Transport: देश में ऑटोमोबाइल का बाजार तेजी से आगे बढ़ रहा है. वैश्विक ऑटोमोबाइल बाजार में जापान को पीछे छोड़कर भारत तीसरा सबसे बड़ा बाजार बन गया है. ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरिंग हब, स्वच्छ परिवहन और इंफ्रास्ट्रक्टर इनोवेशन के क्षेत्र में भी भारत की पकड़ लगातार मजबूत हो रहा है. सरकार का लक्ष्य अगले पांच साल में देश को ऑटोमोबाइल क्षेत्र में दुनिया का शीर्ष देश बनाने की है. मौजूदा समय में दुनिया की सभी प्रमुख ऑटोमोबाइल ब्रांड भारत में उपलब्ध है. अब प्रमुख ऑटोमोबाइल कंपनियां भारत में सिर्फ गाड़ियों की असेंबलिंग नहीं कर रही है, बल्कि भारत में बनी गाड़ियां दूसरे देशों में आपूर्ति की जा रही है.
दिल्ली में आयोजित इंटरनेशनल वैल्यू समिट को संबोधित करते हुए केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि देश में निर्मित 50 फीसदी दोपहिया वाहन का निर्यात हो रहा है. इससे वैश्विक स्तर पर ऑटोमोबाइल क्षेत्र में देश की बढ़ती ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है. गौरतलब है कि मौजूदा समय में देश का वाहन उद्योग 22 लाख करोड़ रुपये का है, जबकि अमेरिका का 78 लाख करोड़ रुपये और चीन का 47 लाख करोड़ रुपये है. देश में हर साल कोयला, पेट्रोल, डीजल के आयात पर सालाना 22 लाख करोड़ रुपये खर्च कर रहा है और इससे प्रदूषण भी बढ़ रहा है.
प्रदूषण से निपटने के लिए वैकल्पिक ईंधन पर फोकस है जरूरी
गडकरी ने कहा कि भारत इलेक्ट्रिक वाहन, हाइड्रोजन फ्यूल और वैकल्पिक ईंधन के क्षेत्र के विकास में लगातार काम कर रही है. देश में हाइड्रोजन ट्रक पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर 10 रूट पर चलाया जा रहा है. भारत सरकार की कोशिश स्वच्छ और हरित परिवहन के मामले में दुनिया का अव्वल देश बनने की है. टाटा मोटर्स, अशोक लीलैंड, रिलायंस, इंडियन ऑयल जैसी कंपनियों के सहयोग से देश में हाइड्रोजन इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए सरकार की ओर से 600 करोड़ रुपये मुहैया कराया गया. देश में नये वैकल्पिक ईंधन जैसे आइसोबूटने और बायो-बिटुमेन का ट्रायल अंतिम चरण में है.
देश में सड़क इंफ्रास्ट्रक्चर में व्यापक बदलाव आया है और दुनिया में सड़क के मामले में भारत दूसरे स्थान पर पहुंच गया है. शहरी में जाम की समस्या दूर करने के लिए रिंग रोड का निर्माण तेज गति से किया जा रहा है. सरकार की कोशिश वेस्ट से वेल्थ निर्माण पर है. दिल्ली के गाजीपुर स्थित कूड़े के पहाड़ से 80 लाख टन कचरे का उपयोग सड़क निर्माण में किया गया है. इसके कारण कचरे के पहाड़ की ऊंचाई सात मीटर कम हुई है. टनल इंजीनियरिंग, सड़क निर्माण, हाइड्रोजन ट्रांसपोर्ट सिस्टम के विकास के लिए इनोवेशन और वैश्विक सहयोग पर जोर देने की आवश्यकता है.