National Tax News: देश के अधिकतर राज्यों ने केंद्र सरकार से कर राजस्व में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की पुरज़ोर मांग की है. 16वें वित्त आयोग के चेयरमैन डॉ. अरविंद पनगढ़िया ने बुधवार को बताया कि भारत के 28 में से 22 से अधिक राज्यों ने आयोग से आग्रह किया है कि केंद्र और राज्यों के बीच कर राजस्व वितरण को मौजूदा 41 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत किया जाए.
डॉ. पनगढ़िया उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ पहुंचे थे, जहां उन्होंने संवाददाताओं से बातचीत करते हुए इस महत्वपूर्ण जानकारी का खुलासा किया. उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार सहित अनेक राज्यों ने एक स्वर में यह मांग उठाई है कि राज्यों को मिलने वाली कर आय का हिस्सा बढ़ाया जाए, जिससे उन्हें अपनी योजनाओं के लिए अधिक संसाधन मिल सकें.
वर्तमान व्यवस्था क्या है?
डॉ. पनगढ़िया ने बताया कि वर्तमान में राज्यों को केंद्र द्वारा एकत्रित करों का 41 प्रतिशत हिस्सा मिलता है, जबकि शेष 59 प्रतिशत हिस्सा केंद्र के पास रहता है. यह व्यवस्था 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर लागू की गई थी. उन्होंने कहा:
“पिछले वित्त आयोग ने राज्यों के लिए कर राजस्व में 41 प्रतिशत हिस्सा और केंद्र के लिए 59 प्रतिशत भाग निर्धारित किया था”
राज्यों की मांग: 50 प्रतिशत हिस्सेदारी
देश की संघीय संरचना को मज़बूती देने की दिशा में राज्यों ने अब 50 प्रतिशत की हिस्सेदारी की मांग की है. वित्त आयोग के अध्यक्ष ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार समेत 22 से अधिक राज्यों ने राजस्व में बराबरी की मांग करते हुए कहा है कि राज्यों के कंधों पर भी विकास और कल्याण की भारी जिम्मेदारी है.
डॉ. पनगढ़िया ने यह स्पष्ट किया कि उन्होंने सभी राज्यों की मांगों को ध्यानपूर्वक सुना है. हालांकि, उन्होंने इस बात का खुलासा नहीं किया कि आयोग इन मांगों को अपनी अंतिम सिफारिशों में शामिल करेगा या नहीं.
रिपोर्ट तैयार करने की प्रक्रिया जारी
वर्तमान में 16वां वित्त आयोग देशभर के विभिन्न राज्यों में परामर्श यात्राएं कर रहा है और राज्य सरकारों, अर्थशास्त्रियों, विशेषज्ञों तथा अन्य हितधारकों से सुझाव ले रहा है.
डॉ. पनगढ़िया ने बताया कि आयोग को अपनी अंतिम रिपोर्ट 31 अक्टूबर 2025 तक राष्ट्रपति को सौंपनी है. इसके बाद, सिफारिशें वर्ष 2026-27 से 2030-31 तक की अवधि के लिए लागू होंगी.
क्या होगा अगर हिस्सेदारी बढ़ाई जाती है?
अगर राज्यों को कर राजस्व में 50 प्रतिशत हिस्सा दिया जाता है, तो यह राज्य सरकारों को अधिक वित्तीय स्वतंत्रता देगा. इससे शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचे और कल्याणकारी योजनाओं में अधिक निवेश संभव हो सकेगा.
हालांकि, केंद्र सरकार के पास राजस्व का अनुपातिक हिस्सा घट जाने पर राष्ट्रीय योजनाओं और रक्षा क्षेत्र पर प्रभाव पड़ सकता है. इसलिए यह फैसला संतुलन और गहन विचार-विमर्श के बाद ही लिया जा सकेगा.
आयोग की भूमिका और संवैधानिक आधार
16वें वित्त आयोग का गठन संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत 31 दिसंबर 2023 को किया गया था. इसका प्राथमिक उद्देश्य केंद्र और राज्यों के बीच कर राजस्व के वितरण और राज्यों के बीच संसाधनों के बंटवारे पर संतुलित और न्यायसंगत सिफारिशें देना है.
डॉ. पनगढ़िया ने बताया कि अब तक की परंपरा यही रही है कि वित्त आयोग की सिफारिशों को केंद्र सरकार द्वारा यथावत स्वीकार किया जाता है, जिससे उनकी अहमियत और ज़िम्मेदारी और बढ़ जाती है.
राज्यों की आवाज़ बुलंद, केंद्र की प्रतिक्रिया का इंतजार
देश की संघीय व्यवस्था में संतुलन बनाने की दिशा में राज्यों ने अब अधिक संसाधनों की मांग के साथ एकजुट स्वर में आवाज़ बुलंद की है. अब देखना यह होगा कि 16वां वित्त आयोग अपनी रिपोर्ट में इस संवेदनशील मांग को किस रूप में शामिल करता है और अंततः केंद्र सरकार इस पर क्या रुख अपनाती है.
आगामी वर्षों में यह फैसला देश के वित्तीय भविष्य और विकास की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाएगा.
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