Caste Census: केंद्र सरकार ने जाति आधारित जनगणना कराने का बड़ा फैसला लिया है. जिससे देश की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है. लंबे समय से ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) की जनसंख्या को लेकर सटीक आंकड़े की मांग की जा रही थी. जिसे अब सरकार ने मान लिया है. विपक्ष खासकर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी इसे अपनी बड़ी जीत बता रही हैं. उनका कहना है कि उन्होंने वर्षों से यह मांग उठाई थी.
क्या है जातिगत जनगणना?
जातिगत जनगणना का अर्थ है देश की हर जाति की गिनती की जाए और यह बताया जाए कि किस जाति के कितने लोग हैं. इससे सामाजिक ढांचे की असल तस्वीर सामने आएगी. इससे पहले 2011 में सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) हुई थी, लेकिन उसमें ओबीसी जातियों के विस्तृत आंकड़े सामने नहीं आए थे.
किस जाति के हैं कितने लोग
भारत में सबसे बड़ी सामाजिक श्रेणी मानी जाने वाली ओबीसी की आबादी को लेकर अभी तक सिर्फ अनुमान ही लगाए जाते रहे हैं. 1931 की जनगणना के आधार पर कहा गया कि ओबीसी की आबादी करीब 52 फीसदी है. मंडल कमीशन ने भी इसी आंकड़े को आधार बनाकर आरक्षण की सिफारिश की थी. अब अगर ताजा जनगणना में यह आंकड़े सामने आते हैं तो इससे नीति निर्धारण में बड़ा बदलाव आ सकता है.
जातिगत जनगणना का राजनीति पर क्या होगा असर
यह फैसला ऐसे समय में आया है जब 2024 के आम चुनावों के बाद देश की राजनीति में नई हलचल देखी जा रही है. जातिगत जनगणना के मुद्दे पर जहां बीजेपी इसे ‘सर्वसमावेशी विकास’ का कदम बता रही है, वहीं विपक्ष इसे सामाजिक न्याय की दिशा में बड़ी उपलब्धि मान रहा है. आने वाले समय में बिहार में चुनाव भी होना है. जातिगत जनगणना 2025 में शुरू होकर 2026 तक चलने की संभावना है. इसके नतीजे देश की सामाजिक और राजनीतिक धारा को एक नई दिशा दे सकते हैं.