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भारत-रूस की दोस्ती क्यों नहीं टूटती? 


India Russia Friendship:  यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद पश्चिमी देशों को यह विश्वास था कि रूस धीरे-धीरे वैश्विक मंच पर अकेला पड़ जाएगा. उन्हें लगा था कि रूस के पास समर्थन देने वाले देश बहुत कम बचेंगे. लेकिन तीन साल पूरे होने के बाद तस्वीर बिल्कुल अलग है. रूस न केवल अपने पुराने सहयोगियों को बनाए हुए है, बल्कि भारत जैसे देशों के साथ उसके रिश्ते और गहरे हुए हैं. पश्चिम लगातार रूस-चीन या रूस-ईरान संबंधों को ज्यादा महत्व देता है, लेकिन भारत-रूस की दोस्ती को अक्सर नजरअंदाज कर देता है.

ऐतिहासिक और टिकाऊ रिश्ता (India Russia Friendship) 

भारत और रूस का रिश्ता दशकों पुराना है और समय की हर परीक्षा में यह और मजबूत साबित हुआ है. चाहे शीतयुद्ध का दौर हो या 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध, रूस हमेशा भारत के साथ खड़ा रहा. यही वजह है कि भारत में रूस को लेकर भरोसा गहरा है. पश्चिमी देशों पर जहां आम भारतीय अक्सर सवाल उठाते हैं, वहीं रूस को एक भरोसेमंद साथी के रूप में देखते हैं.

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ट्रंप का टैरिफ और भारत की नीति  (India Russia Friendship) 

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 25% टैरिफ लगाकर दबाव बनाने की कोशिश की, ताकि भारत रूस से दूरी बनाए. लेकिन भारत ने साफ कर दिया कि वह रूस से कच्चा तेल खरीदना जारी रखेगा. अमेरिकी एक्सपर्ट जेफ कुसिक ने भी माना कि भारत ने रूस से हथियारों की खरीद भले ही कम की हो, लेकिन रूस के साथ रिश्तों में उसका भरोसा जरा भी नहीं डगमगाया है. भारत का रुख हमेशा संतुलित रहा है. उसने न तो पश्चिमी देशों का यूक्रेन युद्ध पर नजरिया अपनाया और न ही रूस का अंध समर्थन किया. इसके बजाय भारत ने युद्ध खत्म करने और शांति बहाल करने का निष्पक्ष आह्वान किया.

नेताओं के बीच गहरी समझ  (India Russia Friendship) 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच नजदीकी रिश्ते ने भी इस दोस्ती को और मजबूत बनाया है. दोनों नेताओं की सार्वजनिक मुलाकातों और बातचीत से यह साफ झलकता है कि भारत-रूस संबंध विश्वास और सम्मान पर आधारित हैं. भारत ने रूस को कभी यह अहसास नहीं होने दिया कि अमेरिका या यूरोप के साथ बढ़ते रिश्तों से उसका महत्व कम हुआ है. यही कारण है कि रूस भी भारत से संतुलित संबंधों की उम्मीद रखता है.

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हथियारों पर निर्भरता कम, पर भरोसा कायम  (India Russia Friendship) 

पिछले एक दशक में भारत ने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़े कदम उठाए हैं. मेड इन इंडिया हथियारों और अन्य देशों से डिफेंस डील्स के जरिए रूस पर निर्भरता कम की है. इसके बावजूद भारत और रूस के बीच लाइसेंस आधारित हथियार उत्पादन जारी है, जैसे – टी-90 टैंक और सु-30 एमकेआई फाइटर जेट्स.

ऊर्जा और आर्थिक सहयोग  (India Russia Friendship) 

आर्थिक मोर्चे पर भारत-रूस सहयोग और तेजी से बढ़ा है. पश्चिम से दूर होने के बाद रूस ने भारत को छूट पर तेल और कोयला बेचा, जिससे भारत की ऊर्जा जरूरतें पूरी हुईं. इसके अलावा दोनों देशों के बीच उर्वरक, बीज तेल और दवाइयों का व्यापार भी बढ़ा है. रुपया-रूबल में कारोबार ने इस सहयोग को और सुगम बना दिया है. भले ही निवेश और बुनियादी ढांचे में कुछ चुनौतियां हैं, लेकिन न्यू डेवलपमेंट बैंक जैसे प्रोजेक्ट्स इस साझेदारी को और मजबूत बना रहे हैं.

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भारत और रूस का रिश्ता सिर्फ सामरिक सहयोग तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आपसी भरोसे, संतुलन और ऐतिहासिक जुड़ाव पर आधारित है. पश्चिमी देशों की लाख कोशिशों के बावजूद यह नींव हिली नहीं. यही कारण है कि आज भी भारतीय जनता रूस को ‘सच्चा दोस्त’ मानती है, जबकि अमेरिका और यूरोप को संदेह की नजर से देखती है. मौजूदा भू-राजनीतिक हालात में भी यह रिश्ता उतना ही मजबूत है और आने वाले समय में और गहराने की पूरी संभावना है.