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इधर भारत-पाक युद्ध होगा, उधर बांग्लादेश पूर्वोत्तर राज्य पर कब्जा कर लेगा? जनरल की धमकी



India Pakistan Tension: बांग्लादेश की ओर से भारत के खिलाफ भड़काऊ बयानबाज़ी का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. पहले नोबेल पुरस्कार विजेता और बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख सलाहकार मुहम्मद यूनुस द्वारा दिए गए “चिकन नेक” बयान पर पूर्वोत्तर भारत के नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी, और अब उसी क्रम में एक और विवादास्पद टिप्पणी सामने आई है. बांग्लादेश राइफल्स (अब बॉर्डर गार्ड्स बांग्लादेश) के पूर्व प्रमुख मेजर जनरल एएलएम फजलुर रहमान (सेवानिवृत्त) ने भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच एक चौंकाने वाला सुझाव दिया है.

मेजर जनरल रहमान ने सोशल मीडिया पर बंगाली में लिखा कि यदि भारत पाकिस्तान पर हमला करता है, तो बांग्लादेश को भारत के पूर्वोत्तर राज्यों पर कब्जा कर लेना चाहिए. उन्होंने यह भी जोड़ा कि इस मुद्दे पर बांग्लादेश को चीन के साथ मिलकर संयुक्त सैन्य निर्णय लेने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए.

सरकार ने किया बयान से किनारा

रहमान की टिप्पणी के बाद तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आईं. हालांकि, बांग्लादेश सरकार ने तुरंत ही उनके बयान से दूरी बना ली. विदेश मंत्रालय ने एक आधिकारिक बयान जारी कर स्पष्ट किया कि यह टिप्पणी बांग्लादेश सरकार की नीतियों या विचारों को नहीं दर्शाती है और सरकार किसी भी तरह से इस प्रकार की उकसावे वाली बयानबाज़ी का समर्थन नहीं करती.

सरकार के मुख्य सलाहकार शफीकुल आलम ने भी साफ किया कि यह बयान रहमान की व्यक्तिगत राय है और उसका सरकार की आधिकारिक सोच से कोई संबंध नहीं है.

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रहमान की संवेदनशील भूमिका और विवादास्पद इतिहास

मेजर जनरल रहमान वर्तमान में 2009 के चर्चित पिलखाना नरसंहार की जांच समिति का हिस्सा हैं. यह नरसंहार बांग्लादेश राइफल्स के मुख्यालय में हुआ था, जिसमें सेना के कई वरिष्ठ अधिकारियों सहित कुल 74 लोग मारे गए थे. ऐसे में रहमान की स्थिति संवैधानिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है, और उनकी टिप्पणियों को केवल व्यक्तिगत राय कहकर खारिज कर पाना कठिन प्रतीत होता है.

यूनुस और नजरुल के बयानों से भारत में असंतोष

यह पहली बार नहीं है जब बांग्लादेश की अंतरिम सरकार से जुड़े वरिष्ठ अधिकारियों ने भारत के खिलाफ विवादास्पद बयान दिए हों. कुछ सप्ताह पहले, मुहम्मद यूनुस ने भारत के पूर्वोत्तर हिस्से को “भूमिबद्ध” यानी लैंडलॉक्ड कहा था और बांग्लादेश को “समुद्र का संरक्षक” बताते हुए चीन को आमंत्रित किया था कि वह इस क्षेत्र में अपनी रणनीतिक पहुंच बढ़ाए. उनकी इस टिप्पणी पर भारत ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी.

यही नहीं, अंतरिम सरकार के विधि सलाहकार आसिफ नजरुल ने भी पहलगाम हमले के बाद एक आपत्तिजनक पोस्ट किया था, जिसे बाद में उन्होंने हटा दिया. नजरुल को लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े एक संदिग्ध आतंकवादी हारुन इजहार से मुलाकात करते भी देखा गया, जिससे भारत के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सवाल उठे. हालाँकि नजरुल ने सफाई देते हुए कहा कि वह केवल हिजाजत-ए-इस्लाम के नेताओं से मिले थे और उनका किसी आतंकी संगठन से कोई लेना-देना नहीं है.

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भारत की प्रतिक्रिया और कड़ा संदेश

भारत सरकार ने फिलहाल मेजर जनरल रहमान की टिप्पणी पर औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिम्सटेक शिखर सम्मेलन के दौरान मुहम्मद यूनुस के साथ हुई मुलाकात में स्पष्ट और कड़ा संदेश दिया था. मोदी ने यूनुस को चेताया था कि “वातावरण को खराब करने वाली बयानबाज़ी” से बचना चाहिए.

इसके अतिरिक्त, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी दो टूक कहा था कि क्षेत्रीय सहयोग का अर्थ किसी एक पक्ष के साथ पक्षपातपूर्ण व्यवहार करना नहीं है. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया था कि भारत अपने हितों की रक्षा करना जानता है और किसी भी आक्रामक नीति का माकूल जवाब देने में सक्षम है.

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सामरिक स्थिति और पूर्वोत्तर भारत

भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र सामरिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील और रणनीतिक महत्व का क्षेत्र है, जो “चिकन नेक” कहे जाने वाले संकरे सिलिगुड़ी कॉरिडोर के जरिए शेष भारत से जुड़ा है. ऐसे में यूनुस और रहमान जैसी हस्तियों के बयानों को केवल जुबानी हमले नहीं माना जा सकता. इन बयानों से भारत के अंदर भी सुरक्षा को लेकर चिंता गहराती जा रही है.

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के कुछ वरिष्ठ और सेवानिवृत्त अधिकारियों द्वारा भारत के खिलाफ लगातार दिए जा रहे भड़काऊ बयान न केवल द्विपक्षीय संबंधों को नुकसान पहुँचा रहे हैं, बल्कि पूरे क्षेत्र की शांति के लिए खतरा बनते जा रहे हैं. भारत ने कूटनीतिक रूप से संयम बरता है, लेकिन यह स्पष्ट है कि यदि ऐसी बयानबाजी जारी रही तो भारत को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है.

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