जनजातीय क्षेत्रों में कहर ढा रहा सिकल सेल रोग, अभी जान लें लक्षण और सावधानियां! कहीं आप भी तो नहीं हैं इसके शिकार
Sickle Cell Disease: सिकल सेल रोग भारत के जनजातीय क्षेत्रों में गंभीर चुनौती बन चुका है. जानें इसके लक्षण, कारण, सावधानियां और बचाव के उपाय. पढ़ें ICMR की रिपोर्ट और सरकार की तैयारी.
Sickle Cell Disease: एक ओर भारत सरकार स्वास्थ्य के क्षेत्रों में सुधार के लिए लगातार काम रही है. लेकिन कई बीमारियां ऐसी है जो अब भी केंद्र के लिए बड़ी चुनौती है. इन्हीं में से एक ही सिकल सेल रोग. ICMR की एक रिपोर्ट के अनुसार जनजातीय और आदिवासी आबादी वाले क्षेत्रों में यह तेजी बढ़ा है. स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि यह बीमारी सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों के आदिवासी इलाकों गंभीर समस्या है. अनुमान है कि भारत में करीब 1.5 करोड़ लोग इसके शिकार हैं. ऐसे में सवाल ये है कि सिकल सेल रोग क्या है.
क्या है सिकल सेल रोग
सिकल सेल रोग (Sickle Cell Disease) एक आनुवांशिक रक्त विकार है, जिसमें शरीर में बनने वाली लाल रक्त कोशिकाएं अपनी सामान्य गोल आकार की बजाय हंसिया (सिकल) के आकार की बनती हैं. इससे खून की सामान्य प्रवाह प्रक्रिया प्रभावित होती है और शरीर के अंगों तक ऑक्सीजन की पर्याप्त आपूर्ति नहीं हो पाती है. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत के कुछ हिस्सों, विशेषकर मध्य भारत, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के जनजातीय क्षेत्रों में सिकल सेल रोग की समस्या गंभीर रूप ले रही है.
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क्या होता है सिकल सेल रोग?
सिकल सेल रोग एक जेनेटिक बीमारी है, जिसमें माता-पिता दोनों से दोषपूर्ण जीन मिलने पर यह बीमारी बच्चे में पनपती है. सामान्य RBC (Red Blood Cell) लचीली और गोल होती है. जबकि सिकल सेल रोग में ये कोशिकाएं कठोर और हंसिया जैसी हो जाती हैं, जिससे वे ब्लड वेसल्स में फंस जाती हैं और खून का बहाव रूक सकता है.
सिकल सेल रोग के लक्षण
- हड्डियों और जोड़ों में समय तक होने वाला तेज दर्द
- शरीर में थकान और कमजोरी
- आंखों का पीला पड़ना
- पैरों और हाथों में सूजन
- बार-बार संक्रमण होना
- बच्चों में शारीरिक विकास धीमा होना
कौन कौन सी सावधानियां बरतनी जरूरी
- गर्भावस्था की योजना से पहले जेनेटिक काउंसलिंग कराना जरूरी है
- गर्भ धारण करने से नियमित तौर पर जांच कराएं. किसी तरह का इलाज या दवाई डॉक्टरों की सलाह पर लें.
- शरीर में पानी की कमी न होने दें.
- संक्रमण से बचने के लिए साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दें और समय समय पर वैक्सीनेशन लगवाएं.
- अत्यधिक थकावट और मानसिक तनाव से बचें.
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