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ट्रंप पर भरोसा कम… यूरोप संग नई चाल! ताइवान ने ड्रैगन को दी चेतावनी, कहा- हमला किया तो जीत से ज्यादा नुकसान होगा


Taiwan Strengthens Defense Europe Alliance: दुनिया की राजनीति आज ऐसी हो गई है कि कभी किसके साथ कौन खड़ा हो जाए, कहना मुश्किल. ताइवान भी इसी दुविधा में फंसा है. चीन के दबाव के बीच उसने हमेशा अमेरिका को अपना सबसे बड़ा सुरक्षा-साथी माना है. लेकिन अब ट्रंप के फिर से राष्ट्रपति बनने के बाद ताइवान इस बात से परेशान है कि कहीं अमेरिका का भरोसा कमजोर न पड़ जाए. इसी अनिश्चितता के बीच ताइवान ने अपनी रणनीति बदलनी शुरू कर दी है. वह अब खुद को मजबूत कर रहा है और अमेरिका के अलावा यूरोप की तरफ भी हाथ बढ़ा रहा है.

Taiwan Strengthens Defense Europe Alliance: ट्रंप की वापसी और बढ़ती बेचैनी

पहले कार्यकाल में ट्रंप ने ताइवान को मजबूत सपोर्ट दिया था हथियार बेचे, बड़े पदों के लोग ताइपे गए और चीन को सख्त मैसेज मिला. ताइवान भी निश्चिंत था क्योंकि उसकी सबसे बड़ी ताकत “सिलिकॉन शील्ड” यानी दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण चिप इंडस्ट्री अमेरिका की AI और टेक शक्ति को बनाए रखती है. लेकिन अब ट्रंप की प्राथमिकताएं बदलती दिख रही हैं. उनका ध्यान चीन के साथ नई ट्रेड डील पर है. उन्होंने यह भी कहा कि ताइवान भी अमेरिका-चीन बातचीत का हिस्सा हो सकता है. साथ ही हथियारों की डिलीवरी में देरी और व्यापार शुल्कों ने ताइवान की चिंता और बढ़ा दी है. सवाल यह है कि अगर अमेरिका सुरक्षा गारंटी कम कर दे, तो ताइवान क्या करेगा?

रक्षा खर्च में बड़ा इजाफा

राष्ट्रपति लाई चिंग-ते ने इस स्थिति को देखते हुए साफ कर दिया है कि ताइवान अब अपनी सुरक्षा में भारी निवेश करेगा. उन्होंने घोषणा की है कि 2026 तक रक्षा खर्च जीडीपी के 3% से ज्यादा और 2030 तक 5% तक किया जाएगा. एक नई एयर डिफेंस प्रणाली “टी-डोम” बनाई जाएगी और 33 बिलियन डॉलर का अतिरिक्त रक्षा बजट भी तैयार है, जिसका बड़ा हिस्सा अमेरिका से हथियार खरीदने में लगेगा. यह सिर्फ चीन को चेतावनी नहीं, बल्कि अमेरिका को भरोसा दिलाने की कोशिश भी है कि ताइवान अपनी रक्षा को लेकर गंभीर है.

यूरोप तक पहुंच बढ़ाकर बैकअप तैयार

अमेरिका पर निर्भरता कम करने के लिए ताइवान अब यूरोप की तरफ भी रणनीतिक पहुंच बढ़ा रहा है. यूक्रेन युद्ध के बाद यूरोपीय देश अपने हथियार और सुरक्षा पर अधिक खर्च कर रहे हैं. ताइवान ने इसी मौके का फायदा उठाया है. ताइपे में हाल ही में हुए डिफेंस एक्सपो में यूरोप की मौजूदगी काफी बढ़ी. जर्मनी और एयरबस जैसे बड़े खिलाड़ी ड्रोन सिस्टम लेकर पहुंचे और पोलैंड-यूक्रेन के साथ ड्रोन निर्माण समझौते भी हुए. यह साझेदारी ताइवान को नई तकनीक और विशेषज्ञता देगी, पर चीन को भड़काने से बचने के लिए इसे चुपचाप बढ़ाया जा रहा है.

घरेलू राजनीति बनी चुनौती

जहां सरकार रक्षा खर्च बढ़ाने पर जोर दे रही है, वहीं विपक्ष इसे लेकर सवाल उठा रहा है. कुओमितांग के नए नेता चेंग ली-वुन जैसे नेता कह रहे हैं कि इतना खर्च जरूरी नहीं और इससे अमेरिका का रवैया भी शायद न बदले. यानी ताइवान की सुरक्षा रणनीति को देश के अंदर से भी चुनौती मिल रही है. ताइवान की पूरी कोशिश चीन को यह संदेश देने की है कि हम पर हमला करना, जीत से ज्यादा नुकसान कर देगा. यही वजह है कि ताइवान एक साथ तीन काम कर रहा है अपनी रक्षा क्षमता बढ़ाना, यूरोपीय देशों के साथ संबंध मजबूत करना और अमेरिका के साथ रिश्ते बनाए रखना. 

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