Election Commission: चुनाव आयोग के बिहार चुनाव से पहले विशेष गहन पुनरीक्षण(एसआईआर) कराने के फैसले को लेकर राजनीतिक घमासान जारी है. संसद से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में इस मामले को लेकर लड़ाई चल रही है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल एसआईआर पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है, लेकिन विपक्षी दलों की ओर से संसद में इस मामले पर चर्चा को लेकर रार जारी है. पिछले कई दिनों से एसआईआर को लेकर संसद में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच गतिरोध जारी है.
एसआईआर पर तनाव के बीच चुनाव आयोग की ओर से मतदाता सूची का ड्राफ्ट मसौदा जारी किया जा चुका है. इस मामले में चुनाव आयोग लगातार जानकारी मुहैया करा रहा है.
आयोग ने मंगलवार को बिहार के एसआईआर से संबंधित 1 से 5 अगस्त तक का आंकड़ा जारी कर राजनीतिक दलों, मतदाताओं और नए मतदाताओं से मिली आपत्ति के बारे में जानकारी दी है.
बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण के तहत 1 अगस्त को जारी मतदाता सूची के मसौदा प्रारूप के पहले 5 दिनो (1 अगस्त से 5 अगस्त तक) में किसी भी राजनीतिक दल की ओर से कोई आपत्ति नहीं दी गयी है. सभी योग्य मतदाताओं को सूची में शामिल करने और अयोग्य मतदाताओं को हटाने के लिए पारदर्शी प्रक्रिया अपनायी गयी है.
दावों के निपटारे के लिए आयोग कर रहा है काम
निर्वाचन आयोग के अनुसार पात्र मतदाताओं की सूची में शामिल करने और अयोग्य मतदाताओं को हटाने के लिए पिछले पांच दिनों में 2864 दावे या आपत्तियां प्राप्त हुई है और उसका निपटारा किया गया है. आयोग के अनुसार 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र वाले नए मतदाताओं से फार्म-6 के तहत 14914 आवेदन मिले हैं. दावों और आपत्तियों का निपटारा संबंधित निर्वाचन रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (ईआरओ/एईआरओ) द्वारा 7 दिनों के अंदर किया जायेगा.
किस पार्टी के कितने बीएलए
आयोग के अनुसार बिहार में आम आदमी पार्टी (आप) का 1 बीएलए, बहुजन समाज पार्टी के 74, भारतीय जनता पार्टी के 53338, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के 899, कांग्रेस के 17549, राजद की ओर से 47506, जदयू की ओर से 36550, भाकपा माले के 1496 और अन्य पार्टियों की ओर से बूथ लेवल एजेंट की तैनाती की गयी थी. लेकिन ड्राफ्ट मसौदा जारी होने के बाद से अभी तक किसी राजनीतिक दल की ओर से कोई शिकायत नहीं मिली है.
भले ही विपक्षी दलों की ओर से एआईआर के तहत गरीब और अल्पसंख्यक मतदाताओं के नाम काटने के आरोप लगाए गए है, लेकिन किसी दल की ओर से किसी तरह की आपत्ति दर्ज नहीं कराए जाने से साफ है कि एसआईआर को लेकर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश की गयी.