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एसआईआर पर विपक्ष दावे करने में आगे, लेकिन जमीनी स्तर पर शिकायत करने में फिसड्डी


Election Commission: बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण(एसआईआर) को लेकर विपक्ष की ओर से लगातार सवाल उठाए गए. इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी गयी और अदालत ने मामले में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया. हैरानी वाली बात है कि मतदाता सूची के खिलाफ दावे के आखिरी दिन सोमवार को मतदाता सूची से 16 नाम हटाने का आवेदन किया गया. कांग्रेस की ओर से विभिन्न जिलों के चुनाव अधिकारियों को 89 लाख शिकायत सौंपने की बात कही गयी है. विपक्ष का आरोप है कि चुनाव आयोग द्वारा एसआईआर कराने का फैसला भाजपा को लाभ पहुंचाने के लिए किया गया गया है.

इसका मकसद बिहार की मतदाता सूची से दलित, गरीब और प्रवासी मजदूरों का नाम हटाना है. ताकि चुनाव में भाजपा को लाभ मिल सके. लेकिन चुनाव आयोग की ओर से सोमवार को जारी बयान में कहा गया कि कांग्रेस की ओर से अभी तक मतदाता सूची से नाम हटाने या जोड़ने के लिए एक भी आवेदन हासिल नहीं हुआ है. 

गौर करने वाली बात है कि एक सितंबर तक 18 साल होने के बाद मतदान के लिए 16 लाख से अधिक युवाओं ने मतदाता के तौर नाम शामिल करने के लिए आवेदन किया है. इसके अलावा 2.17 लाख लोगों ने मतदाता सूची से नाम हटाने और 36475 ने मतदाता सूची में नाम जोड़ने का आवेदन दिया है. 

दावे के विपरीत राजनीतिक दलों की ओर से शिकायत आयी है काफी कम

भले ही विपक्षी दलों की ओर से एआईआर प्रक्रिया को लेकर गंभीर सवाल उठाए गए हैं. लेकिन जमीनी स्तर पर विपक्षी दलों की ओर से एसआईआर को लेकर काफी कम शिकायतें मिली है. अगर राजनीतिक दलों की ओर से मिले दावों पर गौर करें तो भाकपा(माले) की ओर से अब तक 103 आवेदन मतदाता सूची से नाम हटाने और 15 आवेदन नाम जोड़ने के लिए मिले है. वहीं राजद की ओर से सिर्फ 10 आवेदन नाम जोड़ने के लिए हासिल हुए है.

चुनाव आयोग के निर्देश के अनुसार एक अगस्त 2025 में प्रकाशित मतदाता सूची से किसी नाम को हटाने के लिए निर्वाचित और जिला निर्वाचन अधिकारी काे दूसरे पक्ष को मौका देना होगा और नाम हटाने के कारण का ठोस कारण भी बताना होगा. एसआईआर की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए चुनाव आयोग राजनीतिक दलों को बूथ लेवल एजेंट की तैनाती करने का भी अधिकार मुहैया कराता है.

राजनीतिक दलों की ओर नियुक्त बूथ लेवल एजेंट की ओर से एसआईआर को लेकर शिकायतों की संख्या काफी कम है. भले ही विपक्षी दलों की ओर से इसे राजनीतिक मुद्दा बनाने की कोशिश की गयी है, लेकिन जमीनी स्तर पर एसआईआर को मुद्दा बनाने के असर का आकलन चुनाव परिणाम के नतीजे तय करेंगे.