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डोनाल्ड ट्रंप का तू-तू, मैं-मैं, वीडियो देखें, दक्षिण अफ्रीका का भूमि कानून क्या है?


Donald Trump Angry Video Viral: वॉशिंगटन डी.सी. में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा के बीच हुई बैठक उस समय तनावपूर्ण हो गई जब ट्रंप ने दक्षिण अफ्रीका में श्वेत किसानों के खिलाफ कथित “नरसंहार” का मुद्दा उठाया. उन्होंने कुछ भ्रामक समाचार रिपोर्टें और वीडियो दिखाकर यह दावा किया कि श्वेत अफ्रीकी किसानों को हिंसा का सामना करना पड़ रहा है, उनकी जमीन छीनी जा रही है और वे जान बचाकर देश छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं.

ट्रंप के अनुसार, यह एक गहरी साजिश का हिस्सा है जिसमें श्वेत समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है. उन्होंने ओवल ऑफिस की रोशनी मंद करवा कर एक वीडियो चलाया जिसमें दक्षिण अफ्रीका के विवादास्पद विपक्षी नेता जूलियस मालेमा को “किल द बोअर, किल द फार्मर” जैसे भड़काऊ नारे लगाते दिखाया गया. इसके अलावा ट्रंप ने एक वीडियो भी दिखाया जिसमें हजारों सफेद क्रॉस नजर आ रहे थे, जिन्हें उन्होंने मारे गए श्वेत किसानों की कब्रें बताया. बाद में यह स्पष्ट हुआ कि वह वीडियो वास्तव में एक राजनीतिक प्रदर्शन का हिस्सा था, न कि कब्रिस्तान का.

भूमि अधिग्रहण कानून बना विवाद का केंद्र

इस पूरे विवाद की जड़ दक्षिण अफ्रीका का नया भूमि सुधार कानून है, जिसे जनवरी 2025 में राष्ट्रपति रामाफोसा ने साइन किया था. यह कानून सरकार को सार्वजनिक हित में किसी भी व्यक्ति की भूमि अधिग्रहण करने की अनुमति देता है, चाहे वह श्वेत हो या अश्वेत. इसका मकसद ऐतिहासिक रूप से वंचित समुदायों को भूमि मुहैया कराना, सार्वजनिक बुनियादी ढांचे का निर्माण, पर्यावरण संरक्षण और ग्रामीण विकास है.

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इस कानून के तहत उचित मुआवजे की व्यवस्था है, लेकिन कुछ परिस्थितियों में सरकार बिना मुआवजा दिए भी भूमि अधिग्रहण कर सकती है. यह कानून 1975 के उस पुराने भूमि अधिग्रहण अधिनियम की जगह लाया गया है जो रंगभेद शासन के दौरान लागू हुआ था और जिसे लेकर आज भी विवाद बना रहता है.

हालांकि इस नए कानून पर विरोध भी हुआ है. दक्षिण अफ्रीका की प्रमुख विपक्षी पार्टी डेमोक्रेटिक एलायंस (DA) और कुछ अफ्रीकी समूहों ने आशंका जताई है कि यह कदम श्वेत किसानों की जमीन जबरन छीने जाने का रास्ता खोल सकता है और इससे देश में संपत्ति का मूल्य भी प्रभावित हो सकता है.

ऐतिहासिक असमानता के खिलाफ कदम

दक्षिण अफ्रीका की कुल कृषि योग्य भूमि का लगभग 70% हिस्सा अब भी श्वेत नागरिकों के कब्जे में है, जबकि वे देश की कुल आबादी का केवल 7% हैं. वहीं देश की अश्वेत आबादी, जो बहुसंख्यक है, के पास जमीन का बहुत ही सीमित स्वामित्व है और वे आर्थिक रूप से भी वंचित हैं.

रामाफोसा सरकार का कहना है कि भूमि अधिग्रहण कानून इन ऐतिहासिक असमानताओं को खत्म करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है. सरकार का दावा है कि इस कानून से महिलाओं, विकलांगों और समाज के पिछड़े वर्गों को भूमि मिल सकेगी और देश की सामाजिक-आर्थिक विषमता को समाप्त किया जा सकेगा.

ट्रंप की नाराजगी और अमेरिकी कार्रवाई

ट्रंप इस कानून को श्वेत विरोधी बताते हुए लगातार निशाना साधते रहे हैं. उन्होंने फरवरी 2025 में दक्षिण अफ्रीका को दी जाने वाली अमेरिकी आर्थिक सहायता पर रोक लगा दी, जिसमें HIV/AIDS से जुड़ा प्रमुख कार्यक्रम PEPFAR भी शामिल था. यह फैसला पहले ही ट्रंप द्वारा वैश्विक सहायता निधियों पर रोक लगाने की नीति के तहत लिया गया था.

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इसके अलावा ट्रंप ने यह भी आरोप लगाया कि दक्षिण अफ्रीका ने नस्लीय भेदभाव करते हुए श्वेत अफ्रीकियों की जमीन जब्त करने के लिए यह कानून बनाया है. उन्होंने यह भी दावा किया कि दक्षिण अफ्रीका द्वारा दिसंबर 2023 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में इजरायल के खिलाफ गाजा में कथित नरसंहार का मुकदमा दायर करना अमेरिकी विदेश नीति के खिलाफ है और इससे अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है.

एलन मस्क और अमेरिकी दक्षिणपंथी भी मैदान में

इस विवाद में दक्षिण अफ्रीका में जन्मे अरबपति उद्योगपति एलन मस्क ने भी ट्रंप का समर्थन किया. उन्होंने नए भूमि कानून को “नस्लीय स्वामित्व कानून” करार देते हुए कहा कि इसी कारण उनका सैटेलाइट इंटरनेट प्रोजेक्ट ‘Starlink’ दक्षिण अफ्रीका में सफल नहीं हो सका.

ट्रंप के कई दक्षिणपंथी सहयोगियों ने भी दावा किया कि श्वेत किसानों पर हमले “नरसंहार” जैसे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि कई श्वेत किसान दक्षिण अफ्रीका से पलायन कर ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में शरण मांग रहे हैं. हालांकि दक्षिण अफ्रीकी सरकार और वहां के पुलिस विभाग ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है. उनका कहना है कि देश में अपराध की दर सामान्य रूप से अधिक है और उसका कोई सीधा संबंध नस्लीय भेदभाव से नहीं है. हमलों के शिकार श्वेत और अश्वेत दोनों किसान हो सकते हैं. अधिकतर हमले ग्रामीण इलाकों में होते हैं जहां पुलिस की उपस्थिति कम होती है.

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ट्रंप का “श्वेत नरसंहार” का दावा: सच्चाई क्या है?

ट्रंप द्वारा श्वेत किसानों के खिलाफ “नरसंहार” का जो दावा किया गया है, वह तथ्यों से परे एक साजिश सिद्धांत पर आधारित है. यह सिद्धांत “श्वेत प्रतिस्थापन सिद्धांत” (White Replacement Theory) से जुड़ा है, जो यह मानता है कि श्वेत आबादी को योजनाबद्ध तरीके से सामाजिक और राजनीतिक रूप से कमजोर किया जा रहा है.

दक्षिण अफ्रीकी पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, श्वेत नागरिकों की हत्या की दर अन्य नस्लीय समुदायों के मुकाबले अधिक नहीं है. वास्तव में, देश में अपराध का शिकार सबसे ज्यादा अश्वेत लोग होते हैं, जो आबादी का बहुमत भी हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का यह बयान राजनीति से प्रेरित है और इसका मकसद घरेलू दक्षिणपंथी मतदाताओं को साधना हो सकता है.

ट्रंप की बैठक में तनाव और रामाफोसा की प्रतिक्रिया

रामाफोसा ने इस बैठक को अमेरिका-दक्षिण अफ्रीका संबंधों को फिर से मजबूत करने का अवसर बताया था. वे अपने साथ देश के दो प्रसिद्ध गोल्फर अर्नी एल्स और रेटिफ गूसन, लक्जरी ब्रांड के मालिक जोहान रूपर्ट और कृषि मंत्री जॉन स्टीनहुइसेन को भी लेकर आए थे. बैठक की शुरुआत सौहार्दपूर्ण रही, लेकिन ट्रंप द्वारा वीडियो दिखाने और भड़काऊ दावे करने के बाद माहौल गर्म हो गया.

रामाफोसा ने शांत और दृढ़ लहजे में ट्रंप के दावों को गलत बताया. उन्होंने कहा कि मालेमा की टिप्पणियां दक्षिण अफ्रीकी सरकार की नीति को नहीं दर्शातीं, बल्कि वे एक उग्रवादी विपक्षी दल के नेता की व्यक्तिगत राय है. उन्होंने यह भी कहा कि बैठक में मौजूद तीन प्रमुख श्वेत दक्षिण अफ्रीकी नागरिकों की उपस्थिति इस बात का प्रमाण है कि कोई नरसंहार नहीं हो रहा.

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रामाफोसा ने ट्रंप के दिखाए गए वीडियो को “झूठा और गुमराह करने वाला” बताया और कहा कि ऐसी बातें द्विपक्षीय संबंधों को नुकसान पहुंचा सकती हैं. उन्होंने कहा कि देश को विकास, निवेश और सामाजिक न्याय की जरूरत है, न कि ऐसे आरोपों और साजिश सिद्धांतों की.

व्हाइट हाउस में हुई यह बैठक दक्षिण अफ्रीका और अमेरिका के बीच बढ़ते तनाव को उजागर करती है, जो भूमि सुधार, नस्लीय न्याय और वैश्विक विदेश नीति जैसे विषयों पर असहमति के कारण गहराता जा रहा है. जहां ट्रंप और उनके समर्थक इसे श्वेत समुदाय के खिलाफ षड्यंत्र मानते हैं, वहीं दक्षिण अफ्रीकी सरकार इसे ऐतिहासिक अन्याय को सुधारने की दिशा में एक जरूरी कदम मानती है. इस प्रकरण ने यह भी दिखाया कि किस प्रकार घरेलू राजनीति, वैश्विक कूटनीति को प्रभावित कर सकती है.

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