Iran Israel War :आज भले इस्राइल और ईरान एक-दूसरे को दुनिया के नक्शे से मिटाने की जंग लड़ रहे हैं, लेकिन दोनों के बीच रिश्ते हमेशा ऐसे नहीं थे. वर्ष 1948 में जब इस्राइल ने खुद को यहूदी राष्ट्र घोषित किया, ईरान इसे खामोश मान्यता देनेवाले चंद मुस्लिम देशों में शामिल था. ईरान के तत्कालीन शासक शाह मोहम्मद रजा पहलवी और इस्राइल की सरकार के बीच मजबूत राजनयिक और सैन्य संबंध थे. दोनों को अमेरिकी सरपरस्ती हासिल थी. ईरान से इस्राइल को तेल की आपूर्ति होती थी, तो बदले में ईरान को इस्राइल की तरफ से खुफिया ट्रेनिंग और तकनीकी मदद दी जाती थी. 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद दोनों देशों के बीच रिश्ते पूरी तरह बदल गये. दोनों देश एक दूसरे के दुश्मन हो गये और एक दूसरे को अपने अस्तित्व पर सबसे बड़ा खतरा मानने लगे. ईरान ने खुले तौर पर इस्राइल को छोटा शैतान की संज्ञा से नवाजा.
ईरान का परमाणु कार्यक्रम और इस्राइल का डर
पहलवी शासकों के दौर में अमेरिका ने 1950 के दशक में ईरान को अपना परमाणु कार्यक्रम शुरू करने में सहायता दी थी. ईरान ने परमाणु अप्रसार संधि पर दस्तखत किया था (जिससे अब उसने अलग होने की धमकी दी है). यह परमाणु कार्यक्रम विद्युत उत्पादन और परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के लिए था. लेकिन, 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद अमेरिका और ईरान के बीच राजनयिक रिश्ते खत्म हो गये और परमाणु कार्यक्रम में अमेरिकी सहयोग भी खत्म हो गया. बाद में इराक युद्ध के समय ईरान के परमाणु कार्यक्रम को गुप्त रूप से जीवित किया गया. 2002 में नतान्ज और अराक में अघोषित यूरेनियम संवर्धन संयंत्रों का पता चला, तो 2009 में फोरदोव के भूमिगत ईंधन संवर्धन प्लांट का पता दुनिया को चला. विभिन्न दावों के मुताबिक ईरान ने यूरेनियम को 60 फीसदी तक संवर्धित कर लिया है और यह परमाणु बम बनाने के लिए 90 फीसदी संवर्धन के लक्ष्य तक पहुंचने के बेहद करीब है. अमेरिका और इस्राइल का दावा है कि ईरान कुछ हफ्तों के भीतर एक से सात परमाणु बम बनाने के लायक वेपन ग्रेड संवर्धित यूरेनियम जमा कर सकता है. इस्राइल की मानें तो उसने अपने अस्तित्व की रक्षा और ईरान के परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम को रोकने के लिए उस पर हमला किया है.
परमाणु वार्ता और समझौते की कोशिशें
जुलाई 2015 में पी5+1 देशों अमेरिका और ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, चीन, जर्मनी ने ईरान के साथ एक ऐतिहासिक परमाणु समझौता किया, जिसे जॉइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (जेसीपीओए) कहा गया. इस समझौते के तहत ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने और अंतरराष्ट्रीय निरीक्षण को स्वीकार करने पर सहमति जताई.
इस्राइल ने ईरान पर लगाया झूठ बोलने का आरोप
अप्रैल 2018 में इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने गुप्त परमाणु दस्तावेजों के हवाले से ईरान पर झूठ बोलने और अपनी प्रतिबद्धताओं का पालन नहीं करने का आरोप लगाया. इसके बाद मई 2018 में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप 2015 के परमाणु समझौते (जेसीपीओए) से बाहर निकल गये ईरान पर नये आर्थिक प्रतिबंध लगाए गये.
हमास का इस्राइल पर हमला और गाजा में युद्ध की शुरुआत
7 अक्तूबर, 2023 को हमास के आतंकवादियों ने दक्षिणी इस्राइल पर एक बड़ा और अप्रत्याशित हमला किया, जिसमें सैकड़ों इस्राइली नागरिक मारे गये और कई को बंधक बना लिया गया. इस हमले ने दशक की सबसे भीषण हिंसा को जन्म दिया. जवाब में इस्राइल ने गाजा पट्टी पर व्यापक सैन्य अभियान शुरू किया, जिससे वहां एक पूर्ण युद्ध छिड़ गया. इस संघर्ष में ईरान ने हमास और अन्य क्षेत्रीय सहयोगियों का समर्थन किया, जिससे ईरान और इस्राइल के बीच तनाव और अधिक बढ़ गया.
अप्रैल 2024: इस्राइल और ईरान युद्ध की पहली झलक
इस्राइल और ईरान के बीच दशकों के तनाव के बाद पहली बार खुले तौर पर प्रत्यक्ष सैन्य हमले हुए. ईरान ने इस्राइल पर मिसाइल और ड्रोन हमले किये, जो अब तक की सबसे बड़ी हमलावर कार्रवाई मानी गयी. इसके जवाब में इस्राइल ने ईरान के अंदर कई ठिकानों को निशाना बनाते हुए हवाई हमले किए, जिन्हें सैन्य ठिकाने बताया गया. यह घटनाक्रम दोनों देशों को शैडोवार से बाहर निकल कर एक खुले और खतरनाक टकराव की दिशा में ले आया.
दो हत्याएं, जिससे बौखलाया ईरान
31 जुलाई 2024 को इ्स्राइल ने एक गुप्त ऑपरेशन में तेहरान में हमास के नेता इस्माइल हनीयेह की हत्या कर दी. यह हमला ईरान की राजधानी में हुआ. इस्राइल का दावा था कि हनीयेह हमास के हमलों की योजना बनाने और उन्हें निर्देशित करने में प्रमुख भूमिका निभा रहे थे. इससे पूरे क्षेत्र में तनाव और अस्थिरता और अधिक बढ़ गयी.
27 सितंबर 2024 को इस्राइल ने एक सटीक हवाई हमले में हिजबुल्लाह के प्रमुख नेता हसन नसरल्लाह की हत्या कर दी. यह हमला लेबनान के बेरूत में हिजबुल्लाह के एक सुरक्षित ठिकाने को निशाना बनाकर किया गया. यह घटना इस्राइल और ईरान समर्थित हिजबुल्लाह के बीच लंबे समय से जारी तनाव में एक निर्णायक मोड़ साबित हुई.
इस्राइल पर ईरान का बड़ा मिसाइली हमला और इस्राइल का पलटवार
हिज़्बुल्लाह नेता हसन नसरल्लाह की हत्या के बाद 1 अक्तूबर, 2024 को ईरान ने इस्राइल पर 180 बैलिस्टिक मिसाइलें दागी. यह ईरान की ओर से अब तक की सबसे बड़ी प्रत्यक्ष मिसाइल कार्रवाई थी, जिसे एक स्पष्ट और खुले युद्ध की चेतावनी के रूप में देखा गया. जवाबी कार्रवाई में 26 अक्तूबर, 2024 को इस्राइल ने ईरान के सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले किये. ईरान की फार्स न्यूज एजेंसी के अनुसार हमले देश के पश्चिमी, दक्षिणी हिस्सों और राजधानी तेहरान में स्थित कई सैन्य अड्डों को निशाना बनाकर किये गये
ईरान के खिलाफ इस्राइल की गुप्त कार्रवाइयों का लंबा है इतिहास
2010-ईरान पर साइबर हमला : दुनिया को ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर हुए एक बड़े साइबर हमले के बारे में पता चला, जो कई महीनों पहले शुरू हुआ था. इस साइबर हमले को बाहरी विश्लेषकों ने स्टक्सनेट नाम दिया. इसमें ईरान के नतान्ज संयंत्र में यूरेनियम संवर्धन के लिए इस्तेमाल होने वाले 10 प्रतिशत से अधिक सेंट्रीफ्यूज नष्ट हो गये. हालांकि, इन मशीनों को जल्दी ही बदल दिया गया. बाद में अमेरिकी अधिकारियों के बयानों के हवाले से मीडिया रिपोर्टों में बताया गया कि इस साइबर हमले के पीछे अमेरिका और इस्राइल के विशेषज्ञ शामिल थे.
अगस्त 2019- ईरान समर्थित समूहों पर हमले : मध्य पूर्व में ईरान समर्थित समूहों पर कई रहस्यमय हमले हुए, जिसमे इस्राइल का हाथ होने की संभावना जताई गई. इराक में ईरानी समर्थन प्राप्त मिलिशिया ठिकानों पर विस्फोट हुए, वहीं सीरिया और लेबनान में भी हिजबुल्लाह जैसे ईरान समर्थित गुटों को निशाना बनाया गया.
नवंबर 2020 – ईरान के परमाणु वैज्ञानिक की हत्या: ईरान के शीर्ष परमाणु वैज्ञानिक मोहन फखरीजादेह की तेहरान के पास एक हमले में हत्या कर दी गयी. ईरान 2010 से 2012 के बीच संदिग्ध परिस्थितियों में मारे गये परमाणु कार्यक्रम से जुड़े अपने चार वैज्ञानिक की हत्या का जिम्मेदार भी इस्राइल को बताता रहा है.
अप्रैल 2021- परमाणु संयंत्र में ब्लैकआउट : ईरान के नतान्ज परमाणु संयंत्र में एक बड़ा ब्लैकआउट हुआ, जिससे यूरेनियम संवर्धन गतिविधियों में बाधा आई.
ईरान के प्रॉक्सी, जिनसे घिरा है इस्राइल
मध्य पूर्व के कई देशों में ईरान ने प्रॉक्सी संगठन खड़े किये. इन संगठनों को ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (आईआरजीसी) का विंग्स कुद्स फोर्स हथियार से लेकर पैसे और ट्रेनिंग की सुविधा उपलब्ध करवाता रहा है. ये प्रॉक्सी हैं-
हिजबुल्लाह : दक्षिण लेबनान में सक्रिय हिजबुल्लाह के पास 1.30 लाख से भी अधिक रॉकेट्स हैं और यह दुनिया का सबसे खतरनाक नॉन स्टेट एक्टर माना जाता है. बीते वर्ष से जारी इस्राइल हमास संघर्ष में हिजबुल्लाह के प्रमुख नेता सैय्यद हसन नसरल्लाह समेत इसके कई कमांडर मारे जा चुके हैं.
हमास : फिलिस्तीन में सक्रिय हमास की फंडिंग, ट्रेनिंग और हथियार की सप्लाई ईरान करता रहा है. हमास की शुरुआत 1987 में मुस्लिम ब्रदरहुड की एक शाखा के रूप में हुई थी. यह संगठन फिलिस्तीनी जमीन पर इजरायल के अस्तित्व का विरोध करता है.
हूती विद्रोही : हूती यमन के अल्पसंख्यक शिया ‘जैदी’समुदाय का एक हथियारबंद समूह है. यह संगठन स्वयं को हमास और हिजबुल्लाह के साथ मिलकर इस्राइल, अमेरिका और पश्चिमी देशों के खिलाफ ईरान के नेतृत्व वाली प्रतिरोध की धुरी का हिस्सा बताता है.
वार्ता की घोषणा के ठीक बाद युद्ध की शुरुआत
अप्रैल/मई 2025 में डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के साथ परमाणु वार्ता को फिर से शुरू करने की घोषणा की. इसके साथ ही ट्रंप ईरान समर्थित यमनी हूथी विद्रोहियों के साथ एक युद्धविराम की भी घोषणा की. लेकिन, 13 जून, 2025 की सुबह ईरान और इस्राइल के बीच दशकों से चला या रहा तनाव खुले युद्ध में बदल गया जब इस्राइल ने ईरान के परमाणु स्थलों और सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया. जवाबी कार्रवाई करते हुए ईरान ने इस्राइली सैन्य ठिकानों पर मिसाइलें दागीं. इस लड़ाई के दसवें दिन अमेरिका द्वारा ईरान के परमाणु ठिकानों पर हवाई हमले किये जाने से इस युद्ध ने एक अलग और खतरनाक रुख ले लिया.
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