जमशेदपुर में मेडिकल छात्र की मौत पर फूटा छात्रों का आक्रोश, 6 घंटे कॉलेज गेट जाम, हंगामा, देखें PHOTOS
Students Anger Over Death of Medical Student: जमशेदपुर के मणिपाल टाटा मेडिकल कॉलेज (एमटीएमसी) के तीसरे वर्ष के एमबीबीएस छात्र दिव्यांशु पांडेय (21 वर्ष) की आत्महत्या के बाद शनिवार को कॉलेज के छात्रों का गुस्सा फूट पड़ा. सुबह 10:30 बजे से तकरीबन छह घंटे तक छात्रों ने कॉलेज के गेट को जाम रखा और कॉलेज प्रबंधन के खिलाफस जमकर नारेबाजी की. छात्रों ने आरोप लगाया कि दिव्यांशु की जान बचाई जा सकती थी, लेकिन कॉलेज प्रशासन की लापरवाही और मूलभूत सुविधाओं की कमी के कारण उसकी जान चली गयी. छात्रों ने कॉलेज में सुविधा के नाम पर सिर्फ दिखावा करने का आरोप लगाया. दर्जनों छात्र-छात्राएं अपने साथी को याद करते हुए रोते रहे. उनकी आंखों के आंसू रुकने के नाम नहीं ले रहे थे.
कॉलेज में न एंबुलेंस, न प्राथमिक उपचार का किट
आक्रोशित छात्रों ने कहा कि कॉलेज में न एंबुलेंस है, न प्राथमिक उपचार का कोई किट, न ही विद्यार्थियों के साथ अच्छा व्यवहार ही किया जाता है. इस दौरान छात्र-छात्राओं ने आरोप लगाया कि एनएमसी की गाइडलाइन के अनुसार कॉलेज में ऐसे विद्यार्थी जो डिप्रेशन में हैं या किसी वजह से तनाव में हैं, ऐसे विद्यार्थियों के लिए किसी प्रकार की काउंसेलिंग की सुविधा भी नहीं है. घटना की जानकारी मिलने के बाद सिदगोड़ा पुलिस मौके पर पहुंची, लेकिन विद्यार्थी किसी भी हाल में गेट से उठने को तैयार नहीं थे. इस दौरान मेडिकल कॉलेज के पदाधिकारियों व शिक्षकों के साथ ट्रांसपोर्टर के खिलाफ जमकर नारेबाजी हुई.
छात्रों ने कहा- एंबुलेंस का इंतजार करते रहे, बाद में स्कूटी से लेकर जाने को कहा
घटना से आक्रोशित छात्रों ने कहा कि दिव्यांशु हॉस्टल में रहता था. उसने गुरुवार की शाम करीब 6:20 बजे सल्फास की गोली खायी, इसके बाद उसकी तबीयत बिगड़ने लगी. दोस्तों ने उसे देखने के बाद तत्काल कॉलेज प्रबंधन को फोन कर घटना की जानकारी दी और एंबुलेंस भेजने की मांग की. एंबुलेंस का इंतजार होता रहा. इस बीच में छात्र की स्थिति खराब हो रही थी. उसे किसी तरीके से उल्टी कराया गया. तबीयत ज्यादा खराब हो जाने के बाद दिव्यांशु बार-बार खुद को बचाने की मिन्नतें करता रहा. साथी 40 मिनट तक एंबुलेंस का इंतजार करते रहे. बार-बार जब एंबुलेंस भेजने की मांग की जा रही थी, तो कॉलेज की ओर से कहा गया कि स्कूटी से लेकर जाओ.
झारखंड की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

बार-बार कह रहा था दिव्यांशु- मैं मरना नहीं चाहता
एंबुलेंस नहीं आयी, तो एक सीनियर की कार से उसे लेकर पहले मर्सी अस्पताल ले जाया गया. यहां बेहतर इलाज के लिए टीएमएच रेफर किया गया. छात्रों ने बताया कि गुरुवार की शाम ट्रैफिक भी काफी अधिक थी. प्राइवेट कार से लेकर टीएमएच पहुंचने में 35 मिनट लग गये. रास्ते भर दिव्यांशु अपने साथियों से बार-बार कह रहा था कि उसने सल्फास की गोली खा ली है, लेकिन वह मरना नहीं चाहता है. उसे जल्दी से अस्पताल पहुंचाए. लेकिन, सड़क पर ट्रैफिक रहने के कारण कोई पास नहीं दे रहा था. एंबुलेंस का हूटर रहता तो ना सिर्फ उसे कम समय में अस्पताल पहुंचाया जाता बल्कि प्राथमिक उपचार भी मिल जाता.

दिव्यांशु को बनाया गया था स्पोर्ट्स सेक्रेटरी, एक दिन बाद ही हटा दिया गया, वह अपमान का दर्द सह नहीं पाया
छात्रों के अनुसार, दिव्यांशु पांडेय को स्पोर्ट्स सेक्रेटरी बनाया गया था. लेकिन, एक दिन बाद अचानक ही उसे हटा दिया गया. इससे वह खुद को काफी अपमानित महसूस कर रहा था. वह पहले से ही अपने पिता की मौत की वजह से डिप्रेशन में था. इसके बाद इस प्रकार हटाए जाने से और अधिक डिप्रेशन में आ गया.

फर्स्ट एड किट के लिए एक साल पहले किया इमेल, अब तक नहीं मिली कोई सुविधा
छात्रों ने कहा कि उन्होंने कॉलेज में एडमिशन लेने के बाद ही प्रबंधन को इमेल कर जानकारी दी थी कि कॉलेज में आपात स्थिति से निबटने के लिए फर्स्ट एड की व्यवस्था नहीं है. इसकी व्यवस्था सुनिश्चित की जाए. लेकिन एक साल बीत जाने के बाद भी अब तक इसकी व्यवस्था नहीं की गयी है.

आवाज उठाने वालों को डराया जाता है
छात्रों में कॉलेज प्रबंधन के रवैये के खिलाफ काफी नाराजगी थी. इस दौरान छात्रों ने कहा कि वे सभी अपने साथी की मौत पर आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन प्रबंधन के लोगों द्वारा फोटोग्राफी व वीडियोग्राफी भी करवाई जा रही है. ताकि इसमें शामिल सभी छात्र-छात्राओं को बाद में टारगेट किया जा सके. विद्यार्थियों ने कहा कि इस घटना के बाद संभव है कि प्रबंधन उन्हें टारगेट कर फेल कर दे.

छात्रों के आरोप
- कॉलेज प्रशासन को एंबुलेंस भेजने के लिए फोन किया, लेकिन 40 मिनट तक एंबुलेंस नहीं पहुंची.
- कॉलेज में एंबुलेंस सिर्फ ‘एनएमसी को दिखाने के लिए’ खड़ी रहती है, उसमें न ड्राइवर रहता है, न इस्तेमाल होता है.
- एंबुलेंस नहीं आने पर कार से पहले मर्सी अस्पताल और फिर टाटा मेन अस्पताल ले जाया गया. ट्रैफिक के कारण 20 मिनट के सफर में तकरीबन 35 मिनट लग गये. अगर समय पर एंबुलेंस और प्राथमिक उपचार की सुविधा होती, तो दिव्यांशु की जान बचायी जा सकती थी.
- विरोध करने पर छात्रों को टारगेट कर ह्यूमिलिएट किया जाता है.
- हर बार आवाज उठाने पर पहले डराया जाता है, फिर बाद में करियर का भय दिखा कर मैनेज किया जाता है.
इसे भी पढ़ें
RIMS-2 के विरोध में ‘हल जोतो, रोपा रोपो’ से पहले Viral हुआ नगड़ी जमीन बचाओ संघर्ष समिति का आंदोलन गीत
झारखंड में खपाये जा रहे नकली नोट, रांची 500 रुपए के 42 बंडल जब्त, 2 गिरफ्तार
चतरोचट्टी के एक और प्रवासी श्रमिक की मौत, बुझ गया घर का चिराग, परिवार पर टूटा दुखों का पहाड़
झारखंड में भारी बारिश से जनजीवन अस्त-व्यस्त, खरसावां में 5 साल की बच्ची की मौत, खूंटी में नदियां उफान पर