सीवान. जिले के गोरेयाकोठी प्रखंड अंतर्गत महम्मदपुर गांव में नदी पर बना पुराना पुल तोड़े जाने के बाद से चार गांवों का संपर्क पूरी तरह टूट गया है. करीब दो महीने पहले इस पुराने पुल को तोड़ा गया था, लेकिन अब तक नया पुल बनाने का कार्य शुरू नहीं हो सका है. इस कारण महम्मदपुर, काला डुमरा, कपिया हाता समेत आसपास के कई गांवों के लोगों को आवागमन में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन ने बिना वैकल्पिक व्यवस्था किए ही पुराने पुल को तोड़ दिया. इससे आम लोगों की परेशानी बढ़ गयी है. बीमार मरीजों को अस्पताल पहुंचाना मुश्किल हो गया है. बच्चों को स्कूल जाने में दिक्कत हो रही है और लोग अपने दैनिक कार्यों के लिए लंबा रास्ता तय करने को मजबूर हैं. इससे न सिर्फ समय की बर्बादी हो रही है, बल्कि लोगों को आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ रहा है. ग्रामीणों ने बताया कि कुछ महीने पहले इस पुल में दरार आ गयी थी. तब विभाग ने बालू की बोरियों से अस्थायी समाधान कर पानी का बहाव रोका था, लेकिन स्थायी समाधान की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया. अब जब पुल को पूरी तरह तोड़ दिया गया है, तो लोगों को और अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. जानकारी के अनुसार, पूरे गोरेयाकोठी प्रखंड में ग्रामीण कार्य विभाग की ओर से सात पुलों का निर्माण प्रस्तावित है. इन पुलों का शिलान्यास भी हो चुका है. बावजूद इसके एक भी पुल पर काम शुरू नहीं हो पाया है. विभागीय अधिकारियों का कहना है कि पुल निर्माण कार्य शुरू करने के लिए बाढ़ नियंत्रण विभाग से एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) जरूरी है. लेकिन अभी तक एनओसी नहीं मिल पाया है. इसी कारण निर्माण कार्य रुका हुआ है. ग्रामीणों का आरोप है कि जब प्रशासन को पुल तोड़ना था, तो पहले वैकल्पिक मार्ग बनाना चाहिए था. अब स्थिति यह है कि एप्रोच पथ भी सही ढंग से नहीं बनाया गया है. जिससे कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है. लोगों में प्रशासन के प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही है. ग्रामीणों ने कई बार वरीय अधिकारियों से शिकायत कर जल्द से जल्द पुल निर्माण शुरू कराने की मांग की है. ग्रामीण कार्य विभाग महाराजगंज के कार्यपालक अभियंता मनंजय कुमार ने बताया कि पुल निर्माण के लिए बाढ़ नियंत्रण विभाग से एनओसी मांगी गयी है. जैसे ही एनओसी मिलती है, काम शुरू करा दिया जायेगा. इस बीच ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि शीघ्र नया पुल नहीं बना, तो वे आंदोलन करने को बाध्य होंगे. उनका कहना है कि सरकार विकास के बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि लोग बुनियादी सुविधाओं के लिए भी परेशान हैं.
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