Syria May Recognize Israel: मध्य पूर्व की राजनीति में एक ऐतिहासिक और अप्रत्याशित मोड़ सामने आया है. वर्षों से इजरायल का जानी दुश्मन रहा सीरिया अब उसी इजरायल को मान्यता देने की ओर बढ़ रहा है. यह बड़ा बदलाव अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सक्रिय कूटनीति और मध्यस्थता के चलते संभव हो रहा है. ट्रंप ने हाल ही में सऊदी अरब की राजधानी रियाद में सीरिया के अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल-शरा से मुलाकात की. इस बैठक में सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान भी मौजूद थे, जबकि तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन वर्चुअली जुड़े.
गौरतलब है कि अहमद अल-शरा, जिन्होंने पिछले साल बशर अल-असद की ईरान समर्थित सरकार को अपदस्थ कर सत्ता अपने हाथों में ली, कभी अमेरिका की आतंकी सूची में शामिल थे. अब वही व्यक्ति अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के समर्थन से सीरिया का अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. डोनाल्ड ट्रंप ने इस मुलाकात में सीरिया को अब्राहम समझौते में शामिल होने और इजरायल को औपचारिक रूप से मान्यता देने के लिए प्रेरित किया.
ट्रंप का नया रणनीतिक खेल
वाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट के मुताबिक, ट्रंप ने अल-शरा से कहा कि उनके पास “अपने देश में इतिहास रचने का शानदार मौका है.” इस मुलाकात के बाद ट्रंप ने सीरिया पर लगे सभी अमेरिकी प्रतिबंध हटाने की घोषणा भी कर दी. वाइट हाउस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि यह बैठक ट्रंप के क्षेत्रीय दौरे और खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) की आगामी बैठक से पहले हुई थी. इस पहल का लक्ष्य सीरिया को अमेरिका के नेतृत्व वाले खेमे में शामिल करना है और ईरान के प्रभाव को खत्म करना है.
अल-शरा ने बातचीत में न केवल 1974 में इजरायल के साथ हुए संघर्ष विराम समझौते के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई, बल्कि आतंकवाद, ईरानी हस्तक्षेप और रासायनिक हथियारों के उन्मूलन पर भी अमेरिका के साथ सहयोग की इच्छा जाहिर की. ट्रंप ने उनसे विदेशी आतंकवादियों को सीरिया से बाहर निकालने, फिलिस्तीनी आतंकवादियों को निर्वासित करने और ISIS के खिलाफ कड़े कदम उठाने की मांग की.
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सीरिया का बदला हुआ चेहरा
बशर अल-असद के पतन और रूस में उनके शरण लेने के बाद, अहमद अल-शरा ने सत्ता संभाली और देश की नीति में बड़ा बदलाव लाया. उन्होंने ईरान समर्थक संगठनों जैसे हिज्बुल्लाह को सीरिया से खदेड़ दिया. यह वही सीरिया है, जो कभी ईरान का मजबूत सहयोगी और इजरायल विरोधी ताकतों का गढ़ था. अब वही सीरिया अमेरिका, सऊदी अरब और तुर्की जैसे देशों के साथ खड़ा है.
हिज्बुल्लाह, जो लेबनान आधारित ईरानी प्रॉक्सी संगठन है, पहले सीरिया की जमीन का उपयोग कर इजरायल पर हमले करता था. लेकिन अल-शरा की सत्ता में आने के बाद उन्हें देश छोड़कर वापस लेबनान लौटना पड़ा. इसके साथ ही ईरान का सीरिया में प्रभाव लगभग समाप्त हो गया है.
अब्राहम समझौता और क्षेत्रीय प्रभाव
अब्राहम समझौता, जो पहले संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, मोरक्को और सूडान ने इजरायल के साथ हस्ताक्षर किया था, अब एक नए विस्तार की ओर बढ़ रहा है. अगर सीरिया इस समझौते में शामिल होता है, तो यह न केवल इजरायल के लिए रणनीतिक जीत होगी, बल्कि अमेरिका के लिए भी एक बड़ी कूटनीतिक उपलब्धि होगी. इससे ट्रंप को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बड़ा राजनीतिक लाभ मिल सकता है.
सऊदी अरब और तुर्की का समर्थन इस पूरी प्रक्रिया को और भी मजबूती देता है. खासकर मोहम्मद बिन सलमान का इस बैठक में शामिल होना यह दर्शाता है कि खाड़ी देश अब ईरान की जगह एक नए क्षेत्रीय संतुलन की ओर बढ़ रहे हैं.
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गाजा का सवाल और फिलिस्तीनी चिंता
हालांकि, इस घटनाक्रम के बीच सबसे बड़ा सवाल गाजा पट्टी और फिलिस्तीनी मुद्दे को लेकर उठ रहा है. अगर सीरिया जैसे देश भी इजरायल को मान्यता देने लगते हैं, तो फिलिस्तीनी संघर्ष और गाजा में जारी हिंसा को लेकर खाड़ी देशों की प्राथमिकताएं क्या होंगी? क्या वे अब भी फिलिस्तीन के पक्ष में खड़े होंगे, या इजरायल से रिश्तों को तवज्जो देंगे? फिलहाल, क्षेत्र में यह स्पष्ट होता जा रहा है कि अधिकांश अरब देश अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए ईरान के प्रभाव को कम करना और अमेरिका से रणनीतिक सहयोग बढ़ाना चाहते हैं.
डोनाल्ड ट्रंप की मध्यस्थता से मिडिल ईस्ट की राजनीति एक नए युग में प्रवेश कर रही है. सीरिया का इजरायल को मान्यता देना न केवल एक ऐतिहासिक निर्णय होगा, बल्कि यह ईरान की रणनीतिक हार और अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन की बड़ी जीत भी होगी. आने वाले दिनों में इस घटनाक्रम के और भी गंभीर और दूरगामी परिणाम देखने को मिल सकते हैं.