Judge Cash Row: देश में राष्ट्रपति और राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति संविधान को सुरक्षित और बचाने की शपथ लेते हैं. जबकि उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, सांसद और विधानसभा के सदस्य, न्यायाधीश संविधान को मानने की शपथ लेते हैं. यही नहीं राष्ट्रपति और राज्यपाल पर पद पर रहते हुए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है. ऐसे में संस्थान के भीतर की कमी के खिलाफ आवाज उठाना जरूरी है. देश में न्यायपालिका के प्रति लोगों में काफी भरोसा है. अन्य किसी भी संस्थान से अधिक भरोसा लोग न्यायपालिका पर करते हैं. लेकिन अगर लोगों का भरोसा न्यायपालिका के प्रति कमजोर हो जाए तो देश को कई चुनौतियों का सामना करना है. सोमवार को नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ एडवांस्ड लीगल स्टडीज के कार्यक्रम को संबोधित करते उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने यह बात कही. उन्होंने कहा कि हाल की कुछ घटना से देश के 140 करोड़ लोग विचलित हैं.
संविधान तभी सशक्त और मजबूत होगा जब लोकतंत्र के चारों स्तंभ मिलकर काम करें. लेकिन अगर कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका अलग-अलग तरीके से काम करें तो हालात चिंताजनक हो सकता है. विषय यह नहीं है कि कौन सुप्रीम है. संविधान के अनुसार हर संस्थान के काम करने का अधिकार सुनिश्चित किया गया है. लेकिन न्यायपालिका के लिए कुछ खबरें परेशान करने वाली है. उपराष्ट्रपति ने कहा कि न्यायाधीश के आधिकारिक आवास से नकदी मिलने की आपराधिक जांच होनी चाहिए. अगर नकदी बरामद हुई थी तो शासन-व्यवस्था को तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए थी. इसे आपराधिक मामले के तौर पर निपटा जाता. दोषी लोगों का पता लगाकर उन्हें सजा दी जाती. लेकिन अभी तक इस मामले में एफआईआर भी दर्ज नहीं की गयी है.
केंद्र सरकार के हाथ हैं बंधे
उपराष्ट्रपति ने कहा कि इस मामले में केंद्र सरकार कुछ नहीं कर सकती है. इसकी वजह है 90 के दशक में दिया गया सुप्रीम कोर्ट का फैसला. न्यायपालिका काे स्वतंत्र होना चाहिए. न्यायाधीश जटिल मामलों की सुनवाई करते हैं और उन्हें सुरक्षा मिलनी चाहिए. न्यायाधीशों को झूठे मामले से बचाने के लिए तंत्र होना चाहिए. लेकिन कुछ बातें परेशान करने वाली है. 14-15 मार्च को एक घटना होती है. लेकिन एक हफ्ते बाद यह मामला सामने आता है. सवाल है कि क्या इस बात की जानकारी पहले किसी को थी. आग लगने का मामला था तो अग्निशमन विभाग के अधिकारी और सिस्टम को इस बात की जानकारी होगी. पैसे मिलने की बात को सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया.
क्या ऐसे और भी मामले सामने आते रहे है या यह एक अकेला मामला है. ऐसे में न्यायाधीश के आवास पर पैसा मिलने के मामले में भी कार्रवाई होनी चाहिए क्योंकि यह संविधान और लोकतंत्र की साख का मामला है. कानून के समक्ष सभी बराबर है और इस मामले की भी जांच होनी चाहिए कि आखिर इतना पैसा कहां से आया? क्या यह काला धन है. तह तक जाकर मामले की जांच होनी चाहिए. सेवानिवृति के बाद न्यायाधीशों को पद नहीं लेना चाहिए. कई सरकारी कर्मचारियों के मामले में यह नियम है. गौरतलब है कि न्यायाधीश यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास पर आग लगने के बाद वहां बड़ी मात्रा में अघोषित नकदी बरामद होने के बाद संसद में महाभियोग लाने की प्रक्रिया चल रही है.