World First Nation Relocation: प्रशांत महासागर में बसा तुवालू एक छोटा लेकिन खूबसूरत द्वीप देश है जो अब जलवायु परिवर्तन के सबसे खतरनाक उदाहरणों में से एक बन चुका है. औसतन महज 2 मीटर ऊंचाई वाले इस देश का अस्तित्व ही अब खतरे में है. लगातार बढ़ते समुद्र-स्तर ने यहां की जमीन को धीरे-धीरे निगलना शुरू कर दिया है, और वैज्ञानिक चेतावनी दे चुके हैं कि आने वाले दशकों में यह देश पूरी तरह डूब सकता है. इसी खतरे को देखते हुए तुवालू ने वह फैसला लिया है, जो अब तक दुनिया के किसी भी राष्ट्र ने नहीं लिया पूरे देश की आबादी को योजनाबद्ध तरीके से दूसरे देश में बसाने की तैयारी.
World First Nation Relocation Tuvalu in Hindi: 25 वर्षों में डूब सकता है अधिकांश भूभाग
Wired की रिपोर्ट के मुताबिक, कई अध्ययनों ने चेताया है कि अगले 25 वर्षों में तुवालू का बड़ा हिस्सा समुद्र के नीचे होगा. नौ कोरल द्वीपों और एटोल से बना यह देश पहले ही दो द्वीप खो चुका है, जो लगभग पूरी तरह डूब चुके हैं. यहां की आबादी महज 11,000 है, लेकिन हर तूफानी लहर और बाढ़ के साथ उनका घर-आंगन सिकुड़ता जा रहा है. नासा के Sea Level Change Team के आंकड़ों के अनुसार, 2023 में तुवालू का समुद्र-स्तर पिछले 30 वर्षों की तुलना में 15 सेंटीमीटर अधिक था. मौजूदा रफ्तार से 2050 तक देश का अधिकांश भूभाग और बुनियादी ढांचा लहरों के नीचे होगा.
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ऑस्ट्रेलिया में सुरक्षित ठिकाना
इस संकट से निपटने के लिए तुवालू और ऑस्ट्रेलिया ने 2023 में फालेपिली यूनियन संधि (Falepili Union Treaty) पर हस्ताक्षर किए. इसके तहत हर साल 280 तुवालू नागरिकों को ऑस्ट्रेलिया में स्थायी निवास मिलेगा, साथ ही स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास और रोजगार के पूरे अधिकार भी. पहले चरण के लिए आवेदन 16 जून से 18 जुलाई तक हुए, जिसमें 8,750 लोगों (परिवार सहित) ने पंजीकरण कराया. पहले 280 लोगों का चयन 25 जुलाई को लॉटरी से किया जाएगा.
ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री पेनी वोंग ने कहा कि यह कार्यक्रम तुवालूवासियों को “जलवायु प्रभाव बढ़ने के साथ गरिमा के साथ बसने” का मौका देगा. वहीं, तुवालू के प्रधानमंत्री फेलेटी टेओ ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील करते हुए समुद्र-स्तर में वृद्धि से जूझ रहे देशों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक नई वैश्विक संधि की मांग की.
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आबादी का तेजी से कम होना तय
विशेषज्ञों का अनुमान है कि ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में मौजूद अन्य प्रवासन रास्तों को मिलाकर, हर साल तुवालू की लगभग 4% आबादी पलायन कर सकती है. UNSW सिडनी के Kaldor Centre for International Refugee Law की जेन मैकएडम के मुताबिक, “एक दशक में करीब 40% आबादी देश छोड़ सकती है, हालांकि कुछ लोग लौट भी सकते हैं या आना-जाना जारी रख सकते हैं.” (World First Nation Relocation Tuvalu Due To Climate Change)