Bihar Election 2025: सीवान जिले की राजनीति में सत्यदेव राम एक ऐसा नाम हैं जो सिर्फ चुनावी आंकड़ों से नहीं, बल्कि आंदोलनों और संघर्षों की मिसाल के तौर पर जाने जाते हैं. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन यानी CPI(ML) के वरिष्ठ नेता सत्यदेव राम ने राजनीति की शुरुआत जमीन और किसान आंदोलन से की थी, लेकिन आज वो खुद एक मजबूत जनप्रतिनिधि के रूप में स्थापित हैं.
उनका सफर जेल, आंदोलन, जनसभा और फिर विधानसभा तक का रहा है और ये सफर अब भी जारी है. 2015 के विधानसभा चुनाव में नामांकन करते समय ही सत्यदेव राम को गिरफ्तार कर लिया गया. वे जेल में रहते हुए चुनाव लड़े और जीत भी दर्ज की. 2020 चुनाव में भी उन्होंने भाजपा के रामायण मांझी को लगभग 12 हजार वोट से हराया.
तीन बार मैरवा से विधायक, फिर दरौली से कमान
सत्यदेव राम ने पहली बार 1988 में सक्रिय राजनीति में कदम रखा था. उन्होंने लेफ्ट राजनीति को अपनी ज़मीन और पहचान बनाई. वे तीन बार मैरवा विधानसभा सीट से विधायक चुने गए, और बाद में दरौली विधानसभा क्षेत्र से जीतकर सीवान की राजनीति में नए समीकरण गढ़े.
CPI(ML) के प्रमुख चेहरों में शामिल सत्यदेव राम सिर्फ पार्टी के भीतर ही नहीं, जनता के बीच भी एक जमीनी नेता के रूप में पहचाने जाते हैं. खासकर सीवान, मैरवा और दरौली जैसे इलाकों में उन्होंने गरीबों, दलितों और मजदूरों के मुद्दों को लगातार उठाया.
संघर्षशील छवि और जेल की सजा
सत्यदेव राम की राजनीतिक छवि जितनी स्पष्ट रही, उनका जीवन उतना ही संघर्षपूर्ण रहा है. उनके खिलाफ कई आपराधिक मामले भी दर्ज हुए, जिनमें सबसे प्रमुख चिल्हमरवा दोहरा हत्याकांड है. इस मामले में उन्हें जेल भी जाना पड़ा.
उनका एक बड़ा राजनीतिक पड़ाव तब आया जब वे जेल में रहते हुए भी चुनाव मैदान में उतरे और जनता ने उन्हें भारी मतों से जिताकर विधानसभा भेजा. यह घटना उनके जनाधार और राजनीतिक पकड़ को दर्शाती है. विरोधियों के लिए यह एक संदेश था कि वाम राजनीति सिर्फ विचारधारा नहीं, ज़मीनी समर्थन से चलती है.
मुद्दों की राजनीति
सत्यदेव राम की राजनीति जाति या धर्म के बजाय मुद्दों पर आधारित रही है. चाहे भूमि सुधार की बात हो, दलितों के अधिकार, मजदूरों की मजदूरी या महिलाओं की सुरक्षा. सत्यदेव राम ने हमेशा आंदोलनात्मक शैली में राजनीति की. CPI(ML) के मंच से उन्होंने शोषित वर्ग की आवाज़ को विधानसभा तक पहुंचाने का काम किया. वे सरकार की नीतियों पर अक्सर मुखर विरोध करते रहे हैं, और ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त असमानता, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली पर आवाज उठाते रहे हैं.
विपक्ष की चुनौती और जनता का भरोसा
राजनीति में लंबे समय तक टिके रहना जितना कठिन होता है, उतना ही कठिन होता है विश्वास बनाए रखना. सत्यदेव राम ने न सिर्फ विपक्ष के हमलों का सामना किया, बल्कि संगठन के भीतर भी अनुशासन और विचारधारा से कभी समझौता नहीं किया.
हाल के वर्षों में जब बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण और धनबल ने भारी असर डाला, सत्यदेव राम का एक सादा जीवन और ईमानदार छवि उन्हें भीड़ से अलग बनाता रहा है. वे अब भी साधारण वेशभूषा में दिखते हैं और जनता से सीधे जुड़ाव रखते हैं.
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