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हजारीबाग के हेसलौंग गांव ने दिया थाना प्रभारी, अंचल अधिकारी, आइआइटियन समेत 200 युवाओं ने हासिल की नौकरी


Good News Hesalong Village| गिद्दी (हजारीबाग), अजय कुमार/रंजीत सिंह : हजारीबाग जिले के हेसालौंग गांव शिक्षा के क्षेत्र में पूरे इलाके के लिए मिसाल बन गया है. पिछले 10-15 वर्षों में लगभग 200 गांव के युवाओं ने नौकरियां हासिल की है. वह भी अच्छे पदों पर. रेलवे, बैंक, सेना, पुलिस, शिक्षक, प्रशासनिक, सीसीएल तथा निजी कंपनियों में सफलता हासिल की है. कभी यह गांव पिछड़ेपन और बेरोजगारी के जिए जाना जाता था.

युवाओं की उपलब्धि से बदल गया पूरे गांव का माहौल

युवक खेती-बाड़ी और दिहाड़ी मजदूरी तक सीमित रहते थे, लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है. गांव की गलियों में पढ़े-लिखे युवाओं की सफलता की गूंज है. ग्रामीणों का कहना है कि युवाओं की इस उपलब्धि से पूरे गांव का माहौल बदल गया है. छोटे बच्चों में पढ़ाई को लेकर उत्साह है और अभिभावक भी खेती-किसानी के साथ अब शिक्षा पर विशेष जोर दे रहे हैं.

  • हजारीबाग का हेसालौंग गांव बना मिसाल, 10-15 वर्षों में 200 युवाओं ने हासिल की है नौकरी
  • दीपिका प्रसाद डोरंडा, रांची की थाना प्रभारी, दीपक प्रसाद ईचागढ़ सीओ
  • शशिकांत जर्मनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर व लालदीप आइआइटी में सीनियर टेक्निकल ऑफिसर

Good News Hesalong Village: पहले बच्चों में नहीं थी पढ़ने की ललक, अचानक बदला माहौल

गांव के रामाशंकर प्रसाद का कहना है कि पहले यहां पढ़ाई के प्रति बच्चों में उतनी रुचि नहीं दिखती थी. जागरूकता का भी अभाव था. नौकरी पाने वाले इन युवाओं की मेहनत और लगन ने पूरे गांव की तस्वीर ही बदल दी है. आज हेसालौंग (Good News Hesalong Village) का नाम आस-पास के गांवों में शिक्षा और बेहतर नौकरी करने वालों के लिए जाना जाता है. हेसालौंग गांव की यह उपलब्धि पूरे हजारीबाग जिले ही नहीं, बल्कि झारखंड को भी प्रेरणा दे रही है.

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नानी के परिवार ने पढ़ने के लिए प्रेरित किया – दीपक प्रसाद

इस संबंध में प्रभात खबर (prabhatkhabar.com) ने जब ईचागढ़ में पोस्टेड अंचल अधिकारी दीपक प्रसाद से बात की, तो उन्होंने बताया कि 7वीं तक उन्होंने गांव (Good News Hesalong Village) में ही पढ़ाई की थी. इससे आगे की पढ़ाई की व्यवस्था गांव के आसपास नहीं थी. उन्होंने हजारीबाग में हॉस्टल में रहकर मैट्रिक तक की पढ़ाई की. फिर डीएवी हेहल रांची से 12वीं तक की पढ़ाई पूरी की. दीपक प्रसाद कहते हैं कि उनकी नानी के घर में सभी पढ़े-लिखे थे. उन्होंने हमेशा पढ़ने के लिए प्रेरित किया.

Good News Deepak Prasad Hesalong Village Hazaribagh Jharkhand
ईचागढ़ के अंचल अधिकारी हैं दीपक प्रसाद.

अपने गांव से सिविल सेवा की परीक्षा पास करने वाले पहले व्यक्ति बने दीपक

दीपक प्रसाद ने बताया कि उनका परिवार लोअर मिडिल क्लास परिवार था. संसाधन बहुत नहीं था, लेकिन उनके माता-पिता और परिवार को शिक्षा और ज्ञान की अहमियत का भान था. सो उन्होंने हमेशा सहयोग किया. सीमित संसाधनों में ही हॉस्टल और प्राइवेट स्कूल का खर्च उठाया, तब जाकर वह सिविल सर्विस की परीक्षा पास कर पाये. दीपक प्रसाद अपने गांव से सिविल सेवा परीक्षा पास करने वाले पहले व्यक्ति हैं. उन्होंने छठी जेपीएससी में आठवीं रैंक हासिल की थी.

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उन शिक्षकों को भी याद किया, जिन्होंने उन्हें प्रेरित किया

ईचागढ़ के अंचल अधिकारी दीपक प्रसाद अपने उन गुरुओं को भी नहीं भूले, जिन्होंने उन्हें सातवीं के बाद गांव से बाहर जाकर पढ़ाई करने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने बताया कि हेसालौंग गांव के स्कूल में हुलास सर, महेश सर, कन्हैयालाल सर हमेशा मोटिवेट करते थे कि अच्छी शिक्षा जरूरी है. इसलिए गांव से बाहर निकलो और हॉस्टल में जाकर पढ़ाई करो. उन्होंने कहा कि उनकी संगत भी अच्छे स्टूडेंट्स के साथ रही. इसका भी उन्हें लाभ मिला. उन्होंने कहा कि अब गांव और उसके आसपास बहुत से स्कूल खुल गये हैं. इससे आजकल के बच्चों को पढ़ने का माहौल मिल रहा है.

दीपिका प्रसाद को संघर्ष के बाद पुलिस में मिली नौकरी

डोरंडा थाना प्रभारी के पद पर काम कर रहीं इसी गांव की दीपिका प्रसाद की भी कहानी दीपक प्रसाद से ही मिलती जुलती है. इनके भी परिवार के लोगों, खासकर पिता और दादाजी ने शिक्षा के महत्व को समझा. उनके पिता छिन्नमस्तिका कोयला कंपनी में काम करते थे. ज्यादातर घर से बाहर ही रहते थे. कभी रामगढ़, कभी रांची, बनारस. उन्हें नेपाल तक जाना पड़ता था.

Good News Dipika Prasad Hesalong Village Hazaribagh Jharkhand
डोरंडा थाना प्रभारी हैं दीपिका प्रसाद.

7 भाई-बहन हैं दीपिका प्रसाद

दीपिका कहती हैं कि वे 6 बहनें हैं. एक भाई है. उनके पिता 5 भाई हैं. सबका संयुक्त परिवार था. उनके पापा के कंधों पर ही पूरे परिवार की जिम्मेवारी थी. उनके पापा ने तय किया कि 2 बेटियों को पढ़ाना है. उन्हें अपनी इन दोनों बेटियों पर भरोसा था कि ये कुछ कर सकतीं हैं.

स्कूल में फर्स्ट या सेकेंड ही आतीं थीं दीपिका

दीपिका प्रसाद अपने स्कूल में हमेशा फर्स्ट या सेकेंड आतीं थीं. इसलिए उनके पापा को यकीन था कि वह कुछ कर सकतीं हैं. इसलिए सातवीं के बाद रांची के बेथेसदा गर्ल्स स्कूल में उनका एडमिशन करा दिया गया. हॉस्टल में रहने लगीं. जैक बोर्ड से 10वीं पास की. इसी दौरान उनके पिताजी दुर्घटना के शिकार हो गये. 2 साल बहुत बुरे बीते. पिताजी की कमाई खत्म हो गयी.

मांडू के IGSI कॉलेज से फर्स्ड डिवीजन में इंटर पास

इसी दौरान दीपिका और उनकी दीदी को लगा कि अब अगर कुछ नहीं किया, तो कुछ नहीं बचेगा. पूरे परिवार की जिम्मेदारी, जिस शख्स पर थी, वह बिस्तर पर हैं. कमाई बंद हो गयी. खर्च नहीं रुके. ऐसे में उन्होंने मांडू के आईजीएसआई कॉलेज में इंटर में एडमिशन करवाया. घर पर रहकर पढ़ाई की और 61.1 प्रतिशत यानी फर्स्ट डिवीजन में इंटर की परीक्षा पास की. तब तक पिताजी ठीक होने लगे थे.

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निर्मला कॉन्वेंट से इकॉनोमिक्स ऑनर्स की पढ़ाई की

वर्ष 2007 में उन्होंने निर्मला कॉलेज में एंट्रेंस की परीक्षा दी. एडमिशन लिया और हॉस्टल में रहकर इकॉनोमिक्स ऑनर्स की पढ़ाई पूरी की. उनके दादाजी का मानना था कि लड़कियां गांव में रहकर नहीं पढ़ सकतीं, क्योंकि उच्च शिक्षा के लिए दूर गांव जाना पड़ता था. एक नदी पार करके. इस बीच छेड़खानी का भी डर बना रहता था. इसलिए उन्होंने कहा कि बेटियों को शहर में रखकर पढ़ाओ. बेटियां को गांव में नहीं पढ़ाना.

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हेसालौंग गांव का मुख्य चौक. फोटो : प्रभात खबर

एक साथ की पुलिस की कोचिंग और पीजी की पढ़ाई

वर्ष 2008 में उन्होंने विनोबा भावे विश्वविद्यालय में एमए में एडमिशन ले लिया. झारखंड गठन के बाद पहली बार दारोगा बहाली निकली, तो उनके पापा ने फॉर्म भरकर उनको दिया. दीपिका ने सिर्फ फॉर्म पर साइन किया. इसके बाद गांव आकर प्रैक्टिस करने लगीं. पापा के साथ. कोचिंग के लिए फिर हजारीबाग चली गयीं. पुलिस की कोचिंग के साथ-साथ पीजी की भी पढ़ाई पूरी की.

2011 में परीक्षा पास की 2012 में बन गयीं थानेदार

वर्ष 2011 में पुलिस नियुक्ति की परीक्षा हुई और वर्ष 2012 में उनकी बहाली हो गयी. पहली पोस्टिंग उनकी रांची में महिला थाने में हुई. 3 साल 8 महीने महिला थाने की इंचार्ज रहीं. इसके बाद 2 साल तक चतरा महिला थाना प्रभारी रहीं. इस दौरान बेटा हुआ, तो उन्होंने सीआईडी में पोस्टिंग ले ली. 4 साल सीआईडी में रहीं. 2 साल तक साइबर क्राइम थाने में और 2 साल सीआईडी हेडक्वार्टर में. वर्ष 2020 में उनकी पदोन्नति हुई और अब 6 महीने से डोरंडा थाना की प्रभारी हैं.

दीपिका का संदेश- पूरा फोकस शिक्षा पर रखें, समय बर्बाद न करें

दीपिका प्रसाद कहतीं हैं कि आने वाली पीढ़ी को पूरा फोकस पढ़ाई पर रखना चाहिए. परिस्थिति निगेटिव हो, तो भी उम्मीद नहीं छोड़नी है. कभी न घबरायें. साहस के साथ आगे बढ़ें. सफलता जरूर मिलेगी. समय को महत्व दें, उसे बिल्कुल व्यर्थ न जाने दें.

Good News Shashikant Prasad Hesalong Village Hazaribagh Jharkhand
जर्मनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं शशिकांत प्रसाद.

नौकरी पाने वाले हेसालौंग गांव के लोग

  • दीपिका प्रसाद हेसालौंग गांव की रहने वाली है. वह रांची के डोरंडा थाने की थाना प्रभारी हैं.
  • दीपक प्रसाद ईचागढ़ अंचल में अंचल अधिकारी हैं.
  • शशिकांत प्रसाद जर्मनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं. उनकी पत्नी स्नेहा सुमन भी जर्मनी में ही किसी कंपनी में काम करतीं हैं.
  • आइआइटी-आइएसएम धनबाद में लालदीप गोप सीनियर टेक्निकल ऑफिसर हैं.
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आइआइटी-आइएसएम धनबाद में सीनियर टेक्निकल ऑफिसर हैं लालदीप गोप.

इतने लोगों को मिली है शिक्षक की नौकरी

सुशांत कुमार, शंकर प्रसाद, सिकंदर प्रसाद आशीष कुमार, नरेश कुमार, रमा प्रसाद, अनिल कुमार, महानंद प्रसाद, वीनिता कुमारी, सोनू तिवारी, ज्योति कुमारी, कंचन कुमारी, रमेश ठाकुर और मिथिलेश ठाकुर शिक्षक हैं.

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इनके बारे में भी जानें

  • रवि प्रसाद बैंक में कार्यरत हैं.
  • रंजीत प्रसाद इंडियन नेवी में काम करते हैं.
  • खिरोधर प्रसाद झारखंड पुलिस में काम करते हैं.
  • सुधीर बाड़ा सब-इंस्पेक्टर हैं.
  • राजू रविदास, अजीत कुमार, रोशन कुमार माइनिंग इंजीनियर हैं.
  • गौतम यादव, लालू गोप इंडियन आर्मी में हैं.
  • राहुल कुमार अभियंता हैं.
  • सागर रजवार बीएसएफ में काम करते हैं.
  • तरुण राणा बैंक मैनेजर हैं.
  • संजय प्रसाद इंडियन एयरफोर्स में कार्यरत हैं.
  • राजकुमार राणा रेलवे में काम कर रहे हैं.
  • सुदर्शन राणा मनरेगा इंजीनियर हैं.
  • सुनील राम, शशि प्रसाद सिविल कोर्ट में कार्यरत हैं.

जल्द ही नौकरी में लग जायेंगे कई युवा

इसके अलावा कई लोगों ने सरकारी और निजी संस्थानों में नौकरियां हासिल की हैं. कई युवा नौकरी पाने के लिए पढ़ाई कर रहे हैं और जल्द ही उन्हें भी नौकरी मिल जायेगी, ऐसी उम्मीद है.

1973 में सुर्खियों में आया था हेसालौंग गांव

1970 के दशक में हेसालौंग सुखियों में आया था. तब कोयले की निजी खदान यहां खुली थी. वर्ष 1973-74 में 2 वामपंथी दलों के बीच वर्चस्व को लेकर खूनी झड़प हुई थी. कई लोग मारे गये थे. बीबीसी लंदन ने इस खबर को प्रसारित किया था. इसके बाद गांव सुर्खियों में आया था.

एक जमाने में हेसालौंग को मिनी मॉस्को कहा जाता था

70 और 80 के दशक में हेसालौंग गांव को मिनी मॉस्को कहा जाता था. वामपंथी विचारधारा वाले लोग ज्यादा थे. आज भी वामपंथ के समर्थक यहां हैं. गांव की खासियत यह है कि यहां के लोग राजनीतिक और वैचारिक रूप से काफी मजबूत माने जाते है. यही वजह है कि राजनीतिक दलों के बड़े-बड़े नेता यहां आने से पहले एक बार जरूर सोचते हैं.

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