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केरल में ब्रेन इटिंग अमीबा से दहशत, क्या है यह बीमारी? बचाव और इलाज; एक सप्ताह में हो जाती है मौत


Brain Eating Amoeba: केरल एक दुर्लभ लेकिन घातक बीमारी से जूझ रहा है. इस बीमारी से हाल के महीनों में 19 लोगों की जान गई है. इस साल राज्य में इसके 70 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं. इसका कारण एक सूक्ष्म परजीवी है जिसे नेगलेरिया फाउलेरी (Brain-eating amoeba) के नाम से जाना जाता है. इसे “दिमाग खाने वाला अमीबा” कहा जाता है, जो प्राथमिक अमीबिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस या पीएएम नामक स्थिति उत्पन्न करता है.

ब्रेन इटिंग बीमारी किस कारण से होता है?

ब्रेन इटिंग बीमारी एक दुर्लभ लेकिन लगभग घातक मस्तिष्क संक्रमण है, जो नेगलेरिया फाउलेरी (दिमाग खाने वाले अमीबा) के कारण होता है. यह संक्रमण अमूमन जानलेवा होता है, और इससे संक्रमित होने वाले 98 प्रतिशत से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है.

ब्रेन इटिंग बीमारी का अमीबा कहां पाया जाता है?

अमीबा गर्म मीठे पानी जैसे तालाबों, झीलों, नदियों और खराब रखरखाव वाले स्विमिंग पूलों में पाया जाता है. स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार, इसे निगलने पर यह बीमारी का कारण नहीं बनता है, लेकिन जब पानी नाक में चला जाता है तो परजीवी नाक के रास्ते मस्तिष्क में प्रवेश कर सकता है. इससे यह मस्तिष्क में सूजन और ऊतकों के विनाश का कारण बनता है. यह रोग बहुत तेजी से बढ़ता है.

ब्रेन इटिंग बीमारी से एक से दो सप्ताह के भीतर मृत्यु हो जाती है

एक स्वास्थ्य अधिकारी के अनुसार, ‘‘बुखार, सिरदर्द, मतली और गर्दन में अकड़न से शुरू होने वाली स्थिति जल्द ही दौरे और कोमा में बदल जाती है. आमतौर पर एक से दो सप्ताह के भीतर मृत्यु हो जाती है.’’ डॉक्टर का कहना है कि इसे अक्सर बैक्टीरियल मैनिंजाइटिस समझ लिया जाता है, और जब वास्तविक कारण का पता चलता है, तब तक मरीज को बचाने में बहुत देर हो चुकी होती है.

ऐसी कोई दवा नहीं है जो पीएएम का इलाज कर सके

स्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा कि इसका इलाज बेहद मुश्किल है. ऐसी कोई एक दवा नहीं है जो पीएएम का इलाज कर सके और दुनिया भर में इससे बचने वाले लोग बहुत कम हैं. जो मरीज इस बीमारी से उबर चुके हैं, उनका इलाज शक्तिशाली दवाओं जैसे एम्फोटेरिसिन बी, मिल्टेफोसिन और रिफाम्पिसिन के संयोजन से किया गया, साथ ही इस बीमारी के साथ होने वाली खतरनाक मस्तिष्क सूजन को कम करने के लिए उपचार भी किया गया.

रोकथाम ही बीमारी से बचाव, बच्चों को होज या स्प्रिंकलर से रखें दूर

यह रोग अत्यंत दुर्लभ है, फिर भी इसकी उच्च मृत्यु दर ने चिंता पैदा कर दी है. विशेषज्ञ इस बात पर जोर देते हैं कि रोकथाम ही सबसे अच्छा बचाव है. लोगों को सलाह दी जाती है कि वे गर्मी के मौसम में स्थिर या खराब रखरखाव वाले मीठे पानी के स्रोतों में न तैरें और न ही गोता लगाएं. अगर तैरना जरूरी हो तो नाक में क्लिप लगाएं जिससे पानी के नाक में जाने का खतरा कम हो सकता है. डाक्टरों का कहना है कि बच्चों को होज या स्प्रिंकलर से नहीं खेलना चाहिए, इससे पानी नाक में जाने का खतरा है. बगीचे की होज को इस्तेमाल करने से पहले अच्छी तरह धोना चाहिए. पैडलिंग पूल की रोजाना सफाई, स्विमिंग पूल का उचित क्लोरीनीकरण और नाक धोने के लिए केवल उबला हुआ या फिल्टर किया हुआ पानी इस्तेमाल करने की भी सलाह दी गई है.

अमीबा गर्म पानी में पनपता है, जलवायु परिवर्तन से बढ़ सकता है पीएएम का खतरा

वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन से पीएएम का खतरा बढ़ सकता है. अमीबा गर्म पानी में पनपता है और उच्च तापमान पर पनपने वाले बैक्टीरिया पर निर्भर करता है. गर्मियां बढ़ने से परजीवी का दायरा बढ़ सकता है और ज्यादा लोग राहत की तलाश में झीलों और नदियों की ओर रुख कर सकते हैं, जिससे बीमारी के संपर्क में आने की आशंका बढ़ जाती है.