Trump Orders US Nuclear Test: एक झटके में आसमान आग से भर जाए, जमीन कांप उठे और हवा में जहर घुल जाए. यह कोई फिल्मी सीन नहीं, बल्कि वही मंजर है जो दुनिया ने 1945 में देखा था, जब अमेरिका ने पहला परमाणु बम फोड़ा था. अब, करीब 80 साल बाद, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने फिर से कुछ ऐसा ही करने का इशारा दिया है.
ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म TruthSocial पर ऐलान किया कि उन्होंने पेंटागन को अमेरिका के परमाणु हथियारों की टेस्टिंग फिर से शुरू करने का आदेश दिया है. ये एलान उन्होंने ठीक उस वक्त किया जब उनकी मुलाकात चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से होनी थी. और यही वजह है कि अब दुनिया भर में सवाल उठ रहा है. क्या ट्रंप दुनिया को फिर से परमाणु होड़ में धकेल रहे हैं?
Trump Orders US Nuclear Test: 33 साल बाद टूट सकता है अमेरिका का परमाणु सन्नाटा
अगर ट्रंप का आदेश लागू होता है तो अमेरिका अपने 33 साल पुराने परमाणु परीक्षण प्रतिबंध (moratorium) को तोड़ देगा. आखिरी बार अमेरिका ने 1992 में परीक्षण किया था, जब जॉर्ज एचडब्ल्यू बुश राष्ट्रपति थे. उसके बाद से देश ने कोई असली (explosive) परीक्षण नहीं किया.
दूसरी ओर, चीन ने 1996 के बाद कोई परीक्षण नहीं किया, और रूस ने भी हाल के वर्षों में सिर्फ मिसाइल सिस्टम की जांच की, बम का असली धमाका नहीं किया. इसी बीच Bulletin of the Atomic Scientists ने “Doomsday Clock” को रात 12 से सिर्फ 89 सेकंड दूर कर दिया यानी दुनिया अब “महाविनाश” के सबसे करीब पहुंच चुकी है.
क्या अमेरिका को दोबारा परमाणु टेस्ट की अनुमति है?
ट्रंप का आदेश साफ नहीं करता कि वे असली विस्फोट की बात कर रहे हैं या सिर्फ न्यूक्लियर मिसाइलों की टेस्टिंग की. लेकिन अगर अमेरिका असली विस्फोट करना चाहता है तो ये कोई आसान काम नहीं. Federation of American Scientists के हैंस क्रिस्टेंसन बताते हैं कि इसमें सालों लग सकते हैं और कांग्रेस की मंजूरी भी जरूरी है. एक साधारण टेस्ट में 6-10 महीने, पूरी तैयारी वाले टेस्ट में 2-3 साल, और नए वॉरहेड के लिए करीब 5 साल का वक्त लगता है. उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका के पास फिलहाल कोई सक्रिय परमाणु परीक्षण कार्यक्रम नहीं है. अगर ट्रंप का इरादा सच में विस्फोट करने का है, तो इसके लिए कांग्रेस को पैसे मंजूर करने होंगे और ऊर्जा विभाग को आदेश जारी करना होगा.
हालांकि ट्रंप ने आदेश रक्षा मंत्रालय (Pentagon) को दिया है, लेकिन वास्तव में परमाणु परीक्षणों की जिम्मेदारी National Nuclear Security Administration (NNSA) की होती है. इसका मतलब यह भी हो सकता है कि ट्रंप फिलहाल सिर्फ मिसाइलों के परीक्षण की बात कर रहे हों, न कि असली बम धमाकों की.
ट्रंप का ‘संदेश’ या ‘शक्ति प्रदर्शन’?
यह पहली बार नहीं है जब ट्रंप ने परमाणु ताकत का जिक्र किया हो. इससे पहले अगस्त में उन्होंने रूस की धमकियों के जवाब में दो न्यूक्लियर सबमरीन को “उपयुक्त क्षेत्रों” में भेजा था. उस वक्त उन्होंने कहा था कि अगर रूस की ये धमकियां सिर्फ बयानबाजी नहीं हैं, तो हम तैयार हैं. यानी ट्रंप का यह आदेश शायद दुनिया को “संदेश” देने के लिए है कि अमेरिका पीछे नहीं हटेगा.
ट्रिनिटी से शुरू हुई कहानी
1945, न्यू मैक्सिको का रेगिस्तान अमेरिका ने दुनिया का पहला परमाणु धमाका किया था, जिसे “ट्रिनिटी टेस्ट” कहा गया. यह प्लूटोनियम बम था, जिसकी ताकत 18 किलोटन थी. विस्फोट इतना तेज था कि मीलों दूर बैठे लोग जमीन पर गिर गए और आसमान आग से भर गया. अमेरिका ने यह परीक्षण पहले गुप्त रखा और बाद में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर बम गिराने के बाद ही इसकी जानकारी दी. उसके बाद अमेरिका ने एक के बाद एक 1000 से ज्यादा परमाणु परीक्षण किए जो पूरी दुनिया में हुए कुल परीक्षणों का आधे से भी ज्यादा हिस्सा हैं.
ज्यादातर परीक्षण भूमिगत (underground) किए गए ताकि रेडियोएक्टिव गैसें हवा में न जाएं. फिर भी द इंडिपेंडेंट की रिपोर्ट कहती है कि कुछ धमाकों से जमीन के अंदर का रेडिएशन भूजल में रिस गया. अमेरिका ने कई परीक्षण Marshall Islands और Kiritimati Island में भी किए जिनका असर आज तक वहां के लोगों पर है.
कौन से अंतरराष्ट्रीय कानून रोकते हैं?
1963 में Partial Test Ban Treaty के तहत हवा, पानी और अंतरिक्ष में परीक्षणों पर रोक लगी. 1996 में Comprehensive Nuclear-Test-Ban Treaty (CTBT) आया, जिसने भूमिगत परीक्षणों पर भी रोक लगाई. लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि अमेरिका ने इस संधि को कभी मंजूर (ratify) नहीं किया. यानी, कानूनी तौर पर वह चाहे तो अब भी परीक्षण कर सकता है. मुद्दा सिर्फ यह है कि इसका असर पूरी दुनिया की सुरक्षा और स्थिरता पर पड़ेगा.
अगर अमेरिका धमाका करता है तो दुनिया क्या करेगी?
अमेरिकी वैज्ञानिकों का संघ के मुताबिक, दुनिया में आज 12,000 से ज्यादा परमाणु हथियार हैं. इनमें से 87% सिर्फ अमेरिका और रूस के पास हैं. दोनों के बीच आखिरी बड़ा समझौता New START Treaty अगले साल खत्म हो रहा है. अब तक कोई नया समझौता या बातचीत शुरू भी नहीं हुई है.
ऐसे में ट्रंप का यह कदम दुनिया को फिर से शीतयुद्ध जैसी परमाणु होड़ की तरफ ले जा सकता है. परमाणु हथियारों के उन्मूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय अभियान (ICAN) की निदेशक मेलिसा पार्के ने ट्रंप के इस बयान को “लापरवाह और खतरनाक” बताया. उन्होंने कहा कि यह फैसला पिछले 80 सालों से परमाणु विस्फोटों से हुए नुकसान को नजरअंदाज करता है. और अगर ट्रंप सोचते हैं कि इससे वे नोबेल शांति पुरस्कार जीत लेंगे तो यह बड़ी भूल है.
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