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क्या वाकई नजर लगती है? प्रेमानंद जी महाराज का साफ जवाब



Premanand Ji Maharaj: महाराज से मिलने वाले श्रद्धालु अक्सर जीवन के उलझे सवालों के जवाब तलाशने आते हैं. हालांकि, यह भी देखने में आता है कि लोग उनसे आत्मज्ञान से जुड़ी बातों से ज्यादा अपने रोजमर्रा के मानसिक संघर्षों पर सलाह मांगते हैं. ऐसे ही एक भक्त ने प्रेमानंद जी महाराज से नजर लगने और उतारने से संबंधित सवाल किया.

Premanand Ji Maharaj: प्रेमानंद जी महाराज का नाम आज किसी पहचान का मोहताज नहीं है. वे एक ऐसे आध्यात्मिक गुरु हैं, जो अपने सरल वचनों और गहरे ज्ञान से लाखों लोगों के जीवन को दिशा दे रहे हैं. सोशल मीडिया पर उनके प्रवचन खूब वायरल होते है और हर वर्ग के लोग उन्हें सुनना पसंद करते हैं. उनके चाहने वालों की संख्या लाखों में है. चाहे आम इंसान हो या कोई प्रसिद्ध हस्ती, हर कोई उनके दर्शन को सौभाग्य मानता है. महाराज से मिलने वाले श्रद्धालु अक्सर जीवन के उलझे सवालों के जवाब तलाशने आते हैं. हालांकि, यह भी देखने में आता है कि लोग उनसे आत्मज्ञान से जुड़ी बातों से ज्यादा अपने रोजमर्रा के मानसिक संघर्षों पर सलाह मांगते हैं. ऐसे ही एक भक्त ने प्रेमानंद जी महाराज से नजर लगने और उतारने से संबंधित सवाल किया. इस सवाल पर प्रेमानंद जी ने जो जवाब दिया, उससे एकदम स्पष्ट हो जाएगा कि यह स्थिति मात्र अंधविश्वास है या कुछ और.

प्रेम और स्नेह की अभिव्यक्ति

जब प्रेमानंद जी महाराज से एक श्रद्धालु ने पूछा कि क्या वाकई नजर लगती है? तो उन्होंने मुस्कुराते हुए बहुत ही प्यारे और समझदारी भरे अंदाज में जवाब दिया. महाराज ने कहा कि जब कोई व्यक्ति हमारे दिल के बहुत करीब होता है, तो हमें हमेशा यह डर बना रहता है कि उसका कहीं कोई नुकसान न हो जाए. इसी डर और चिंता से हम उसके लिए नजर उतारते हैं. यह हमारे प्रेम और स्नेह की अभिव्यक्ति होती है. उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा कि हम अपने प्रियतम की भी नजर उतारते हैं, बलिहारी जाते हैं, जबकि वही तो ईश्वर हैं, जिनकी दृष्टि से यह पूरा ब्रह्मांड चलता है, जिनकी रोशनी से सूर्य चमकता है, चंद्रमा चमकता है. उन्हें भला किसी और की नजर क्या प्रभावित कर सकती है?

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प्रेमानंद जी महाराज ने दिया स्पष्ट जवाब

प्रेमानंद जी महाराज ने इस भावना को बहुत सुंदर ढंग से समझाया कि नज़र उतारना कोई चमत्कारी प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक स्नेह भरी परंपरा है, जो हमें मानसिक संतोष देती है. यह तरीका हमारे दिल के लगाव को जताने का माध्यम बन गया है. प्रेमानंद जी ने स्पष्ट रूप से कहा कि नजर में कोई असली ताकत नहीं होती. यह बस हमारे मन का वहम होता है. जो जैसा सोचता है, वैसा ही महसूस करता है. इसलिए नजर नहीं लगती, बल्कि हमारे विचार ही हमारे जीवन की दिशा तय करते हैं.

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Disclaimer: यह आर्टिकल सामान्य जानकारियों और मान्यताओं पर आधारित है. प्रभात खबर किसी भी तरह से इनकी पुष्टि नहीं करता है.