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वक्फ कानून पर शीर्ष अदालत का फैसला संवैधानिक मूल्यों की जीत


Congress: वक्फ(संशोधन कानून) संसद से पारित होने के बाद से ही विपक्षी दल और मुस्लिम संगठनों की ओर से विरोध जताया जा रहा था. कानून पारित होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में उसकी वैधानिकता को चुनौती दी गयी. सुप्रीम कोर्ट में सभी पक्षों की ओर से दलील पेश की गयी और सोमवार को शीर्ष अदालत ने इस मामले में फैसला दिया. हालांकि याचिकाकर्ताओं की कानून पर अंतरिम रोक लगाने की मांग को अदालत ने स्वीकार नहीं किया, लेकिन कानून के कुछ प्रावधानों पर रोक लगाने का आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सरकार और विपक्ष अपनी जीत के तौर पर पेश कर रहा है. 

कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह न्याय और समानता के सिद्धांत की जीत है. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि वक्फ(संशोधन) कानून पर संयुक्त संसदीय समिति में विपक्षी दलों की ओर से असहमति के नोट दिए गए थे. शीर्ष अदालत के फैसले में असहमति के नोट को स्वीकार करने का काम किया है और यह विपक्षी दलों की जीत है. सरकार ने कानून बनाते समय विपक्ष की ओर से पेश असहमति के नोट को दरकिनार कर मनमाने तरीके से प्रावधान को जोड़ने का काम किया और अब अदालत ने ऐसे प्रावधान पर रोक लगाने का काम किया है. फैसले से सरकार की वक्फ संपत्ति को लेकर विकृत मंशा फेल हो गयी. सरकार की मंशा वक्फ संपत्ति के नाम पर समाज में ध्रुवीकरण को बनाए रखना था.

कुछ प्रावधानों पर लगी रोक

सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के कुछ प्रावधानों पर रोक लगाने का फैसला सुनाया. मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायाधीश एजी मसीह की खंडपीठ ने वक्फ बनाने के लिए 5 साल तक इस्लाम का अभ्यास करने की अनिवार्यता वाले प्रावधान पर संबंधित नियम नहीं बनने तक रोक लगाने का आदेश दिया. साथ ही वक्फ संबंधी संपत्ति पर कलेक्टर को विवाद पर निर्णय लेने का अधिकार देने के फैसले पर भी रोक लगा दी. अदालत के फैसले में कहा गया है कि राज्य वक्फ बोर्डों में तीन से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होने चाहिए, जबकि केंद्रीय वक्फ बोर्ड में चार से ज्यादा गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं हो सकते हैं. 

गौरतलब है कि वक्फ (संशोधन) कानून को लेकर मुस्लिम संगठनों की ओर से जबरदस्त विरोध किया गया. विपक्षी दलों ने भी इस कानून को अल्पसंख्यक हितों के खिलाफ करार दिया गया. इस कानून के खिलाफ कई राजनीतिक दल और मुस्लिम संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कानून को संविधान के खिलाफ करार देते हुए रोक लगाने की मांग की थी लेकिन अदालत ने कानून पर अंतरिम रोक लगाने से इंकार कर दिया.