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6 दिनों तक पेशाब पीकर पत्रकार ने बचाई अपनी जान, जानें कैसे हुआ हादसा?


American Journalist: नॉर्वे के फोल्गेफोन्ना नेशनल पार्क से एक ऐसी घटना सामने आई है, जिसने हर किसी को हैरान कर दिया. 38 वर्षीय अमेरिकी जलवायु पत्रकार एलेक लुहन वहां छुट्टियां मनाने गए थे, लेकिन एक भीषण हादसे ने उनकी जिंदगी को मौत से जंग में बदल दिया. लुहन छह दिनों तक जंगलों और पहाड़ों में फंसे रहे, जहां जीवित रहने के लिए उन्होंने न सिर्फ अपना मूत्र पिया बल्कि एक फफोले से निकले खून तक को चूसना पड़ा.

छुट्टियों की ट्रिप बनी भयावह अनुभव (American Journalist)

जुलाई के आखिर में एलेक लुहन अपनी पत्नी के साथ नॉर्वे घूमने पहुंचे थे. अनुभवी हाइकर होने के नाते वे अकेले ही पर्वतारोहण पर निकल गए और अपनी पत्नी को यात्रा कार्यक्रम मैसेज कर दिया. इस दौरान उनकी पत्नी इंग्लैंड चली गईं. लेकिन जिस ट्रेक की शुरुआत उन्होंने आत्मविश्वास से की थी, वह कुछ ही घंटों में एक भयानक हादसे में बदल गई.

हादसे की शुरुआत: जूते का सोल निकला, बैलेंस बिगड़ा

हाइक के शुरूआती समय में ही उनके बाएं जूते का सोल उखड़ने लगा. उन्होंने एथलेटिक टेप से उसे बांध तो लिया, लेकिन इसका असर संतुलन और पकड़ पर पड़ा. लगभग 4,000 फीट की ऊंचाई पर जब रात का अंधेरा घिरने लगा, तो उन्होंने कैंपिंग करने के बजाय आगे बढ़ने का फैसला किया. इसी दौरान उनका पैर फिसला और वे खतरनाक तरीके से पहाड़ से नीचे लुढ़कते चले गए.

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पहाड़ से गिरकर कई हड्डियां टूटीं

एलेक लुहन “पिनबॉल” की तरह चट्टानों से टकराते हुए नीचे गिरे. इस दौरान उनकी जांघ की हड्डी टूट गई, पेल्विस और रीढ़ की हड्डी (वर्टिब्रा) में फ्रैक्चर हो गया, हाथों पर गहरे घाव और सिर में चोट लगी. उनका बैकपैक फट गया और साथ रखा जरूरी सामान फोन, पानी की बोतल सब खो गया. जब वे रुके, तब तक उनकी हालत गंभीर हो चुकी थी.

पानी की तलाश में मूत्र बना सहारा

गंभीर चोटों और लगातार दर्द के बीच सबसे बड़ी चुनौती थी पानी की कमी. बिना पानी के खाना निगलना भी असंभव था. मजबूरी में उन्होंने अपना मूत्र पीना शुरू किया. उन्होंने बताया कि उन्होंने पेशाब को पानी के पाउच में जमा किया और धीरे-धीरे पिया ताकि हाइड्रेशन बनी रहे और थोड़ा खाना निगला जा सके.

पत्नी की चिंता और खोज अभियान

इस बीच लंदन में उनकी पत्नी को चिंता तब हुई जब लुहन अपनी वापसी की फ्लाइट से न पहुंचे. उन्होंने तुरंत नॉर्वे के अधिकारियों को सूचना दी. लेकिन खराब मौसम के चलते खोज अभियान शुरू करने में देरी हुई. कई दिनों तक रेस्क्यू टीम उन्हें नहीं ढूंढ पाई.

हेलीकॉप्टर ने देखा

6 अगस्त को यानी हादसे के लगभग एक हफ्ते बाद, आखिरकार किस्मत ने लुहन का साथ दिया. एक हेलीकॉप्टर उनके इलाके से गुजरा. पहले तो बचाव दल उन्हें देखे बिना निकल गया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. उन्होंने तंबू का खंभा और रूमाल मिलाकर एक अस्थायी झंडा बनाया और पूरी ताकत से लहराते हुए मदद के लिए चिल्लाते रहे. अंततः हेलीकॉप्टर रुका और उन्हें बचा लिया गया.

अस्पताल में मिला सुकून

अस्पताल पहुंचने पर जब वे अपनी पत्नी से मिले तो उनकी आंखों से आंसू रुक नहीं पाए. उन्होंने कहा कि यह अनुभव उनकी जिंदगी का सबसे कठिन दौर था. उन्हें लगा था कि शायद वे मर जाएंगे और कभी अपने परिवार को नहीं देख पाएंगे. लेकिन छह दिनों की उस जंग ने उनके जीने के नजरिए को हमेशा के लिए बदल दिया.

एलेक लुहन ने सीएनएन से बातचीत में कहा कि यह हादसा किसी आपदा फिल्म की तरह था. पहाड़ पर बिताए वे दिन उन्हें हमेशा याद रहेंगे. उन्होंने कहा, “मुझे लगा कि अब मैं अपनी पत्नी, माता-पिता और भाई-बहनों को कभी नहीं देख पाऊंगा. यह सोच मेरे लिए सबसे ज्यादा दर्दनाक थी. लेकिन अब मैं जीवन को नए नजरिए से देखता हूं. हर सांस मेरे लिए कीमती है.”