अमेरिकी ड्रोन का कबूलनामा! तालिबान-टीटीपी के जाल में फंसा पाकिस्तान, अब वॉशिंगटन की याद में बौखलाया इस्लामाबाद
 
Pakistan Trapped Between Taliban TTP: कभी “आतंकवाद के खिलाफ जंग” में अमेरिका का सबसे अहम साथी रहा पाकिस्तान आज खुद उस लड़ाई में अकेला पड़ गया है. इस्तांबुल में हुई तालिबान से शांति वार्ता के दौरान पाकिस्तान ने पहली बार मान लिया कि उसने अमेरिका को अपनी जमीन से ड्रोन हमले करने की इजाजत दी थी वो भी अफगानिस्तान में मौजूद आतंकी ठिकानों पर. यह कबूलनामा सिर्फ एक बयान नहीं था, बल्कि उस हकीकत की झलक थी जिसे पाकिस्तान बरसों से छिपाता आया था. अब सवाल ये है कि क्या पाकिस्तान की सुरक्षा की नींव ही अमेरिकी ड्रोन पर टिकी थी?
Pakistan Trapped Between Taliban TTP: ड्रोन डील का खुलासा
इस्तांबुल में हुई बातचीत में पाकिस्तान का यह स्वीकार करना दुनिया के लिए चौंकाने वाला था, लेकिन विश्लेषकों के लिए नहीं. दरअसल, लंबे समय से यह माना जा रहा था कि पाकिस्तान ने चुपचाप अमेरिकी ड्रोन को अपनी सीमा के पास से उड़ान भरने की अनुमति दी थी. इन ड्रोन हमलों का निशाना अफगानिस्तान के अंदर मौजूद तालिबान और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के ठिकाने थे. ये हमले बेहद सटीक होते थे और कई बार पाकिस्तान की सेना और आईएसआई (खुफिया एजेंसी) भी इसमें सहयोग करती थी जानकारी देने से लेकर मिशन की निगरानी तक.
टीटीपी- पाकिस्तान का सबसे बड़ा सिरदर्द
टीटीपी यानी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, कई छोटे-छोटे आतंकी गुटों का गठजोड़ है. ये गुट पाकिस्तान सरकार के खिलाफ़ हैं और आए दिन देश के भीतर हमले करते हैं. कभी पेशावर के स्कूल, कभी कराची की पुलिस या मस्जिदें. टीटीपी की हिंसा ने आम लोगों को डरा रखा है. पाकिस्तान ने कई बार सेना भेजी, अभियान चलाए, लेकिन ये समस्या खत्म नहीं हुई. वजह ये कि अफगान सीमा पार टीटीपी को पनाह मिलती रही. यही वजह थी कि अमेरिका के ड्रोन पाकिस्तान के लिए एक “दूर से चलने वाला हथियार” बन गए, जिसने टीटीपी के कई बड़े नेताओं को खत्म किया.
जब एक-एक कर गिरे टीटीपी के सरगना
अमेरिकी ड्रोन हमलों ने टीटीपी की रीढ़ कई बार तोड़ी जिसमें शामिल थे बैतुल्लाह महसूद (2009) टीटीपी का संस्थापक और बेनजीर भुट्टो की हत्या का मास्टरमाइंड. अगस्त 2009 में दक्षिण वजीरिस्तान में अमेरिकी ड्रोन हमले में मारा गया. हकीमुल्लाह महसूद (2013) में बैतुल्लाह के बाद संगठन की बागडोर संभाली, लेकिन नवंबर 2013 में ड्रोन ने उसे भी निशाना बना लिया.
मुल्ला फजलुल्लाह (2018) में ‘रेडियो मौलवी’ के नाम से कुख्यात, जिसने लड़कियों की पढ़ाई के खिलाफ फतवा दिया था. 2018 में अफगानिस्तान के कुनार इलाके में अमेरिकी ड्रोन ने उसका सफाया किया. हर बड़े हमले के बाद टीटीपी की कमान डगमगा गई, अंदरूनी झगड़े बढ़े और कुछ समय के लिए हमले भी घटे.
अमेरिका गया तो कमजोर हुआ पाकिस्तान
2021 में जब अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपनी सेना वापस बुला ली, तो पाकिस्तान की पूरी रणनीति जैसे ढह गई. पहले जो ड्रोन निगरानी और खुफिया जानकारी वॉशिंगटन से मिलती थी, वो अचानक बंद हो गई. अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी ने टीटीपी को और ताकतवर बना दिया. अब पाकिस्तान अकेला है एक तरफ तालिबान से तनाव, दूसरी तरफ टीटीपी के बढ़ते हमले. अमेरिका की मदद के बिना पाकिस्तान का “आतंक नियंत्रण मॉडल” ढह चुका है.
टीटीपी की नई चाल और पाकिस्तान की बढ़ती मुश्किलें
बीते महीनों में पाकिस्तान में हमलों की रफ्तार बढ़ी है. टीटीपी अब सिर्फ कबायली इलाकों तक सीमित नहीं, बल्कि कराची, पेशावर और इस्लामाबाद तक अपनी पकड़ बना चुका है. सुरक्षा बलों पर हमले, आत्मघाती धमाके और पुलिस चौकियों पर गोलीबारी अब आम बात बन चुकी है. सेना पहले से बलूचिस्तान में विद्रोह से जूझ रही थी, अब टीटीपी के मोर्चे ने उसकी कमर तोड़ दी है. नए सैन्य अभियान शुरू हुए हैं, लेकिन असर सीमित है.
जनता के लिए डर और दर्द दोनों
टीटीपी के हमलों की सबसे बड़ी कीमत आम लोगों को चुकानी पड़ रही है. स्कूल, बाजार और मस्जिदें कहीं भी सुरक्षा का एहसास नहीं. हजारों लोग विस्थापित हो चुके हैं. डर का माहौल इतना गहरा है कि लोग अब घरों से बाहर निकलने से भी डरते हैं. मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि लगातार हिंसा से लोगों का मानसिक संतुलन और सरकार पर भरोसा दोनों डगमगा गया है.
जब तक अमेरिकी ड्रोन उड़ रहे थे, टीटीपी पर नियंत्रण बना रहा. लेकिन जैसे ही अमेरिका गया, सबकुछ बिखर गया. पाकिस्तान ने तालिबान को “रणनीतिक संपत्ति” के रूप में देखा, लेकिन अब वही तालिबान टीटीपी को शरण दे रहा है. यह पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ा झटका है.
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