Congress: बिहार में मतदाता सूची की विशेष गहन पुनरीक्षण कराने के चुनाव आयोग के फैसले पर राजनीति जारी है. अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. कांग्रेस ने सोमवार को कहा कि चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ पूरा विपक्ष एकजुट है. चुनाव आयोग के इस फैसले से करोड़ों गरीब मतदान करने से वंचित हो जायेंगे. क्योंकि चुनाव ने समीक्षा के लिए जो तरीका अपनाया है, उसमें कई खामियां है. कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि कांग्रेस सहित 9 विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण कराने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. सोमवार को कांग्रेस सहित 9 दलों ने सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ याचिका दाखिल की. चुनाव आयोग के इस गलत फैसले के कारण लाखों गरीब मतदाता मतदान से वंचित हो जायेंगे और इसके खिलाफ विपक्ष मजबूती से लड़ाई लड़ रहा है.
सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को इस मामले की सुनवाई के लिए तैयार है.न्यायाधीश सुधांशु धूलिया और न्यायाधीश जयमाला बागची की खंडपीठ ने वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और अन्य वकीलों की दलील सुनने के बाद सुनवाई के लिए 10 जुलाई की तारीख तय की. राजद सांसद मनोज झा की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि इतने कम समय में आयोग विशेष गहन पुनरीक्षण का काम पूरा नहीं कर सकता है. ऐसे में चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया जाना चाहिए. वहीं दूसरे याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि बिहार में लगभग 8 करोड़ मतदाता है और चार करोड़ को दस्तावेज देने होंगे.
क्यों हो रहा है विवाद
विपक्षी दलों का आरोप है कि विधानसभा चुनाव में कुछ महीने बचे हैं. ऐसे में कम समय में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण करना संभव नहीं है. चुनाव आयोग ने वर्ष 2003 के मतदाता सूची को आधार बनाते हुए इस काम को शुरू किया है. चुनाव आयोग के इस फैसले से चुनाव से पहला नयी मतदाता सूची तैयार होगी. चुनाव आयोग घर-घर जाकर जाकर नया इन्युमेरेशन फार्म मतदाताओं को बांट रहा है. वर्ष 2003 की मतदाता सूची में जिन मतदाताओं का नाम नहीं है, उन्हें दस्तावेज जमा करना होगा. इसके लिए आयोग की ओर से दस्तावेजों की 11 सूची दी गयी है. पूर्व में भी विशेष गहन पुनरीक्षण हुआ है, लेकिन चुनाव से ऐन पहले कभी नहीं किया गया.
बिहार में इससे पहले वर्ष 2002 में मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण किया गया था, जबकि विधानसभा का चुनाव अक्टूबर 2005 में होना था. इसी तरह वर्ष 2004 में भी चुनाव आयोग ने 8 राज्यों में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण कराने का फैसला लिया था. लेकिन उसी साल विधानसभा चुनाव को देखते हुए महाराष्ट्र में यह नहीं कराया गया. विपक्षी दलों का आरोप है कि चुनाव आयोग के फैसले से गरीब मतदाताओं का नाम मतदाता सूची से हट जायेगा. यह आम लोगों के मौलिक अधिकार का हनन है.