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मोदी सरकार की विदेश नीति के असफल होने का खामियाजा भुगत रहा है देश


Congress: पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद और ऑपरेशन सिंदूर को लेकर भारत सरकार ने विश्व के कई देशों में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजने का फैसला लिया है. लेकिन इस प्रतिनिधिमंडल में कांग्रेस ने सरकार द्वारा चयनित नाम पर सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा और कूटनीति के मामले में भी राजनीति करने से पीछे नहीं हट रही है. कांग्रेस ने मोदी सरकार की विदेश नीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि पूर्व में देश की विदेश नीति में एक समग्रता और निरंतरता थी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र की अगुवाई में सरकार बनने के बाद विदेश नीति की निरंतरता टूट गयी. 

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि मोदी सरकार भारत को विश्व गुरु बनाने का दावा करती रही, लेकिन पाकिस्तान के साथ तनाव के बाद इस दावे की हकीकत सामने आ गयी. विदेश दौरे पर प्रधानमंत्री ने हमेशा कांग्रेस और उसके नेताओं के खिलाफ बयानबाजी की. विपक्ष को बदनाम करने का कोई मौका नहीं छोड़ा. लेकिन जब संकट के समय विदेश नीति की पोल खुल गयी तो सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजने का काम किया जा रहा है. अगर देश की विदेश नीति सही रहती तो विदेश में पक्ष रखने के लिए किसी प्रतिनिधिमंडल को भेजने की जरूरत नहीं पड़ती. 

राजनीति को ध्यान में रखकर किया गया प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों का चयन

प्रतिनिधिमंडल के लिए विपक्षी सांसदों की ओर से चुने गए नाम पर आपत्ति जताते हुए रमेश ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के लिए नामों के चयन प्रक्रिया को गैर लोकतांत्रिक करार दिया. सरकार को विशेष सत्र बुलाकर मामले को सामने रखना चाहिए, लेकिन विपक्ष की मांग को दरकिनार कर सरकार अपने मन-मुताबिक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल को विदेश भेजने का काम कर रही है. मोदी सरकार के फैसले से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि को नुकसान पहुंचा है. इस नुकसान की भरपाई सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के दौरे से नहीं हो सकती है.

अमेरिका सहित कई देशों ने संकट के समय भारत को पाकिस्तान के समकक्ष माना. यह विदेश नीति की अब तक की सबसे बड़ी विफलता है.जयराम ने कहा कि 16 मई को संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के साथ बातचीत कर सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के लिए चार नाम देने की गुजारिश की थी. इसके बाद कांग्रेस की ओर से आनंद शर्मा, गौरव गोगोई, सैयद नसीर हुसैन और राजा बरार के नाम सरकार को दिए गए. लेकिन सरकार ने सिर्फ एक नाम को स्वीकार किया और बाकी नाम अपने पसंद के चुन लिया. विपक्ष की ओर से नाम तय करने का अधिकार सरकार को कैसे मिल गया. ऐसा लगता है कि सरकार देश के लोकतांत्रिक मूल्य को कमजोर करने का काम कर रही है.