South Korea Presidential Election 2025: साउथ कोरिया में बीते छह महीनों की राजनीतिक उथल-पुथल के बीच आज एक नया अध्याय शुरू हो गया है. लिबरल पार्टी के नेता ली जे-म्युंग ने राष्ट्रपति चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज की है. उन्हें 49.3% से अधिक वोट मिले हैं, जबकि मुख्य प्रतिद्वंद्वी किम मून-सू ने हार स्वीकार कर ली है. इस बार मतदान प्रतिशत भी खासा ऊंचा रहा 80% से ज्यादा जो कि पिछले 27 वर्षों में सबसे अधिक है.
क्यों कराना पड़ा विशेष चुनाव?
यह विशेष चुनाव देश में बीते महीनों के अस्थिर हालात को देखते हुए कराए गए. पूर्व राष्ट्रपति यून सुक येओल ने अचानक मार्शल लॉ लगाने का ऐलान कर दिया था. जिससे देशभर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए.भारी जनदबाव के बाद यून को न केवल अपना फैसला वापस लेना पड़ा, बल्कि लाइव टीवी पर सार्वजनिक रूप से माफी भी मांगनी पड़ी.
14 दिसंबर को संसद ने यून पर महाभियोग चलाया, जिससे वे पद से निलंबित हो गए. हालांकि कोर्ट ने अंतिम फैसला आने तक छह महीने की मोहलत दी थी. इस दौरान हान डक-सू कार्यवाहक राष्ट्रपति बने, लेकिन एक विशेष विधेयक पर साइन न करने के कारण उन पर भी महाभियोग चलाया गया. बाद में वित्त मंत्री चोई संग-मोक ने कार्यवाहक राष्ट्रपति का पद संभाला.
कौन हैं नए राष्ट्रपति ली जे-म्युंग?
ली जे-म्युंग 1963 में ग्योंगबुक प्रांत के एंडोंग के एक गरीब परिवार में जन्मे, एक प्रेरणादायक जीवन जी चुके हैं. अपने शुरुआती दिनों में उन्होंने फैक्ट्री में मजदूरी की और बाद में मानवाधिकार वकील बने. लगभग 20 वर्षों तक वकालत के बाद वे 2005 में राजनीति में आए.
ली ने पहले सेओंगनाम शहर के मेयर और फिर ग्योंगगी प्रांत के गवर्नर के रूप में कार्य किया. उन्हें 2022 के राष्ट्रपति चुनाव में मामूली अंतर से हार मिली थी लेकिन 2025 के चुनाव में उन्होंने जोरदार वापसी की है. पूर्व राष्ट्रपति यून के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया में उनकी बड़ी भूमिका रही है. यही वजह थी कि लिबरल पार्टी ने उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया.
जानलेवा हमले से उबरकर जीती जंग
2024 में बुसान की यात्रा के दौरान ली जे-म्युंग पर एक जानलेवा हमला भी हुआ था. गर्दन पर 7 इंच लंबे चाकू से किए गए इस हमले में वे गंभीर रूप से घायल हो गए थे लेकिन इलाज के बाद पूरी तरह स्वस्थ होकर उन्होंने दोबारा राजनीतिक जिम्मेदारियों को संभाला.
क्या बदल सकता है ली जे-म्युंग का नेतृत्व?
ली जे-म्युंग की जीत साउथ कोरिया में लोकतंत्र की वापसी और नागरिक अधिकारों की रक्षा का प्रतीक मानी जा रही है. उनके सामने अब देश को राजनीतिक स्थिरता देने, अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को मजबूत करने की बड़ी चुनौती होगी. उनका पिछला प्रशासनिक अनुभव, जनसंपर्क और संघर्षशील छवि उन्हें इस चुनौती से पार पाने में मदद कर सकती है.