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एक ही कॉलेज, एक ही बैच… और भारत पर सबसे बड़ा हमला, क्या है हैकैडेट कॉलेज का कनेक्शन |Hasan Abdal Cadet College



Hasan Abdal Cadet College: 26/11 का जिक्र होते ही भारत की धड़कनें थम सी जाती हैं. मुंबई की सड़कों पर बहा वो खून, वो चीखें, और वो अराजकता सब आज भी हमारे ज़ेहन में जिंदा हैं. लेकिन इस भयावह हमले की जड़ें कहीं और थीं. एक ऐसी जगह, जिसे राष्ट्रसेवा और चरित्र निर्माण का प्रतीक माना जाता हैकैडेट कॉलेज हसन अब्दाल पाकिस्तान.

जहां से यह सोच पनपी, वह जगह खुद एक मिसाल मानी जाती रही है. 1952 में बना यह संस्थान पाकिस्तान का पहला कैडेट कॉलेज था, जिसकी स्थापना जनरल अयूब खान ने की थी. यहां दाखिला मिलना आसान नहीं था. देशभर के चुनिंदा और होनहार छात्र ही यहां पहुंचते हैं. कड़ा अनुशासन, सैन्य परंपरा, और नेतृत्व के गुण यहां के मूलमंत्र हैं. लेकिन शायद कोई नहीं सोच सकता था कि यहीं से निकलकर दो छात्र — डेविड हेडली और तहव्वुर राणा — एक दिन आतंक के प्रतीक बन जाएंगे.

वर्दी से आतंक की ओर

डेविड हेडली (असल नाम दाऊद गिलानी) और तहव्वुर राणा दोनों ही 1970 के दशक में इस कॉलेज के छात्र थे. वहीं से उनकी दोस्ती शुरू हुई जो आगे जाकर अमेरिका में भी कायम रही. हेडली की पारिवारिक पृष्ठभूमि में ही टकराव था एक तरफ उसके पिता पाकिस्तानी, और दूसरी तरफ मां एक अमेरिकी. यह समय के साथ उसके भीतर कट्टरता और असंतुलन का कारण बन गया.

जैसे ही हेडली अमेरिका पहुंचा, उसने खुद को एक नई पहचान दी नाम बदला, पासपोर्ट बदला, और अपनी वफादारी भी. अमेरिकी नागरिक बनते ही वह पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI और आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के संपर्क में आ गया. तहव्वुर राणा, जो खुद को एक मेडिकल प्रोफेशनल मानता था उसकी इस राह में साथी बन गया.

भारत का बना सबसे बड़ा दुश्मन

हेडली कई बार भारत आम नागरिक के रूप में आया. उसने मुंबई के होटल, यहूदी केंद्र, रेलवे स्टेशन और अन्य जगहों की रेकी की, नक्शे बनाए, वीडियो रिकॉर्ड किए और यह सब किसी पर्यटक के भेष में. राणा ने उसे लॉजिस्टिक सपोर्ट मुहैया कराया वीजा, यात्रा दस्तावेज, पैसे और छिपने के साधन.

26 नवंबर 2008 की रात जब समंदर के रास्ते से आए दस आतंकियों ने मुंबई को बंधक बना लिया, तो उस हमले की नींव उन्हीं दो “कैडेट्स” ने रखी थी. हसन अब्दाल के दो छात्र अब आतंक का चेहरा बन चुके थे.