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वैक्सीन निर्माण के मामले में भारत दुनिया के अव्वल देशों में शुमार


DU: देश में पिछले एक दशक में भारत में चिकित्सा शिक्षा में मूलभूत परिवर्तन आया है और मेडिकल कॉलेजों और प्रशिक्षण के अवसरों की संख्या में व्यापक वृद्धि हुई है. एम्स जैसे संस्थानों के विस्तार के कारण विभिन्न क्षेत्रों में चिकित्सा शिक्षा तक पहुंच आसान हुई है और अधिक से अधिक लड़कियां चिकित्सा क्षेत्र में करियर बनाने में सक्षम हो रही है. मौजूदा समय में देश में स्वास्थ्य सेवा अधिक सुलभ, किफायती और समावेशी हुआ है. स्वास्थ्य के मामलों में राज्य और नागरिक के बीच संबंधों को नए सिरे से परिभाषित करने के लिए आयुष्मान भारत और जन औषधि केंद्र जैसी पहल का अहम योगदान है. दिल्ली विश्वविद्यालय के यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज के 54 वें स्थापना दिवस और कॉलेज दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए केंद्रीय कार्मिक, लोक शिकायत, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री 

डॉक्टर जितेंद्र सिंह ने कहा कि मेडिकल की डिग्री हासिल करने वाले छात्रों को करुणा के साथ इनोवेशन को अपनाकर लोगों का इलाज करना चाहिए. उन्होंने कहा कि कैसे भारत में स्वास्थ्य बीमा पहले से मौजूद बीमारियों को कवर करने के लिए विकसित हुआ है. यह बदलाव सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति में सबसे मानवीय इनोवेशन में से एक है. भारत जैव विज्ञान के क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है. जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने ही कोविड-19 के लिए दुनिया का पहला डीएनए टीका और गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर की रोकथाम के लिए एचपीवी टीका विकसित करने का काम किया. भारत अब 200 से अधिक देशों को स्वदेशी टीके उपलब्ध कराता है.

चिकित्सा क्षेत्र में एआई के प्रयोग को बढ़ावा देना जरूरी

भारत के पहले स्वदेशी एंटीबायोटिक नैफिथ्रोमाइसिन और न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित हीमोफीलिया के लिए जीन थेरेपी के सफल परीक्षणों का जिक्र करते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि ऐसी सफलता निवारक और चिकित्सा स्वास्थ्य सेवा में भारत के अग्रणी देश के तौर पर उभार को दर्शाती हैं. उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेजऔर अन्य मेडिकल संस्थानों से उन्नत क्लीनिकल ट्रायल और रिसर्च में निजी क्षेत्र के साथ सहयोग बढ़ाने पर फोकस करने का आग्रह किया. शैक्षणिक संस्थानों को उद्योग और सरकारी प्रयोगशालाओं के साथ एकीकृत होना जरूरी है क्योंकि अब अलग-अलग काम करने का दौर खत्म हो चुका है. 

इस अवसर पर संस्थान की 54 वर्षों की यात्रा को दर्शाते हुए एक स्‍मृति चिन्‍ह का विमोचन किया गया, जिसमें चिकित्सा शिक्षा, अनुसंधान और जनसेवा में कॉलेज की उपलब्धियों को दर्शाया गया है. उभरती स्वास्थ्य चुनौतियों का जिक्र करते हुए जितेंद्र सिंह ने कहा कि मौजूदा समय में डॉक्टरों को संक्रामक और गैर-संक्रामक रोगों का सह-अस्तित्व के साथ-साथ बढ़ती उम्र की आबादी और तेजी से बदलते तकनीकी बदलावों से निपटना होगा. चिकित्सा में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस(एआई) का एकीकरण जरूरी है. एआई रोगी की अपनी भाषा में संवाद कर सकता है और मानवीय संवाद के जरिये राहत भी प्रदान कर सकता है.