India Pakistan Ceasefire: पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को 1971 के बाद सबसे बड़ा सबक सिखाया है. भारतीय सशस्त्र बलों ने आतंकी हमले के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर के तहत जवाबी कार्रवाई करके एक बार फिर अपनी ताकत का एहसास करा दिया है. यह ऑपरेशन सिंदूर की ताकत और भारतीय सेना के सूझबूझ का ही नतीजा है कि पाकिस्तान को महज तीन दिनों के अंदर ही घुटने टेक देने पड़े. भारतीय सेना के शौर्य और पराक्रम का ही नतीजा है कि अमेरिका की मध्यस्थता में भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम पर सहमति बनी.
पहलगाम आतंकी हमला
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में एक भीषण आतंकी हमला हुआ, जिसमें 26 पर्यटक, मारे गए. इस हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. आतंकियों ने विशेष रूप से पुरुषों को निशाना बनाया, जिसे शादीशुदा महिलाओं की मांग उजाड़ने की साजिश के रूप में देखा गया. इस हमले के पीछे जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों का हाथ माना गया, जिन्हें पाकिस्तान से समर्थन मिलने के आरोप हैं. देशभर में आक्रोश की लहर के बीच भारत ने जवाबी कार्रवाई की मांग को गंभीरता से लिया.
भारतीय सेना का ऑपरेशन सिंदूर
7 मई 2025 को भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान और पाक-अधिकृत कश्मीर (PoK) में नौ आतंकी ठिकानों पर सटीक मिसाइल और हवाई हमले किए. यह ऑपरेशन 1971 के युद्ध के बाद भारत की सबसे बड़ी सैन्य कार्रवाई थी, जिसमें थलसेना, नौसेना, और वायुसेना ने संयुक्त रूप से हिस्सा लिया. हमले में लश्कर का मुरिदके और जैश का बहावलपुर स्थित मुख्यालय नष्ट हो गए. भारत ने दावा किया कि 70 से अधिक आतंकी मारे गए, जबकि पाकिस्तान ने 26 नागरिक हताहत होने की बात कही. ऑपरेशन का नाम ‘सिंदूर’ इसलिए रखा गया, क्योंकि यह हमला उन महिलाओं के सम्मान में था, जिनके पतियों को पहलगाम में निशाना बनाया गया था. इस कार्रवाई ने भारत की सैन्य ताकत और आतंकवाद के खिलाफ दृढ़ संकल्प को प्रदर्शित किया.
संघर्ष विराम की बहाली
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान ने पुंछ-राजौरी क्षेत्र में तोपखाने से गोलीबारी कर संघर्ष विराम का उल्लंघन किया, जिसका भारत ने करारा जवाब दिया. हालांकि, अंतरराष्ट्रीय दबाव और दोनों देशों के बीच बैकचैनल से बातचीत के बाद LoC पर संघर्ष विराम को फिर से लागू करने पर सहमति बनी. यह कदम दोनों पक्षों के लिए तनाव कम करने का अवसर प्रदान करता है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि आतंकवाद के मुद्दे पर स्थायी शांति के लिए पाकिस्तान को ठोस कदम उठाने होंगे.
1971 का युद्ध: भारत की ऐतिहासिक जीत
भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 का युद्ध एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है, जिसने भारत की सैन्य और रणनीतिक श्रेष्ठता को स्थापित किया. यह युद्ध पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों और बंगाली आबादी के दमन के खिलाफ मुक्ति संग्राम के समर्थन में लड़ा गया. 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान द्वारा भारत पर हमले के बाद शुरू हुआ यह युद्ध मात्र 14 दिनों में समाप्त हो गया. भारतीय सेना, वायुसेना और नौसेना के समन्वय ने पाकिस्तानी सेना को घुटने टेकने पर मजबूर किया. 16 दिसंबर 1971 को ढाका में लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने 93,000 सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण किया और बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उभरा. इस जीत ने न केवल पाकिस्तान को क्षेत्रीय और मनोवैज्ञानिक रूप से कमजोर किया, बल्कि भारत को दक्षिण एशिया में एक प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित किया.
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आतंकवाद के खिलाफ भारत की जीरो-टॉलरेंस नीति
ऑपरेशन सिंदूर और हालिया संघर्ष विराम भारत की आतंकवाद के खिलाफ जीरो-टॉलरेंस नीति और सैन्य क्षमता को रेखांकित करते हैं. 1971 की जीत की तरह भारत ने एक बार फिर दिखाया कि वह अपनी संप्रभुता और नागरिकों की सुरक्षा के लिए निर्णायक कदम उठाने में सक्षम है. हालांकि, स्थायी शांति के लिए दोनों देशों को कूटनीतिक और रणनीतिक स्तर पर सहयोग बढ़ाना होगा.
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