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हाे भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने को लेकर हुआ प्रदर्शन


Tribal Language: देश के आदिवासी संगठन अपनी भाषा की पहचान को लेकर आंदोलनरत है. इस बाबत आदिवासी समुदाय के हो समुदाय ने आठवीं अनुसूची में हो भाषा को शामिल करने की मांग को लेकर जंतर मंतर पर धरना प्रदर्शन किया. इस दौरान देशभर से आए हजारों हो समुदाय के सदस्यों ने शुक्रवार को जंतर मंतर पर ऑल इंडिया हो लैंग्वेज एक्शन कमेटी (एआईएसएलएसी) के बैनर तले एक दिवसीय विशाल धरना प्रदर्शन का आयोजन किया. प्रदर्शनकारियों ने हो भाषा को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर आवाज बुलंद किया.

एक दिवसीय धरना में झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल से आए करीब हजारों आदिवासी लोग शामिल हुए. प्रदर्शन में छात्रों, बुद्धिजीवियों और समुदाय के नेताओं ने हो लैंग्वेज हमारा अधिकार है, हमारा डिमांड लीगल डिमांड”, हो लैंग्वेज इंक्लूड करो जैसे नारे लगाकर अपनी लंबे समय से चली आ रही मांग को दोहराया. समुदाय की प्रमुख मांग में संविधान की आठवीं अनुसूची में हो भाषा को शामिल करने, हो भाषा बोलने वाले समुदाय की समृद्ध भाषा, साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण के लिए इसे संवैधानिक दर्जा देने की मांग की गयी. 

देश के आदिवासी समुदाय की भावना को हो सम्मान

Tribal language: हाे भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने को लेकर हुआ प्रदर्शन 3

हो भाषा मुंडा समुदाय की प्रमुख भाषा है और देश में 40 लाख से अधिक आदिवासी समुदाय की मातृभाषा है. इसके अलावा लगभग 10 लाख गैर-आदिवासी लोग इस भाषा का प्रयोग करते हैं. हालांकि यह भाषा 1961 से भारत की जनगणना में सूचीबद्ध है, फिर भी अब तक इसे संवैधानिक मान्यता नहीं मिल सकी है. ओडिशा और झारखंड सरकार पहले ही हो भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की औपचारिक सिफारिश कर चुकी है. साथ ही प्रख्यात विद्वान सिताकांत महापात्र और प्रोफेसर एबी ओटा की अध्यक्षता में गठित विशेषज्ञ समिति सकारात्मक रिपोर्ट पेश कर चुकी है.

संसद में भी कई सांसदों द्वारा बार-बार मुद्दा उठाया जा चुका है. लेकिन केंद्र सरकार इस लंबित मांग को पूरा नहीं कर सकी है. ऑल इंडिया हो लैंग्वेज एक्शन कमेटी ने भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री से  हो भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग करते हुए कहा कि हाे समुदाय के लिए यह केवल एक भाषा का मुद्दा नहीं है, बल्कि पहचान, गर्व और न्याय से जुड़ा हुआ है. अगर हमारी मांगें नहीं मानी गईं, तो देशभर में आंदोलन और तेज किया जायेगा.