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झारखंड का एक खास गांव, जहां हर घर में सरकारी नौकरी, रेलकर्मियों के लिए है फेमस Jharkhand Village Machatand famous for railway workers government jobs


Jharkhand Village: कसमार (बोकारो), दीपक सवाल-बोकारो जिले का माचाटांड़ गांव रेलकर्मियों के गांव के रूप में जाना जाता है. यह गांव चंदनकियारी प्रखंड में है. कुड़मी बहुल माचाटांड़ की आबादी करीब 1200 है. अब तक गांव के करीब डेढ़ सौ लोग रेलवे की नौकरी में हैं. इसके सीमावर्ती गांव अलुवारा को जोड़ दें तो रेलकर्मियों की संख्या 200 से भी अधिक है. किसी समय दोनों गांव एक ही पंचायत में थे. वर्तमान में माचाटांड़ गांव नयावन पंचायत में है, जबकि अलुवारा गांव बाटबिनोर पंचायत में है. माचाटांड़ के कई परिवारों में पांच-पांच, छह-छह सदस्य रेलवे की नौकरी में रहे हैं.

एक ही परिवार से कई लोग हैं रेलवे में

रतनलाल महतो के परिवार में छह सदस्य रेलवे में रहे हैं. इनमें रतनलाल और इनके तीन अन्य भाई शोभाराम महतो, जोधाराम महतो और श्रीपति महतो एवं श्रीपति महतो के दो पुत्र (सुभाष महतो व कन्हाई) महतो शामिल हैं. खेदूराम महतो के घर में पांच सदस्य रेलवे में बहाल हो चुके हैं. इनमें खेदूराम के दो पुत्र (मागाराम महतो व जगाराम महतो), मागाराम के दो पुत्र (शत्रुघ्न महतो व भरत महतो) तथा जगाराम का भतीजा वीरेंद्र किशोर शामिल हैं. खेलाराम महतो के घर में भी पांच सदस्य रेलवे में बहाल हो चुके हैं. इनमें खेलाराम व इनके पुत्र रामेश्वर महतो, पौत्र मिहिर महतो तथा खेलाराम के भाई बीरू महतो व इनके पुत्र गुलुचरण महतो शामिल हैं.

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पिता-पुत्र और भाई हैं रेलवे में बहाल

रेघु महतो के घर में रेघु महतो व इनके दो पुत्र (विसु महतो व नीलकंठ महतो) तथा नीलकंठ के पुत्र सुभाष महतो रेलवे में हैं. इसी तरह सुचांद महतो व इनके दो पुत्र (राखोहरी महतो व विनोद महतो), पांचू महतो व इनके पुत्र व पुत्रवधु (मधु महतो व भुटी महटाइन), शोभाराम महतो व गोपाल महतो (दोनों भाई) व गोपाल के पुत्र (महादेव महतो), मुरलीधर कर्मकार व जगरनाथ कर्मकार (दोनों भाई) व जगरनाथ के पुत्र (परीक्षित कर्मकार), चक्रधर महतो व धरमुदास महतो (दोनों भाई), भोजू महतो व मथुर महतो (पिता-पुत्र), मोहन महतो व अनिल महतो (पिता-पुत्र) व मोहन के पुत्र तुलसी महतो भी रेलकर्मी रहे हैं. गोकुल महतो व हरिकृष्ण महतो (पिता-पुत्र), जगेश्वर महतो व तपेश्वर महतो (दोनों भाई), लक्ष्मण महतो व सुरेश महतो (पिता-पुत्र), बैजू महतो व बनमाली महतो (पिता-पुत्र), सुरेंद्र महतो व नान्हू महतो (दोनों भाई), भूखल महतो व गाजू महतो (पिता-पुत्र) रेलवे में हैं.

कुछ का निधन तो कुछ हैं पेंशनभोगी

दीनानाथ महतो व नित्यानंद महतो (पिता-पुत्र), झरी महतो व नेपाली महतो (पिता-पुत्र), शोभाराम महतो व खेतु महतो (दोनों भाई), जगदीश महतो व केदार महतो (दोनों भाई), भक्ति महतो व इनके दो पुत्र (सुभाष महतो व हरिश्चंद्र महतो), मेघु महतो व रूपलाल महतो (पिता-पुत्र), भूषण महतो व काशीनाथ महतो (दोनों भाई) के अलावा कीर्ति तुरी, रवि महतो, कालाचंद कर्मकार, अकलुराम महतो, चक्रधर महतो, हुबलाल महतो, रघुनाथ महतो, कार्तिक महतो, मनभुल महतो, जगेश्वर महतो, नटवर महतो, युवराज महतो, छोटेलाल महतो, सचिदानंद महतो, जगरनाथ महतो, जमींदार महतो, नीलकमल महतो समेत लगभग डेढ़ सौ लोग शामिल हैं. इनमें कई का निधन हो चुका है, जबकि कुछ पेंशनभोगी हैं और शेष विभिन्न जगहों पर कार्यरत हैं.

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रेलवे में इन पदों पर ली है नौकरी

माचाटांड़ और अलुवारा के लोगों ने रेलवे में जिन पदों पर नौकरी हासिल की है, उनमें क्लर्क, पीडब्लूआई, गेटमैन, केबिनमैन, लोको पायलट, गैंगमैन, की-मैन, मैट आदि शामिल हैं. गांव के करीब 30 लोग अन्य पदों पर भी सेवारत हैं. महावीर महतो व ओमप्रकाश महतो डॉक्टर हैं. संदीप महतो आईबी में कार्यरत हैं. रामनाथ महतो कर्नल व अभिषेक महतो पुलिस इंस्पेक्टर हैं. इसके अलावा बीसीसीएल, टाटा स्टील, एचएससीएल, आर्मी, टीचर, वकील, एयर फोर्स आदि पदों पर अनेक लोग सेवारत हैं.

ऐसे शुरू हुई गांव के लोगों की बहाली

इतनी बड़ी संख्या में गांव के लोगों के रेलवे में बहाल होने के पीछे वजह रही है. ग्रामीण बताते हैं कि महुदा रेलवे स्टेशन गांव के सामने है. महुदा स्टेशन के निर्माण में इस गांव के लोग काफी संख्या में कार्यरत थे. बाद में जब रेलवे में बहाली होने लगी तो उसमें अनुभव के आधार पर गांव के लोगों को उसमें प्राथमिकता मिली. उसके बाद अन्य बहालियों में भी गांव के अनेक लोगों ने अपनी योग्यता के दम पर नौकरी ली.

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दलघाटिया मंदिर व भोक्ता पर्व भी है काफी प्रसिद्ध

माचाटांड़ में दलघाटिया शिवमंदिर काफी चर्चित है. गांव के रतलाल महतो, शिशिर महतो, कैलाश महतो, महादेव महतो, राजकिशोर महतो, बलराम महली, संतोष महतो, शांतिराम महतो, राजेश महतो, लक्ष्मण महतो, संजय महतो, जमेंजय महतो, राधेश्याम सिंह आदि बताते हैं कि गांव में दामोदर किनारे स्थित अति प्राचीन दलघाटिया मंदिर आस्था का केंद्र है. यहां पत्थरों की कुछ आकृतियां भी हैं, जिसे एक बारात पार्टी का बताया जाता है. कहा जाता है कि किसी वजह से पूरी बारात पत्थर में तब्दील हो गई थी. पत्थर की पालकी, ढोल-नगाड़ा जैसी कई आकृतियां हैं. गांव का शिवमंदिर भी सैकड़ों साल पुराना है. यहां खुदाई में सोने की प्रतिमा मिली थी. जांच के लिए पुरातत्व विभाग के पास है. यहा का भोक्ता पर्व भी काफी प्रसिद्ध है. गांव में 98 फीसदी आबादी कुड़मियों की है. शेष दो फीसदी में कर्मकार (3 घर), ब्राह्मण (1 घर) और तुरी (1 घर) है. गांव में धान की खेती खूब होती है. स्वर्गीय उपेंद्र महतो इस गांव के नामी मुखिया थे. मध्य विद्यालय इन्हीं के परिवार द्वारा दान की गई जमीन पर बना है. यह गांव तलगड़िया मुख्य पथ से करीब पांच किमी व जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूरी पर है.

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