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महात्मा गांधी ने 100 साल पहले गिरिडीह में कहा था- देशहित में रोज आधा घंटा काटें सूत


100 Years of Mahatma Gandhi Giridih Visit | गिरिडीह, राकेश सिन्हा : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के गिरिडीह आगमन को आज 6 अक्तूबर 2025 को 100 वर्ष पूरे हो रहे हैं. इस अवसर पर उनकी यात्रा का शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है. इसके तहत सोमवार से कई कार्यक्रमों का आयोजन शुरू हो रहा है. गिरिडीह में बापू ने लोगों से अपील की थी कि स्वयं आर्थिक रूप से मजबूत होने के लिए नहीं, बल्कि देशहित में प्रतिदिन कम से कम आधा घंटा सूत जरूर काटें.

बापू की यात्रा पर शताब्दी समारोह का आयोजन

बापू की यात्रा के शताब्दी वर्ष को यादगार बनाने के लिए शताब्दी समारोह का भी आयोजन किया जा रहा है. राष्ट्रपिता गांधी पश्चिम बंगाल की यात्रा करने के बाद उस वक्त संयुक्त बिहार में स्थित झारखंड के कई जिलों का भ्रमण किया था. भ्रमण के दौरान उन्होंने एक ओर स्वतंत्रता आंदोलन के लिए लोगों में जोश भरा, तो दूसरी ओर देशबंधु स्मारक कोष को आर्थिक रूप से मजबूत करने के साथ-साथ अस्पृश्यता, आत्मनिर्भरता और खादी के लिए सूत कातने व खादी का उपयोग करने के संबंध में चर्चा की थी.

पचंबा के गोल बंगला में ठहरे थे महात्मा गांधी

वह 6 अक्तूबर 1925 को गिरिडीह पहुंचे और 2 दिनों के प्रवास के दौरान उन्होंने 2 सभाओं के साथ-साथ कई प्रतिनिधियों के साथ मुलाकातें व बैठकें भी कीं. इसी क्रम में वे गिरिडीह के खरगडीहा स्थित गौशाला पहुंचे थे. वहां भी स्वतंत्रता सेनानियों से मिलकर उनका हौसला बढ़ाया. वह गिरिडीह के पचंबा में स्थित गोल बंगला में ठहरे थे. उस वक्त उसी मैदान में उन्होंने 2-2 सभाएं कीं.

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सभा में ही महिलाओं ने अपने गहने उतारकर बापू को दे दिये

बंगाल के देशबंधु चित्तरंजन दास स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे. उन्होंने बंगाल के साथ-साथ देश के अन्य भागों में स्वराज, आत्मनिर्भरता, सामाजिक सुधार जैसे मुद्दों पर अभियान चला रखा था. उनके निधन के बाद आर्थिक संकट के कारण बंगाल में स्वतंत्रता संग्राम का आंदोलन भी प्रभावित हो रहा था. जब गांधी जी बंगाल के दौरे पर थे, तो उन्होंने देशबंधु चित्तरंजन दास के सम्मान में एक कोष का गठन कर उसका नाम देशबंधु स्मारक कोष रखा. इसके बाद वे इस कोष को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए लोगों से सहयोग की अपील की.

कोष भरने में गिरिडीह ने निभायी थी बड़ी भूमिका

गिरिडीह में इस कोष को भरने के लिए लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया. गौशाला के साथ-साथ स्थानीय उद्योगपतियों, विभिन्न सामाजिक संगठनों और खासकर महिलाओं ने बढ़-चढ़कर सहयोग दिया. महिला सभा में ही महिलाओं ने गहने-जेवर तक दान में दे दिये. स्वतंत्रता आंदोलन से महिलाएं इतनी प्रेरित थीं कि बजरंग सहाय की पत्नी पार्वती देवी की अगुवाई में महिलाओं ने सभा में ही अपने सोने के कंगन, कान की बाली, हार खोलकर कोष में दान कर दिया. उस वक्त स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े पचंबा के जगनाथ सहाय और बजरंग सहाय के परिवार की भी अहम भूमिका थी. इस अभियान में गिरिडीह के माहुरी समाज ने भी विशेष दिलचस्पी दिखायी थी और कोष में उन्होंने भी गहने, जेवर व नकद दान किये थे.

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