इतिहास का सबसे बड़ा ड्रग साम्राज्य! 18 साल की महारानी कैसे बनी दुनिया की सबसे खतरनाक डीलर, कोकीन से बढ़ाती थीं कॉन्फिडेंस
History Biggest Drug Empire: सोचिए, दुनिया के सबसे बड़े ड्रग साम्राज्यों में कोई पाब्लो एस्कोबार या एल चापो नहीं. वहां बैठी थी ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया. हां, वही रानी जो चित्रों में गंभीर और सभ्य दिखती हैं. लेकिन लेखक सैम केली की किताब ‘Human History on Drugs: An Utterly Scandalous but Entirely Truthful Look at History Under the Influence’ बताती है कि महारानी विक्टोरिया उस समय इतिहास के सबसे बड़े नशीले पदार्थों के धंधे पर राज करती थीं. केली के अनुसार, एस्कोबार और एल चापो उस समय के नशे के कारोबार में “गली के छोटे सौदागर” लगते थे.
History Biggest Drug Empire: महारानी विक्टोरिया और उनका ड्रग्स का शौक
1837 में जब सिर्फ 18 साल की उम्र में विक्टोरिया ने ब्रिटेन की गद्दी संभाली, तो लोग सोचते होंगे, “यंग रानी, नई शुरुआत!” लेकिन रानी की सुबह की शुरुआत थोड़ी… अलग थी. अफीम, कोकीन, भांग, क्लोरोफॉर्म… हां, ये सब उनके रोजमर्रा के हिस्से थे. यानी, रॉयल लाइफस्टाइल सिर्फ ताज और शाही कपड़े नहीं, बल्कि ड्रग्स का बड़ा घूंट भी थी.
महारानी विक्टोरिया के ड्रग्स के शौक की बातें अक्सर इतिहासकारों और बायोग्राफरों द्वारा उजागर की गई हैं. केली के अनुसार, विक्टोरिया को अफीम बहुत पसंद थी. लेकिन वो इसे पाइप से नहीं पीती थीं. 19वीं सदी के ब्रिटेन में फैशनेबल तरीका था इसे लॉडानम में लेना अफीम और शराब का मिश्रण. हर सुबह रानी इसे बड़ा घूंट पीकर दिन की शुरुआत करती थीं. उनका मानना था, “एक शाही लड़की का दिन बिना लॉडानम के शुरू नहीं होता कोकीन उनके पास था, लेकिन सिगरेट या इंजेक्शन नहीं. इसे च्युइंग गम की तरह चबाया जाता था. दिनभर के शाही काम-काज और राज्य की बैठकों में कॉन्फिडेंस की खुराक थी ये.
महारानी का ये नशा सिर्फ उनके लिए नहीं था. इतिहासकार और बायोग्राफर बताते हैं कि इस आदत का असर ब्रिटेन के फैसलों और शासन पर भी पड़ा. शाही ड्रग्स ने महाद्वीप के लोगों के जीवन में भी अपनी छाप छोड़ी. आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए वह कोकीन का सेवन करती थीं, जबकि मासिक धर्म की तकलीफ कम करने के लिए भांग का उपयोग करती थीं. प्रसव के समय दर्द को कम करने के लिए उनका भरोसा क्लोरोफॉर्म पर भी था.
History Biggest Drug Empire: चाय की लालसा का समाधान
1837 में जब विक्टोरिया ने राजगद्दी संभाली, उन्हें ब्रिटेन की चीनी चाय पर निर्भरता जैसी बड़ी समस्या विरासत में मिली. चाय के आयात से ब्रिटिश चांदी का भंडार खत्म हो रहा था. ब्रिटिश साम्राज्य को ऐसे व्यापारी समाधान की तलाश थी, और अफीम वही समाधान बन गया. अफीम की खेती ब्रिटिश-नियंत्रित भारत में की जाती थी और बड़ी मात्रा में चीन को बेची जाती थी. केली के अनुसार, “चीन को चाय पर खर्च की गई सारी चांदी, और उससे भी ज्यादा, चुकाने के लिए मजबूर होना पड़ा. अब घाटे में ब्रिटेन नहीं, बल्कि चीन था.” जल्द ही अफीम की बिक्री ब्रिटिश वार्षिक राजस्व का 15% से 20% तक हो गई.
चीन का विरोध और अफीम युद्ध
1839 में चीन के उच्च अधिकारी लिन जेक्सू ने अफीम व्यापार को रोकने की कोशिश की और महारानी विक्टोरिया से अपील की, लेकिन रानी ने उनकी एक न सुनी. इसके बाद लिन ने 25 लाख पाउंड ब्रिटिश अफीम जब्त करके नष्ट कर दिया. इसका नतीजा पहला अफीम युद्ध हुआ, जिसमें चीन हार गया और हांगकांग ब्रिटिशों को सौंप दिया गया. इसके अलावा, नए बंदरगाह खोले गए और ब्रिटिश नागरिक चीनी कानून से मुक्त हो गए. इतिहासकार केली बताते हैं कि महारानी विक्टोरिया ने इस तरह यह दिखा दिया कि “चीन को हराया जा सकता है, और वह भी काफी आसानी से,” और यह पूरी लड़ाई साम्राज्य और लाभ की जीत बनकर सामने आई.
रानी की कुछ सीमाएं भी थीं. वह कोकीन को “सुरक्षित, स्वस्थ ऊर्जा वर्धक” मानती थीं, लेकिन इसे चीन को बेचने से मना कर दिया. केली लिखते हैं कि वह उन्हें दुनिया की सारी अफीम बेचकर खुश थीं, लेकिन बेहतर होगा कि वे उसकी कोकीन को हाथ भी न लगाएं.
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