला: कटक. एक और जानकारी है, जिसे प्रगना कहा जाता है. वही मूलगांव है. अब मैं निश्चित रूप से कह सकता हूं.”
परिवार ढूंढना बाकी है, मंदिर बनाने की है लालसा
रामरूप जगन्नाथ ने अपने पुश्तैनी घर को खोजने की कोशिश 2012, 2015 और 2019 में भी की थी, लेकिन उन यात्राओं में कुछ खास हासिल नहीं हुआ. उनके दोस्तों ने उन्हें चौथी बार भारत आने के लिए प्रेरित किया. इस बार उन्होंने अपना गांव तो ढूंढ लिया, लेकिन उनकी खोज यहीं खत्म नहीं हुई. उन्होंने कहा, “मैंने गांव तो ढूंढ लिया है, लेकिन मेरा परिवार अब वहां नहीं है.” फिर भी रामरूप जगन्नाथ आशावान हैं कि जिला प्रशासन की मदद से वे एक दिन अपने बिछड़े परिवार से दोबारा जुड़ पाएंगे. अंत में उन्होंने भारतीय सरकार से अनुरोध किया कि वह मॉरीशस में बसे उनके समुदाय की सहायता करे, जो लगभग 3,000 लोगों का है, ताकि वहां कलिंग शैली का एक जगन्नाथ मंदिर बनाया जा सके.
रामरूप ने कहा, “2015 की अपनी दूसरी यात्रा के दौरान मैंने मॉरीशस में कलिंग शैली में एक जगन्नाथ मंदिर बनाने की इच्छा व्यक्त की थी. मैं वहां एक ओडिया एसोसिएशन भी स्थापित करना चाहता हूं. उसी वर्ष, मैंने भगवान जगन्नाथ के प्रथम सेवक पुरी के गजपति महाराज से मुलाकात की और अपनी भावनाएं साझा कीं.” उन्होंने कहा, “मॉरीशस में तीन हजार लोग हैं. हम वहां एक जगन्नाथ मंदिर बनाना चाहते हैं. मैं सरकार से अनुरोध करता हूं कि इस दिशा में मदद करे.”
जिला कलेक्टर ने दिया हर संभव मदद का आश्वासन
इस बार उनके आगमन पर भुवनेश्वर में विश्व ओडिया परिवार के सदस्यों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया. संगठन के सदस्य सज्जन शर्मा ने कहा, “हम उनकी यात्रा और अपने पूर्वजों की खोज में उनके दृढ़ संकल्प से प्रेरित हैं. हमें अपनी जड़ों को कभी नहीं भूलना चाहिए.” जाजपुर के जिला कलेक्टर अंबर कुमार कर ने उन्हें इस प्रयास में हरसंभव सहयोग का भरोसा दिलाया और कहा कि वे जब चाहें, ओडिशा लौटकर अपने गांव आ सकते हैं.
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