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Gita Updesh: श्रीकृष्ण कहते है


Gita Updesh: जीवन में जब कोई हमें दुख देता है या हमारे खिलाफ कुछ करता है, तो स्वाभाविक रूप से हमारे मन में उसके प्रति नकारात्मक भावनाएं आ जाती हैं. लेकिन भगवद गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन को यही समझाते हैं कि दूसरों के प्रति बुरी भावना पालना, क्रोध और द्वेष से भरे रहना यह किसी और का नहीं, बल्कि हमारे स्वयं का ही नुकसान करता है.

Gita Updesh: श्रीकृष्ण के उपदेश

दूसरों के प्रति हमारी बुरी भावना से उसका बुरा होगा, यह निश्चित नहीं है. पर हमारा अंतःकरण तो मैला हो ही जाएगा, जिससे हमारा बुरा तत्काल हो जाएगा.

– भगवद गीता उपदेश

बुरे विचारों का पहला शिकार होता है हमारा मन

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जब हम किसी के प्रति द्वेष, ईर्ष्या या बदले की भावना पालते हैं, तो यह भावना हमारे अंतःकरण को दूषित कर देती है. हमारा मन शांति खो बैठता है और सोच-विचार करने की क्षमता कमजोर हो जाती है. नतीजा यह होता है कि हमारी ऊर्जा और संतुलन बिगड़ने लगते हैं.

गीता का मार्गदर्शन – शुद्ध रखें अपना मन

भगवद गीता हमें सिखाती है कि अपने मन को शुद्ध और शांत रखना ही सच्चा धर्म है. जब हम दूसरों के बारे में गलत सोचते हैं, तो वह नकारात्मकता हमारे मन को ही पहले प्रभावित करती है. यह बात किसी और को नुकसान पहुँचाने से पहले, हमारी सोच, व्यवहार और मानसिक स्वास्थ्य को हानि पहुँचाती है.

 नकारात्मक सोच के नुकसान | क्यों जरूरी है अपने अंतःकरण की सफाई?

  • जब अंतःकरण मैला होता है, तो आत्मा की आवाज सुनाई नहीं देती.
  • निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है.
  • जीवन में अशांति और असफलता बढ़ती है.
  • मन नकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है जो स्वास्थ्य पर भी असर डालता है.

इसलिए गीता का यह उपदेश बेहद प्रासंगिक है – दूसरों के प्रति मन में बुरी भावना लाकर हम खुद का ही बुरा कर बैठते हैं. दूसरों को क्षमा कर देना और शांत चित्त बनाए रखना ही सच्चे आत्मविकास की दिशा है.

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Disclaimer: यह आर्टिकल सामान्य जानकारियों और मान्यताओं पर आधारित है. प्रभात खबर इसकी पुष्टि नहीं करता है.