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मत्स्य के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनेगा झारखंड, 4.10 लाख मीट्रिक टन मछली उत्पादन का लक्ष्य


Fish Farming jharkhand| सरायकेला-खरसावां, शचिंद्र कुमार दाश : मछली उत्पादन में झारखंड आत्मनिर्भर बनेगा. इस योजना पर काम शुरू हो गया है. मत्स्य निदेशालय ने इस वर्ष राज्य में 4.10 लाख मीट्रिक टन मछली उत्पादन का लक्ष्य रखा है. यह पिछले वर्ष की तुलना में 38 मीट्रिक टन अधिक है. पिछले वर्ष राज्य में 3.73 लाख टन मछली उत्पादन का लक्ष्य था.

Fish Farming In Kolhan Jharkhand News Today
मछली पालन के लिए जलाशयों में बनाये गये केज. फोटो : प्रभात खबर

कोल्हान में 70,500 मीट्रिक टन मछली उत्पादन का लक्ष्य

कोल्हान प्रमंडल के 3 जिलों सरायकेला-खरसावां, पश्चिमी सिंहभूम और पूर्वी सिंहभूम जिले में इस वर्ष 70.5 हजार मीट्रिक टन मछली उत्पादन की योजना है. सरायकेला-खरसावां में 29 हजार मीट्रिक टन, पूर्वी सिंहभूम में 21,500 मीट्रिक टन और पश्चिमी सिंहभूम जिले में 20 हजार मीट्रिक टन मछली उत्पादन का लक्ष्य है.

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जलाशय के केज में मछली का जीरा डालने जाते मत्स्यपालन करने वाले किसान. फोटो : प्रभात खबर

सर्वाधिक मत्स्य पालन का लक्ष्य सरायकेला-खरसावां को

पिछले एक दशक से मत्स्य पालन के क्षेत्र में सरायकेला-खरसावां जिला पूरे राज्य में अव्वल रहा है. इस वर्ष भी राज्य के 24 जिलों में से सर्वाधिक मत्स्य उत्पादन का लक्ष्य सरायकेला-खरसावां जिले को ही दिया गया है. जिले में साल-दर-साल मत्स्य उत्पादन में वृद्धि हो रही है. चांडिल डैम में केज कल्चर से हो रहा मत्स्य पालन पूरे देश के लिए रोल मॉडल बन गया है. देश के अलग-अलग राज्यों से भी बड़ी संख्या में मछली पालन करने वाले किसान और विशेषज्ञ यहां मत्स्य पालन की जानकारी लेने आते हैं.

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Fish Farming: कोल्हान के 11 बड़े जलाशयों में मत्स्य पालन

सरायकेला-खरसावां जिले के 5 बड़े जलाशयों के साथ-साथ करीब 5,400 छोटे-बडे सरकारी और निजी तालाब में मत्स्य पालन होता है. चांडिल डैम में समितियों की ओर से केज कल्चर पालन किया जा रहा है. इसमें विस्थापित परिवारों के सदस्य मत्स्य पालन से जुड़े हैं. इसी तरह पश्चिमी सिंहभूम के 6 बड़े जलाशय समेत करीब 7,750 छोटे-बड़े सरकारी और निजी तालाबों में मत्स्य पालन किया जाता है.

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कोल्हान के 11 बड़े जलाशयों में हो रहा है मछली पालन. फोटो : प्रभात खबर

पनसुंआ और नकटी जलाशय में भी हो रहा मछली पालन

इसके अलावा पनसुंआ और नकटी जलाशय एवं खदानों के गड्डों में भी केज कल्चर से मछली की खेती होती है. अधिकांश तालाबों में मछली का जीरा छोड़ा दिया गया है. इस वर्ष मानसून की बारिश समय पर होने की वजह से जलाशय पानी से लबालब हैं. ऐसे में मछली का अच्छा उत्पादन होने की संभावना जतायी जा रही है.

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मत्स्य पालन कर स्वावलंबी बन रहे किसान

करीब 2 दशक पूर्व कोल्हान में काफी कम मात्रा में मत्स्य पालन होता था. अब यहां बड़े पैमाने पर मछली पालन हो रहा है. हाल के वर्षों में सरकार की ओर से मिलने वाले प्रोत्साहन की वजह से बड़ी संख्या में किसानों ने मत्स्य पालन की ओर रुख किया है. मत्स्य पालन में नये-नये प्रयोग हो रहे हैं. इससे किसानों की आमदनी बढ़ रही है और वे स्वावलंबी और आत्मनिर्भर भी हो रहे हैं. पश्चिमी सिंहभूम और सरायकेला खरसावां जिले के बंद पड़े खदानों में भी मत्स्य पालन हो रहा है.

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मछली की प्रगति देखने के लिए पहुंचे किसान और मत्स्य विभाग के अधिकारी. फोटो : प्रभात खबर

मत्स्य पालन कर स्वावलंबी बन रहे किसान

पिछले वर्ष 2024-25 में कोल्हान में कुल 61,200 मीट्रिक टन मछली का उत्पादन हुआ था. सरायकेला-खरसावां में 24,200 मीट्रिक टन, पूर्वी सिंहभूम में 19,500 मीट्रिक टन और पश्चिमी सिंहभूम जिले में 17,500 मीट्रिक टन मछली का उत्पादन हुआ.

सरायकेला-खरसावां : 7 वर्ष में मछली उत्पादन के आंकड़े

वर्ष मछली उत्पादन
2018-19 18,500 मीट्रिक टन
2019-20 19,200 मीट्रिक टन
2020-21 19,700 मीट्रिक टन
2021-22 21,000 मीट्रिक टन
2022-23 23,600 मीट्रिक टन
2023-24 23,900 मीट्रिक टन
2024-25 24,200 मीट्रिक टन
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जलाशय के किनारे जीरा के साथ तैयार मछली पालन करने वाले किसान. फोटो : प्रभात खबर

पश्चिमी सिंहभूम : 7 वर्ष में मछली उत्पादन के आंकड़े

वर्ष मछली का उत्पादन
2018-19 10,670 मीट्रिक टन
2019-20 10,800 मीट्रिक टन
2020-21 11,500 मीट्रिक टन
2021-22 12,800 मीट्रिक टन
2022-23 13,800 मीट्रिक टन
2023-24 16,500 मीट्रिक टन
2024-25 17,500 मीट्रिक टन

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