Pappu Yadav की बार-बार अनदेखी…, कांग्रेस-RJD गठबंधन में क्यों कमजोर हो रहा है उनका वजूद? पढ़िए इनसाइड स्टोरी
Bihar Election 2025: बिहार की राजनीति हमेशा से रोचक और अप्रत्याशित रही है. यहां नेताओं के बयानों और उनके व्यवहार से लेकर मंच पर उनकी मौजूदगी तक, हर बात सियासी महत्व रखती है. इसी कड़ी में हाल ही में पूर्णिया से सांसद और कांग्रेस नेता पप्पू यादव को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है. महागठबंधन की वोटर अधिकार यात्रा के समापन समारोह में पटना के गांधी मैदान में जो दृश्य सामने आया, उसने सियासी हलकों में हलचल मचा दी.
मंच पर नहीं मिली जगह तो साउंड सिस्टम के पास कुर्सी पर बैठे नजर आए
राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, मुकेश सहनी और दीपंकर भट्टाचार्य जैसे इंडिया गठबंधन के दिग्गज नेता जब मुख्य मंच पर मौजूद थे, तब पप्पू यादव वहां नहीं दिखे. वे साउंड सिस्टम के पास एक कुर्सी पर बैठे कोल्ड ड्रिंक पीते नजर आए. इससे पहले यात्रा के दौरान उन्हें गाड़ी पर चढ़ने की अनुमति भी नहीं मिली थी. दोनों घटनाएं सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं और सवाल उठने लगे कि आखिर कांग्रेस में पप्पू यादव की स्थिति क्या है और बिहार की राजनीति में उनकी हैसियत क्यों सिकुड़ती जा रही है?
मंच से दूर रहने का मतलब क्या?
राजनीति में मंच केवल भौतिक स्थान नहीं होता, बल्कि नेता की सियासी अहमियत का प्रतीक होता है. जब कोई बड़ा नेता मंच से नदारद होता है या किनारे बैठा दिखता है, तो यह संदेश जाता है कि पार्टी या गठबंधन में उसकी पकड़ कमजोर पड़ रही है. गांधी मैदान में पप्पू यादव का मंच से दूर बैठना इसी संदेश को मजबूती देता है. जानकारों का मानना है कि यह कांग्रेस और महागठबंधन के भीतर उनकी बदलती स्थिति को उजागर करता है.
बार-बार अनदेखी क्यों?
यह पहली बार नहीं है जब पप्पू यादव को सार्वजनिक रूप से अनदेखा किया गया. 9 जुलाई को पटना में बिहार बंद के दौरान भी उन्हें राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की गाड़ी से उतार दिया गया था. उस समय उन्होंने इसे बेइज्जती मानने से इंकार किया, लेकिन इस घटना ने उनकी सियासी ताकत पर सवाल जरूर खड़े किए. अब गांधी मैदान की घटना ने उन सवालों को और हवा दे दी है.
तेजस्वी यादव को हाल में ‘जननायक’ और ‘बिहार का भविष्य’ बताने वाले पप्पू यादव का यह हश्र इसलिए भी चर्चा में है क्योंकि 2024 लोकसभा चुनाव के बाद उन्होंने अपना रुख बदला था. पहले जहां वे तेजस्वी पर परिवारवाद और अहंकार के आरोप लगाते थे, वहीं अब उनके समर्थन में खुलकर बयान दे रहे हैं. लेकिन इसके बावजूद उन्हें लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है.
कांग्रेस और राजद की राजनीति
बिहार की राजनीति में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सबसे बड़ा घटक है. तेजस्वी यादव गठबंधन का नेतृत्व कर रहे हैं और 2025 विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में अपनी छवि मजबूत करना चाहते हैं. ऐसे में राजद शायद ही चाहेगा कि पप्पू यादव जैसे नेता उनके संभावित प्रतिद्वंद्वी बनें. यही कारण है कि उन्हें मंच से दूर रखा गया.
दूसरी ओर, कांग्रेस भी बिहार में अपनी पकड़ बढ़ाने के लिए नए नेतृत्व को आगे बढ़ाना चाहती है. पार्टी का रुख यह साफ करता है कि वह पुराने दौर के नेताओं की बजाय नए और युवाओं को प्राथमिकता दे रही है. इस स्थिति में पप्पू यादव की भूमिका सीमित होती दिख रही है.
पप्पू यादव की राजनीतिक यात्रा
पप्पू यादव बिहार के सबसे चर्चित और विवादित नेताओं में गिने जाते हैं. कई मामलों में उनका नाम विवादों से जुड़ा रहा, लेकिन उनकी मानवीय छवि और मददगार स्वभाव के कारण वे जनता के बीच लोकप्रिय भी हैं. पूर्णिया से उनकी पकड़ बेहद मजबूत है. यही कारण है कि वे निर्दलीय सांसद बने और बाद में अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया.
लेकिन कांग्रेस में आने के बाद से ही उनका राजनीतिक वजूद कमजोर होता नजर आ रहा है. वे बार-बार राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से मुलाकात कर अपनी वफादारी जताते रहे हैं, लेकिन बड़े सार्वजनिक आयोजनों में उनकी स्थिति बार-बार कमजोर होती दिखी है.
क्या खो रहे हैं पप्पू यादव अपना वजूद?
विश्लेषकों का मानना है कि पप्पू यादव की यह स्थिति अस्थायी नहीं है. अगर उन्होंने सही रणनीति नहीं अपनाई तो उनकी राजनीतिक पहचान और कमजोर हो सकती है. बिहार की राजनीति में तेजस्वी यादव जैसे युवा और ऊर्जावान नेताओं की लोकप्रियता बढ़ रही है, वहीं कांग्रेस भी अपने नए नेतृत्व को चमकाने में जुटी है. ऐसे में पप्पू यादव को खुद को केवल सहयोगी नेता की बजाय एक निर्णायक शक्ति के रूप में स्थापित करना होगा.
आगे की राह क्या?
गांधी मैदान की घटना के बाद यह सवाल बड़ा हो गया है कि अब पप्पू यादव क्या करेंगे? क्या वे कांग्रेस में रहकर अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश करेंगे या फिर कोई नया रास्ता तलाशेंगे? यह तय है कि अगर वे अपनी राजनीतिक स्वायत्तता और प्रभाव वापस पाना चाहते हैं, तो उन्हें रणनीतिक कदम उठाने होंगे.
बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक है और ऐसे समय में पप्पू यादव के सामने चुनौती दोगुनी है. एक ओर उन्हें कांग्रेस और राजद गठबंधन के भीतर अपनी अहमियत साबित करनी है, तो दूसरी ओर अपनी क्षेत्रीय पकड़ को बनाए रखना है.
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