Green Hydrogen: वैश्विक स्तर पर पारंपरिक की जगह वैकल्पिक ऊर्जा का महत्व तेजी से बढ़ रहा है. इसके लिए सोलर, विंड और अन्य विकल्पों को अपनाया जा रहा है. भारत और अन्य देशों में इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने वाली नीति पर काम किया जा रहा है. साथ ही ग्रीन हाइड्रोजन को भी ऊर्जा के तौर पर उपयोग करने को लेकर शोध जारी है. हाल में हाइड्रोजन से देश में ट्रेन चलाने का परीक्षण किया गया है. ग्रीन हाइड्रोजन को लेकर शोधकर्ताओं ने नयी तकनीक का विकास किया है, जिससे ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए उपयोगी इलेक्ट्रो-उत्प्रेरकों के निर्माण में मदद मिल सकती है. हाल ही में किए गए शोध में हाइड्रोजन उत्पादन को बेहतर बनाने के लिए विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक वातावरणों के इंटरफेस पर बीआईईएफ का लाभ उठाने पर ध्यान केंद्रित किया गया.
इसलिए कार्य फंक्शन, बीआईईएफ और गिब्स मुक्त ऊर्जा (एक थर्मोडायनामिक क्षमता जिसका उपयोग अधिकतम कार्य की मात्रा की गणना करने के लिए किया जा सकता है) जैसे मापदंडों का विश्लेषण किया गया. नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएनएसटी), मोहाली के वैज्ञानिकों ने कॉपर हाइड्रॉक्साइड और कॉपर टंगस्टन ऑक्साइड नैनो-कण अग्रदूत विकसित किए तथा इसके भौतिक एवं विद्युत-रासायनिक गुणों का अध्ययन किया गया. विभिन्न क्षेत्रों के प्रोटॉन अवशोषण के लिए गिब्स मुक्त ऊर्जा प्रोफाइल की जांच की और पाया कि इंटरफेस के साथ, प्रोटॉन ऊर्जा थोक क्षेत्र की तुलना में विपरीत व्यवहार दिखाती है. इससे बेहतर हाइड्रोजन ऊर्जा पैदा हो सकती है.
ग्रीन हाइड्रोजन तकनीक अपनाने में मिलेगी मदद
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक स्वायत्त संस्थान आईएनएसटी के वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि बीआईईएफ और गिब्स मुक्त ऊर्जा के बीच परस्पर क्रिया एक अनुकूल व्यवस्था को जन्म देती है, जहां उत्प्रेरक के साथ हाइड्रोजन बंधन अनुकूलित होता है. इससे हाइड्रोजन विकास आसान हो जाता है. यह शोध एडव एनर्जी मैटर 2025 में प्रकाशित हुआ है. इस शोध से उत्प्रेरक की सतह पर विशिष्ट प्रोटॉन सोखने के व्यवहार को समझने में मदद मिली, जो दूसरों को इसी तरह के इलेक्ट्रो-कैटेलिस्ट को डिजाइन करने और बनाने में मदद कर सकता है.
इससे ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी. इलेक्ट्रो-कैटेलिटिक हाइड्रोजन उत्पादन में सुधार से उन्नत ग्रीन प्रौद्योगिकियों के साथ ही टिकाऊ पर्यावरण भी हासिल हो सकता है. गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2022 में ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को मंजूरी दी थी. इस मिशन के तहत वर्ष 2030 तक 50 लाख मीट्रिक टन ग्रीन हाइड्रोजन गैस के उत्पादन का लक्ष्य है.