RSS: पहलगाम में हुए आतंकी हमले को लेकर देश में आतंकियों और पाकिस्तान को लेकर गुस्सा है. सरकार, विपक्ष और विभिन्न संगठन हमले के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने साफ कहा है कि अत्याचार करने वालों को सबक सिखाना धर्म सम्मत है. अहिंसा हिंदू धर्म का मूल है, लेकिन अत्याचारियों को दंडित करना धर्म का हिस्सा है. स्वामी विज्ञानानंद की किताब ‘द हिंदू मेनिफेस्टो’ के अनावरण कार्यक्रम को संबोधित करते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, ”हिंदू धर्म में पड़ोसियों को हानि नहीं पहुंचाते की बात कही गयी है, लेकिन हिंसा के दोषियों को दंडित करना भी राजा का काम है.
हम कभी भी अपने पड़ोसी का अपमान नहीं करते या नुकसान नहीं पहुंचाते, लेकिन अगर कोई बुराई की ओर मुड़ता है, तो क्या किया जाना चाहिए? अहिंसा हमारी प्रकृति और मूल्य है, लेकिन कुछ लोग बदलने वाले नहीं है, चाहे आप कुछ भी करें”. भागवत ने कहा, “एक दुश्मन है, फिर भी मैं देखूंगा कि वह अच्छा है या बुरा, यह संतुलित नहीं है… चाहे वह दुश्मन हो या नहीं, अगर वह दुश्मन है और अच्छा है, तो भी उसे पूरी तरह से नष्ट कर देना चाहिए”.
धर्म को गहराई से समझने की जरूरत
भारत में शास्त्रार्थ की परंपरा रही है. जिसमें एक प्रस्ताव रखा जाता है और प्रस्ताव पर हर कोई विचार रखता है. किताब में मेनिफेस्टो नाम भ्रम पैदा करने वाला है क्योंकि चुनाव के दौरान राजनीतिक दल मेनिफेस्टो जारी करते हैं. इस किताब में जो सूत्र दिए गए हैं, वे तो सत्य है, लेकिन उसकी जो व्याख्या है, उस पर चर्चा होगी. चर्चा से ही आगे का रास्ता निकलता है. शास्त्रों में कोई जाति-पंथ का भेद नहीं है, लेकिन इसका अधिक प्रचार-प्रसार किया गया. ऐसी व्याख्या से कुछ लोगों को लाभ होता है. हिंदू समाज को, अपने धर्म को गहराई से समझने की जरूरत है. ऐसी किताबों पर जब चर्चा होगी, उस पर जो एक मत तैयार होगा, वो काल-सुसंगत होगा.
भागवत ने कहा कि विश्व के समक्ष मौजूदा चुनौतियों को देखते हुए नया रास्ता तलाशना होगा और यह रास्ता हिंदू धर्म में दिए गए सूत्र को अपनाकर ही हासिल किया जा सकता है. रावण बहुत गुणवान था लेकिन उसका मन अहिंसा के खिलाफ था, यह उसके पराभव का कारण बना. हिंदू मेनिफेस्टो कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो जैसा नहीं है. कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो के बाद क्या हुआ था सबको पता है. दुनिया में सुख बढ़ा है तो दुख भी कई गुणा बढ़ गया है. मनुष्यता के लिए नया रास्ता देने का कर्तव्य भारत का है.
हिंदू धर्म में जाति की अवधारणा पश्चिमी देशों की देन
आईआईटी ग्रेजुएट से स्वामी बने विज्ञानानंद ने अपनी किताब ‘द हिंदू मेनिफेस्टो’ में बताया है कि हिंदू धर्म में जाति की अवधारणा पश्चिमी देशों की देन है. हिंदू धर्म में दुश्मन को खत्म करने की बात कही गयी है. स्वामी का कहना है कि भारतीय शास्त्र में बताया गया है कि धोखा देने वाले देश के साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए. शास्त्रों में कहा गया कि अगर दुश्मन आपको बर्बाद करने पर उतारू हो तो उसे पूरी तरह खत्म कर देना चाहिए. ऐसा करना क्रूरता नहीं बल्कि धर्म है. देश को बचाने के लिए हर उपाय किया जाना चाहिए. संकट के समय कमजोर दुश्मन को भी कम करके नहीं आंकना चाहिए.
दुश्मन के साथ हम हार-जीत का खेल नहीं खेलते है, उसे पूरी तरह खत्म करने का काम करना चाहिए. मौजूदा समय में देश में जाति की राजनीति पर स्वामी ने कहा कि हिंदू धर्म में जाति का कभी महत्व नहीं रहा है. शास्त्रों में भी जाति का जिक्र नहीं है. किताब में हिंदू धर्म की महत्ता, वैश्विक स्तर पर इसके बढ़ते प्रभाव का जिक्र किया गया है. भारत को वैश्विक स्तर पर सशक्त बनाने के लिए सभी को मिलकर काम करना होगा. हिंदू शास्त्रों में देश और समाज की प्रगति का पूरा विवरण मौजूद है.