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पराली से हवा यूं होती है जहरीली, अगर जलाते रहेंगे पराली तो कहर बरपाती रहेगी ठंड!

उन्नाव। बड़े बुजुर्ग कह गए हैं, प्रकृति को जो दोगे, समय आने पर वह सूद समेत वापस कर देगी। यह होने लगा है। इस बार पड़ रही भीषण ठंड का कारण जितना प्राकृतिक है, उतना ही इंसानी भी। मौसम विज्ञानियों की रिपोर्ट बता रही है कि पराली जलाने से हवा में जितना प्रदूषण बढ़ा है, ठंड उतना ही कहर बरपा रही है। यानी हम जितनी पराली जलाएंगे, ठंड उतना ही कहर बरपाएगी। जी हां, उप्र मौसम विभाग के वैज्ञानिक इसी निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि रिकार्डतोड़ ठंड के पीछे पराली का धुआं सबसे बड़ा कारण है। ठंड के कारणों की पड़ताल में जुटा मौसम विभाग एक अध्ययन रिपोर्ट तैयार कर रहा है, जिसमें यह शुरुआती निष्कर्ष सामने आया है।

मौसम विज्ञानियों के अनुसार सर्दी शुरू होने से पहले उत्तर भारत, खास कर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में बेतहाशा पराली जलाई गई। इससे नमी वाष्पीकृत होकर गैस, रासायनिक तत्व और धूल कणों संग ऊपर गई, लेकिन भारी होने से वायुमंडल की निचली सतह पर रह गई। इधर, सर्दी में कोहरा बढ़ा तो प्रदूषण से मिलकर स्मॉग बना। वातावरण में हाइग्रोस्कोपिक न्यूक्लिाई बनने लगे और वायुमंडल की निचली सतह पर नमी का संघनन तेज हो गया। इससे 900 मीटर पर बनने वाले बादल 400 मीटर पर ही बनकर सूर्य की किरणों को जमीन तक पहुंचने से रोकने लगे। इससे वायुमंडल की निचली सतह ठंडी हुई। धरती की सतह पर धीमे वाष्पन, पहाड़ी क्षेत्रों में हवा का दबाव बनने से पैदा विक्षोभ और पहाड़ों से आने वाले बर्फीली हवाओं ने मिलकर ठंड का कहर बढ़ा दिया। जहां बड़े जलस्नोत हैं, नमी के कारण वहां ठंड अधिक हो रही है।

इसे मौसम सही होना न मानें

अच्छी बारिश से अच्छी सर्दी हुई, अब गर्मी भी अच्छी पड़ेगी व अगली बारिश अच्छी होगी…, लोग यही चर्चा कर रहे हैं, लेकिन मौसम विज्ञानियों के अनुसार ठंड देखकर यह धारणा केवल भ्रम है। बारिश के दिन कम रहे हैं। ठंड के दिन भी कम हुए हैं।

तो इसलिए मारक हुई पराली

बीते कई सालों से पराली जलने से वायुमंडल की निचली सतह पर प्रदूषण बढ़ा है। अक्टूबर-नवंबर में पड़ी धुंध, 10-15 दिसंबर के बीच पहाड़ी इलाकों में बर्फबारी और राजस्थान में हुई बारिश ने नमी बढ़ाई। इससे पहाड़ से मैदान तक कोहरे की चादर घनी हुई और प्रदूषण से बड़े दायरे में हाइग्रोस्कोपिक न्यूक्लिाई बन गए। बीते सालों में नमी कम रहने से पराली इतनी मारक नहीं हुई। सौ साल पहले इससे अधिक सर्दी पड़ी, तब कारक दूसरे थे।

पराली से हवा यूं होती है जहरीली

कृषि उपनिदेशक के अनुसार इस बार उप्र में सेटेलाइट से आंकड़े जुटाए गए। एक एकड़ पराली जलने पर 18-20 किग्रा नाइट्रोजन, 3.2-3.5 किलो फास्फोरस, 56-60 किग्रा पोटाश, 4-5 किग्रा सल्फर, 1150-1250 किग्रा जैविक कार्बन पैदा होता है। यह भी कह सकते हैं कि गैस पार्टिकल्स में करीब 85 फीसद तक कार्बन, मीथेन और नाइट्रोजन व सल्फर के ऑक्साइड होते हैं। इसीलिए अभी आकाश में कालिमा है। अंदाजा लगा सकते हैं, पंजाब से लेकर उत्तर प्रदेश तक वायुमंडल में कितना जहर घोला गया।

जानिए हाइग्रोस्कोपिक न्यूक्लिाई

हाइग्रोस्कोपिक न्यूक्लिाई नमी को आकर्षित करते हैं, चाहे आर्द्रता काफी कम क्यों न हो। इन न्यूक्लिाई के आसपास नमी के संघनन की प्रक्रिया तेज हो जाती है। नमक के कण एक तरह के हाइग्रोस्कोपिक न्यूक्लिाई हैं, जो आसपास की नमी को खींचते हैं। इस बार दो तरह के विक्षोभ बने। एक उत्तर पश्चिमी, दूसरा स्थानीय। ऐसा हाइग्रोस्कोपिक न्यूक्लिाई बनने से हुआ। इससे बादल वायुमंडल की निचली सतह पर हैं और बेहद ठंडे हैं। इससे तीव्र ठंड पड़ी। अब बारिश के साथ ओले पड़ने की आशंका है। हालांकि इसके बाद मौसम ठीक हो जाएगा, लेकिन हाइग्रोस्कोपिक न्यूक्लिाइ फिर बनने की आशंका है। इससे तीस जनवरी तक मौसम बेहद ठंडा रहने की उम्मीद है।-जेपी गुप्ता, निदेशक मौसम विभाग, उत्तर प्रदेश