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सिर्फ 20 जिंदा लौटे, 180 आए थे, कुत्ते की मौत मरे, जब कश्मीर में छिले गए पाकिस्तानी कमांडो



Pakistan: जम्मू और कश्मीर के खूबसूरत पहलगाम इलाके में हाल ही में हुए आतंकवादी हमले ने एक बार फिर पाकिस्तान की भूमिका पर सवाल खड़े कर दिए हैं. हमले की बर्बरता और योजनाबद्ध तरीके से निर्दोष नागरिकों को निशाना बनाए जाने से विशेषज्ञों का मानना है कि इस वारदात के पीछे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों और उसकी सेना की विशेष कमांडो यूनिट स्पेशल सर्विस ग्रुप (SSG) का हाथ हो सकता है. यह यूनिट पहले भी कई बार आतंकवादी गतिविधियों और युद्ध अपराधों में शामिल रही है.

SSG के बर्बरता और हिंसा का लंबा रिकॉर्ड

पाकिस्तान की एसएसजी यूनिट एक एलीट फोर्स है, जिसे दुश्मन देश की सीमा में घुसपैठ और विशेष ऑपरेशनों के लिए प्रशिक्षित किया जाता है. इस यूनिट पर पहले भी दुश्मनों के सिर काटने, उन्हें जिंदा जलाने और यातनाएं देने जैसे गंभीर आरोप लग चुके हैं. हालांकि, यह यूनिट हमेशा सफल नहीं रही है. भारत के खिलाफ 1965 के युद्ध में, जब एसएसजी को पहली बार बड़े स्तर पर युद्धभूमि में भेजा गया था, तो उसका मिशन बुरी तरह विफल हुआ था और सैकड़ों कमांडो या तो मारे गए या गिरफ्तार कर लिए गए थे.

1960 में पहली तैनाती और शुरुआती सफलता

पाकिस्तानी SSG की पहली तैनाती 1960 में अफगान सीमा के पास झरझरा इलाके में हुई थी. उस समय मेजर मिर्जा असलम बेग के नेतृत्व में एक कमांडो टुकड़ी ने दीर में घुसपैठ कर वहां के विद्रोही नवाब को हटाया और स्थिति को नियंत्रण में लाया. इस सफलता ने एसएसजी के मनोबल को काफी बढ़ा दिया था और यही आत्मविश्वास 1965 में भारत के खिलाफ उनकी अगली बड़ी कार्रवाई का आधार बना.

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1965 का ऑपरेशन जिब्राल्टर: जनविद्रोह भड़काने की नाकाम कोशिश

1965 में पाकिस्तान ने “ऑपरेशन जिब्राल्टर” नाम से एक बड़ा अभियान शुरू किया. इसका उद्देश्य था कि कश्मीर में गुप्त रूप से एसएसजी कमांडो भेजकर वहां के लोगों को भारत के खिलाफ भड़काया जाए और एक बड़े जनविद्रोह को अंजाम दिया जाए. पाकिस्तान की सोच थी कि इस विद्रोह की आड़ में भारत कश्मीर पर अपना नियंत्रण खो देगा. लेकिन इस योजना की हकीकत से भारत पहले से ही अवगत था. परिणामस्वरूप, यह मिशन पूरी तरह नाकाम रहा.

पठानकोट, हलवारा और आदमपुर पर हमले की असफल कोशिश

ऑपरेशन जिब्राल्टर के विफल होने के बाद पाकिस्तान ने अपने SSG कमांडो को भारतीय वायुसेना के तीन प्रमुख एयरबेस पठानकोट, आदमपुर और हलवारा पर हमला करने के लिए भेजा. 7 सितंबर 1965 की रात, सी-130 हरक्यूलिस विमान से 180 पाकिस्तानी कमांडो पैराशूट के जरिए भारत में दाखिल हुए. लेकिन खराब मौसम, तेज हवा और अंधेरे के कारण कमांडो बिखर गए और अपने टारगेट तक नहीं पहुंच पाए.

भारतीय सेना और ग्रामीणों ने दी मुंहतोड़ जवाब

इस ऑपरेशन में पाकिस्तान की बुरी तरह हार हुई. लैंडिंग के बाद SSG कमांडो दिशाहीन हो गए. उनमें से 138 को भारतीय सुरक्षा बलों ने गिरफ्तार कर युद्धबंदी बना लिया, जबकि 22 कमांडो को ग्रामीणों ने लाठी-डंडों से पीट-पीट कर मार डाला. ये ग्रामीण निहत्थे जरूर थे, लेकिन उनका साहस और देशभक्ति इतनी प्रबल थी कि उन्होंने प्रशिक्षित कमांडो को भी पछाड़ दिया.

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सिर्फ 20 कमांडो ही सकुशल लौट सके

180 में से केवल 20 कमांडो ही जिंदा पाकिस्तान लौटने में सफल हुए. इनमें से भी अधिकतर पठानकोट के पास उतरे थे और घने कोहरे का फायदा उठाकर सीमा पार कर पाए. हलवारा में उतरे दो कमांडो, जिनमें एक कमांडर मेजर हुजूर हसनैन था, उसने एक स्थानीय जीप चालक को अगवा कर उससे जीप छीन ली और किसी तरह पाकिस्तान पहुंचने में सफल रहा.

इतिहास खुद को दोहराता है

1965 की इस घटना से साफ है कि पाकिस्तान जब-जब भारत के खिलाफ षड्यंत्र करता है, उसका अंजाम उसके लिए घातक ही साबित होता है. आज पहलगाम में हुए हमले को देखकर यही प्रतीत होता है कि पाकिस्तान और उसकी एसएसजी यूनिट एक बार फिर भारत की संप्रभुता को चुनौती देने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं. लेकिन इतिहास गवाह है कि भारत हर बार इन साजिशों का मुंहतोड़ जवाब देता आया है और आगे भी देता रहेगा.

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