Gita Updesh: श्रीमद्भगवद्गीता जीवन के उतार-चढ़ाव में रास्ता दिखाने वाला एक दिव्य प्रकाशपुंज है. जब मनुष्य उलझनों, डर और असमंजस से घिर जाता है, तब गीता उसे भीतर की शांति और स्थिरता पाने का उपाय बताती है. गीता समझाती है कि असली धर्म वही है, जिसमें हम अपने कर्तव्य को बिना किसी लालच या अपेक्षा के निभाएं. गीता यह भी बताती है कि अगर मोह, लोभ और अहंकार से ऊपर उठ जाएं, तो आत्मा की उन्नति संभव है. यह ग्रंथ केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक गहन मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक दृष्टिकोण भी प्रस्तुत करता है. आज की तेज रफ्तार और तनावपूर्ण जिंदगी में गीता हमें आत्मचिंतन, संयम और परम सत्ता में विश्वास करने की प्रेरणा देती है. इसमें लिखी बातें नई लोगों की जिंदगी में रोशनी फैलाने का काम करती हैं. ऐसे में बच्चों को श्रीमद्भगवद्गीता के कुछ श्लोक बचपन से ही सुनाना और समझाना बहुत जरूरी है, क्योंकि इससे न केवल उनका चरित्र मजबूत होता है, बल्कि वे जीवन के उतार-चढ़ाव में संतुलित रहना भी सीखते हैं.
कर्म पर ध्यान
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
इस श्लोक का अर्थ हुआ कि तुम्हारा अधिकार सिर्फ कर्म करने में है, फल में नहीं. इसलिए न तो फल की इच्छा से कर्म करो, और न ही कर्म न करने में आसक्त हो. इससे बच्चों को यह सीखने को मिलता है कि मेहनत करो, रिजल्ट की चिंता मत करो.

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समभाव
सुख-दुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि॥
इस श्लोक के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण कहना चाहते हैं कि सुख-दुख, लाभ-हानि और जीत-हार में समभाव रखो और अपने कर्तव्य को निभाओ. इससे बच्चों को यह सीख मिलती है कि हर परिस्थिति में स्थिर और मजबूत रहो.

मन को नियंत्रित करो
उद्धरेदात्मनाऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥
श्रीमद्भगवद्गीता के इस श्लोक में बताया गया है कि अपने मन से ही अपने को ऊपर उठाओ, नीचे मत गिराओ. मन ही मित्र है, मन ही शत्रु. ऐसे में यह श्लोक बच्चों को सिखाता है कि खुद पर नियंत्रण रखो, क्योंकि तुम्हारा सबसे बड़ा साथी और दुश्मन तुम्हारा मन है.

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