B B Nimbalkar and Don Bradman Record Story : क्रिकेट के रिकॉर्ड्स टूटने के लिए बनते हैं. इसमें लेश मात्र भी संदेह नहीं है, क्योंकि शायद ही ऐसा कोई मैच होता हो, जिसमें नए कीर्तिमान न बनते हों. कोई खिलाड़ी रिकॉर्ड बनाने के नजदीक हो तो बेताबी और भी बढ़ जाती है. लेकिन क्या हो अगर आप क्रिकेट की दुनिया के सबसे बड़े लीजेंड डॉन ब्रैडमैन का रिकॉर्ड पार करने वाले हों, लेकिन आपसे वह मौका छीन लिया जाए. जी हां! ऐसा ही कुछ हुआ 1948 में पुणे क्लब ग्राउंड पर. जब रणजी ट्रॉफी मुकाबले में महाराष्ट्र और काठियावाड़ की टीमें आमने-सामने हुईं. इस ऐतिहासिक मैच में एक नाम सबकी जुबान पर था और वो थे भाऊसाहेब बाबासाहेब निंबालकर, जो ब्रैडमैन के फर्स्ट क्लास क्रिकेट के सबसे बड़े स्कोर का रिकॉर्ड तोड़ने वाले थे.
राजकोट के ठाकोर साहिब प्रद्युम्नसिंहजी, काठियावाड़ टीम की अगुवाई कर रहे थे. जबकि महाराष्ट्र की कमान राजा यशवंत गोखले के पास थी. यह मुकाबला को केवल खेल नहीं, बल्कि मराठा और गुजरात की पुरानी प्रतिद्वंद्विता का मंच बन गया, जिसमें नकारात्मक भूमिका राजकोट के ठाकोर साहिब ने निभाई. उन्होंने सुनिश्चित किया कि निंबालकर डॉन ब्रैडमैन के 452* के रिकॉर्ड को तोड़ न पाएं. उन्होंने खलनायक की भूमिका निभाते हुए अपनी टीम को ही मैच से बाहर कर दिया.

वो दिन जब निंबालकर ‘ब्रैडमैन’ बनने के करीब थे
उनका सबसे बड़ा कारनामा फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 443* रनों की ऐतिहासिक पारी रही, जो एक वरदान भी थी और एक शाप भी. इस रिकॉर्ड ने उन्हें चर्चा में तो ला दिया, लेकिन उनके बाकी शानदार प्रदर्शन कहीं खो से गए. दिसंबर 1948, पुणे क्लब ग्राउंड. महाराष्ट्र बनाम काठियावाड़ का रणजी मुकाबला चल रहा था. पहले बल्लेबाजी करते हुए काठियावाड़ की टीम पहली पारी में केवल 238 रन ही बना सकी, जिसमें उनके कप्तान ठाकोर साहिब ऑफ राजकोट ने 77 रन बनाए, जो उनके 13 मैचों के फर्स्ट-क्लास करियर का सर्वाधिक स्कोर रहा.
इसके जवाब में, महाराष्ट्र ने तीसरे दिन चाय के समय तक 826/4 का स्कोर बना लिया था. मैच में एक सेशन और एक पूरा दिन बाकी था. तीसरे दिन निंबालकर ने विजय मर्चेंट का 359 रनों का रिकॉर्ड तोड़ दिया और 443* रनों पर थे. वे सर डॉन ब्रैडमैन के फर्स्ट-क्लास क्रिकेट में सर्वाधिक व्यक्तिगत स्कोर 452* से केवल 10 रन दूर थे. इसे ब्रैडमैन ने जनवरी 1930 में क्वींसलैंड के खिलाफ बनाया था.

ठाकोर साहिब ने दी धमकी
जब चाय का ब्रेक लिया गया, तब तक किसी को यह नहीं पता था कि एक विश्व रिकॉर्ड टूटने के करीब है, यहां तक कि निंबालकर को भी नहीं. मैदान पर चाय पीने के दौरान यह खबर खिलाड़ियों के बीच फैली और काठियावाड़ के खेमे तक भी पहुंची. मैदान पर उत्साह चरम पर था. निंबालकर उस समय के सबसे महान बल्लेबाज ब्रैडमैन को पीछे छोड़ने की कगार पर थे. लेकिन राजकोट के ठाकोर साहिब, जो नहीं चाहते थे कि उनकी टीम का नाम गलत कारणों से इतिहास में दर्ज हो, इसलिए उन्होंने एक कुटिल और अपमानजनक कदम उठाया. जब ठाकोर साहिब को लगा कि निंबालकर के रिकॉर्ड बनाने से काठियावाड़ की हार अपमानजनक होगी, उन्होंने महाराष्ट्र के कप्तान राजा गोखले को धमकी दी कि अगर वह पारी घोषित नहीं करते, तो वह और उनकी टीम मैच छोड़कर चले जाएंगे. निंबालकर के अनुसार डॉन ब्रैडमैन ने खुद ठाकोर साहिब से फोन पर बात कर उन्हें मनाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन ठाकोर साहिब का फैसला अटल था.
महाराष्ट्र के कप्तान यशवंत गोखले ने विपक्षी कप्तान से दो ओवर और खेलने की गुजारिश की, ताकि निंबालकर को रिकॉर्ड तक पहुंचने का मौका मिल सके. लेकिन काठियावाड़ के कप्तान ने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि उन्हें और रन नहीं चाहिए. वे गलत नहीं थे, क्योंकि उन दिनों ड्रॉ हुए मैचों का फैसला पहली पारी की बढ़त के आधार पर होता था, जिससे टीमों को बड़े स्कोर बनाने की प्रेरणा मिलती थी. ब्रैडमैन के रिकॉर्ड के साथ ही महाराष्ट्र उस समय रणजी ट्रॉफी क्रिकेट में सबसे बड़े टीम स्कोर का रिकॉर्ड भी तोड़ने के करीब था. होल्कर की टीम ने मार्च 1946 में कर्नाटक के खिलाफ 912/8d का भारी भरकम स्कोर बनाया था.
अपनी टीम लेकर लौट गए ठाकोर साहिब
हालांकि, चाय के बाद कोई खेल नहीं हुआ. काठियावाड़ की टीम ने अपना सामान समेटा और स्टेशन की ओर रवाना हो गई, जिससे महाराष्ट्र को वॉकओवर से जीत मिली क्योंकि काठियावाड़ ने मैच छोड़ दिया. निंबालकर का मानना था कि काठियावाड़ यह नहीं चाहता था कि यह रिकॉर्ड उनके खिलाफ बने. बाद में मीडिया रिपोर्ट्स में सामने आया, जिसमें निंबालकर ने कहा, “वो बार-बार कहते रहे कि तुमने वैसे ही बहुत रन बना लिए हैं, अब और क्यों चाहिए? उनके कप्तान को लगता था कि काठियावाड़ टीम का नाम रिकॉर्ड बुक में गलत वजहों से आएगा. मैं मैदान के बीच में ही अकेला रह गया. मुझे काठियावाड़ की सोच अच्छी नहीं लगी.”
निंबालकर ने आगे कहा, “वे इतने अनस्पोर्टिंग कैसे हो सकते हैं? जब मुझे पता चला कि मैं विश्व रिकॉर्ड से केवल 10 रन दूर हूं, तो मैं उसे पाने के लिए बेताब हो गया था, क्योंकि यह मुझे सर डॉन से आगे ले जाता. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. अगर मुझे पता होता, तो मैं जरूर रन बनाने के लिए जाता.” निंबालकर का स्कोर अब भी किसी भारतीय बल्लेबाज द्वारा फर्स्ट-क्लास क्रिकेट में बनाया गया एकमात्र 400+ स्कोर है. उन्होंने आठ घंटे 14 मिनट तक बल्लेबाजी की और 49 चौकों व एक छक्के की मदद से 202 रन बाउंड्री से बनाए. बाद में सर डॉन ब्रैडमैन ने निंबालकर को व्यक्तिगत संदेश भेजकर बधाई दी और कहा कि उनकी यह पारी ब्रैडमैन की अपनी 452 रनों की पारी से बेहतर थी.

29 साल बाद टूटा ब्रैडमैन का रिकॉर्ड
ब्रैडमैन का रिकॉर्ड आखिरकार निंबालकर के 11 साल बाद जनवरी 1959 में हनीफ मोहम्मद ने तोड़ा. उस समय केवल 24 साल के पाकिस्तान के खिलाड़ी हनीफ ने कराची की ओर से बहावलपुर के खिलाफ 499 रन बनाए और 500वें रन की कोशिश में रन आउट हो गए. हालांकि यह रिकॉर्ड भी 35 साल बाद टूटा. जून 1994 में ब्रायन लारा ने काउंटी चैंपियनशिप में वॉरविकशायर की ओर से डरहम के खिलाफ नाबाद 501 रन बनाए. काठियावाड़ के उलट, डरहम मैदान पर लारा तब तक डटे रहे जब तक उन्होंने रिकॉर्ड तोड़ने वाली बाउंड्री नहीं मारी. इसके बाद मैच ड्रॉ पर समाप्त हुआ.
चमकता सितारा रहे निंबालकर, लेकिन नहीं खेल पाए एक भी टेस्ट
घरेलू क्रिकेट में भाऊसाहेब निंबालकर एक प्रमुख नाम थे. उन्होंने 26 सालों तक महाराष्ट्र के लिए शानदार प्रदर्शन किया. दाएं हाथ के बल्लेबाज भाऊ ने 47.93 की औसत से 80 फर्स्ट क्लास क्रिकेट मैचों में कुल 4,841 रन बनाए, जिसमें 12 शतक और 22 अर्धशतक शामिल थे. सिर्फ रणजी ट्रॉफी में ही उन्होंने 56.72 की औसत से 3,687 रन जड़े. निंबालकर हरफनमौला खिलाड़ी थे, लेकिन इतने जबरदस्त रिकॉर्ड के बावजूद निंबालकर को कभी भारतीय टेस्ट टीम में जगह नहीं मिली, जबकि 443 नाबाद की पारी के समय उनकी उम्र केवल 29 वर्ष थी. 1949-50 में उन्होंने कॉमनवेल्थ इलेवन के खिलाफ एक अनौपचारिक टेस्ट मैच जरूर खेला, लेकिन आधिकारिक चयन कभी नहीं हुआ.
जब निंबालकर का चयन राष्ट्रीय टीम में नहीं हुआ, तो उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा, “यह मेरे साथ अन्याय था कि मुझे कभी टेस्ट क्रिकेट खेलने का मौका नहीं मिला. मैंने एक अनौपचारिक टेस्ट खेला था, उन्हें मुझे एक और मौका देना चाहिए था. मुझे नहीं पता कि चयनकर्ताओं ने मुझे हर बार क्यों नजरअंदाज किया. सबसे ज्यादा तकलीफ तब हुई जब मुझसे कम प्रतिभा वाले खिलाड़ी भारत के लिए खेले.” हालांकि निंबालकर की यह पारी अब भी भारतीय बल्लेबाज द्वारा फर्स्ट क्लास में सर्वाधिक रनों के इतिहास के रूप में दर्ज है. आज तक उनका यह रिकॉर्ड कोई तोड़ नहीं पाया है.
एक शर्मनाक अध्याय
12 दिसंबर, 1919, कोल्हापुर, महाराष्ट्र में जन्मे निंबालकर का निधन 11 दिसंबर, 2012 को 92 वर्ष की उम्र में हुआ. ठाकोर साहिब ने भले ही अपने राज्य को एक शर्मिंदगी से बचा लिया हो, लेकिन खुद का नाम इतिहास के सबसे नकारात्मक किरदारों में दर्ज करा दिया. क्रिकेट इतिहास का वह दिन, जब निंबालकर डॉन ब्रैडमैन का रिकॉर्ड तोड़ सकते थे हमेशा एक पीड़ा के रूप में याद किया जाएगा. भाऊसाहेब निंबालकर का नाम आज भी भारतीय क्रिकेट के अनकहे नायकों में लिया जाता है, और ठाकोर साहिब का नाम एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो खेल भावना से कहीं दूर था.
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