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जब पुरुष संभालते थे काम तो फिसड्डी था उत्पादन, महिला कर्मियों को सौंपा जिम्मा तो हो गया कमाल

गोरखपुर। पूर्वोत्तर रेलवे के यांत्रिक कारखाने की तस्वीर बदल गई है। प्रबंधन ने महिलाओं को ट्रिमिंग शॉप का जिम्मा क्या सौंपा, कमाल हो गया। जो लक्ष्य पुरुषों के साथ मिलकर नहीं सध पा रहा था, अब उससे कहीं अधिक हासिल हो रहा है। कारखाने के ट्रिमिंग शॉप यानी सच्जा गृह में कार्य करने वाली इन 34 महिलाओं के बूते साख बचाने को जूझ रहे कारखाने को मजबूत सहारा मिला है। उत्पादन में दर्ज गुणात्मक वृद्धि ने अन्य सहकर्मियों को प्रेरित करने का काम किया है।

ट्रिमिंग शॉप में ट्रेन की जनरल बोगियों की सीटें तैयार होती हैं। एक साल पहले 200 सीटें भी समय से नहीं मिल पाती थीं, आज ये महिला कर्मी रोजाना और समय से गुणवत्ता के साथ लगभग 300 सीटें तैयार कर रही हैं। दिसंबर 2018 तक ट्रिमिंग शॉप में पुरुष और महिला दोनों संयुक्त रूप से कार्य करते थे। उस समय उत्पादकता ही नहीं गुणवत्ता की समस्या अक्सर पैदा होती रहती थी। खामियां दूर करने के क्रम में सीटों को अक्सर दोबारा बनाना पड़ता था। लाख प्रयास के बाद भी गुणवत्ता में सुधार नहीं हुआ तो कारखाना प्रबंधन ने बड़ा कदम उठाते हुए जनवरी 2019 में शॉप को महिलाओं के हवाले कर दिया। प्रबंधन ने भरोसा जताया तो उन्होंने साबित भी कर दिखाया।

एक वर्ष के भीतर महिला कर्मचारियों ने शॉप की सूरत बदल दी है। कार्य का माहौल तैयार हुआ तो गुणवत्ता अपने आप बढ़ गई। अब सीटों को दोबारा नहीं बनाना पड़ता है। सुपरवाइजर रेमंड पौल बताते हैं कि अब सीटों को समय से बोगियों में लगाने में कोई समस्या नहीं होती है। सीटें भी बेहतर तैयार हो रहीं हैं। यहां अनुकंपा के आधार पर नौकरी पाने वाली महिलाओं को प्राथमिकता के आधार पर रखा जाता है।

जूनियर इंजीनियर कविता सिंह ने बताया कि प्रबंधन ने अवसर देकर महिलाओं का सम्मान बढ़ाया है। सभी महिलाएं पूरी निष्ठा के साथ कार्य करती हैं। महिलाओं के लिए अति आधुनिक मशीनें और अन्य सुविधाएं भी मुहैया कराई गई हैं।

शॉप कर्मी अनीता यादव ने बताया कि कारखाने में 11 वर्ष से कार्य कर रही हूं। पहले स्थिति ठीक नहीं थी अब बेहतर माहौल मिला है। जितना लक्ष्य मिलता है, हम सब मिलकर उसे बेहतरी के साथ पूरा करते हैं। कारखाना प्रबंधन भी सुविधाओं पर ध्यान देता है।

पूर्वोत्तर रेलवे के सीपीआरओ पंकज कुमार सिंह ने बताया कि यांत्रिक कारखाना में कार्यरत महिलाओं ने अपनी क्षमता साबित की है। उनकी लगन का फायदा रेलवे को मिला है।